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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-132

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 132वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जोश मलिहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए "

 2122     2122      2122       212

 फ़ाइलातुन   फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन   फ़ाइलुन

 बह्र:  रमल मुसम्मन महज़ूफ़

रदीफ़ :-  के लिए
काफिया :- अरने( करने, भरने, उबरने, सँवरने, धरने, झरने, बिखरने, मरने, भरने, उभरने आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जून दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 26 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जून दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:"अंक-132 में आपका स्वागत है ।

सादर अभिवादन, आदरणीय .

आदरणीय सर जी,

सादर अविभादन।

सादर नमन आदरणीय।

जी,आदाब

सादर प्रणाम गुरु जी

स्वप्न यूँ  देखे  न  जाते  हैं  बिखरने के लिए
छोड़ मत श्रमशील होना भूखे मरने के लिए।१।
*
कल तलक चर्वाक जैसा घी उधारी का पिया
करना मेहनत यूँ जरूरी अब उबरने के लिए।२।
*
उनका बचपन क्या जवानी देख पायेगा भला
जो  सयाने  हो  गये  हों  पेट  भरने  के  लिए।३।
*
भूख अब भी है समस्या हल हुई कुछ भी नहीं
दावा  करते  थे  भले  वो  बैठ  धरने  के लिए।४।
*
हाथ की रेखा  अकेले  मोल सकती सुख नहीं
साथ श्रम का मागे किस्मत भी सँवरने के लिए।५।
*
अब सियासत में निठल्ले रेवड़ी पाते बहुत
और जो श्रमशील बैठे आह भरने के लिए।६।
*
काम की कीमत न हो तो झूठ है ऐसा कथन
"आदमी पैदा हुआ  है  काम  करने के लिए"।७।
//
दो और गिरह देखिए --
*
बैल सा जुतने को निर्धन बात कहता है यही
"आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए"।।
*
इस तरह बैठे निठल्ले तोड़ते क्यों रोटियाँ
आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए।।

मौलिक/अप्रकाशित

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'जो  सयाने  हो  गये  हों  पेट  भरने  के  लिए'

इस मिसरे में सहीह शब्द "सियाने" है,देखियेगा ।

मुझे आख़री गिरह अच्छी लगी ।

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल फर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार। सबसे पहले गिरह आपकी पसंद वाली ही लगाई थी । पर लिखा सबसे बाद में । सादर..

वाह आदरणीय धामी सर जी बहुत बेहतरीन गजल लिखी आपने सादर शुभकामनाएं

आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति ओर सराहना के लिए धन्यवाद।

आदरणीय लक्ष्मण जी, नमस्कार

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार कीजिये

सादर।

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