परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 127वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब इरफ़ान सिद्दीक़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"क्या नदी जिस में रवानी हो न गहराई हो "
2122 1122 1122 22
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। सादर।
आ. चेतन जी बह्र में कहने की आवश्यकता है सादर।
आदणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार अच्छा प्रयास हुआ है
ये तो मुमकिन नहीं हर शख़्स ही सौदाई हो
प्यार में फिर भी ज़रूरी है कि सच्चाई हो
जुर्म पर अपने कभी तुझको शरम आ जाए
काश इतनी सी तेरे दिल में तो सच्चाई हो
अपनी मर्ज़ी भी बतायें तो बतायें कैसे
जब कुआँ एक तरफ एक तरफ़ खाई हो
नाम से मेरे फिर आँखों में चुभन कैसी है
मेरी यादों को अगर दिल से मिटा आई हो
इसकी परवाह न कर जीत मिलेगी या नहीं
झूठ का सामना करने की तवानाई हो
सूख़ जायेगी बहुत जल्द अगर यूँ ही रही
"क्या नदी जिस में रवानी हो न गहराई हो "
जनाब नादिर ख़ान जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'जुर्म पर अपने कभी तुझको शरम आ जाए'
इस मिसरे में 'शर्म' का वज़्न 21 होता है,आपने इसे 12 पर लिया है, इसकी जगह "हया" कर सकते हैं ।
'इसकी परवाह न कर जीत मिलेगी या नहीं
झूठ का सामना करने की तवानाई हो'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, देखियेगा ।
जनाब समर कबीर साहब इस्लाह का शुक्रिया बहुत जल्द और बेहतर करने की कोशिश करेंगे ।
"हार का सामना करने की तवानाई हो "
सर क्या ये प्रयोग उचित है
इस पर ऊला क्या होगा?
ऊला तय करेगा ।
ऊला तय करेगा ।
जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का उम्दा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें। सादर।
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