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ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह सितम्बर 2016 – एक प्रतिवेदन- डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

           ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह सितम्बर 2016 – एक प्रतिवेदन

                                                   डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव   

 

लखनऊ के गोमतीनगर स्थित SHEROES HANGOUT  के स्वछन्द वातावरण में  दिनांक 24-09-2016 के अपराह्न 3  बजे ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के सदस्य  डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव   के सौजन्य से माह सितम्बर की साहित्य संध्या के प्रथम चरण का शुभारम्भ  वर्ष 2015 के लिए उ० प्र० हिन्दी साहित्य संस्थान से  ‘संन्यासी योद्धा‘ उपन्यास हेतु अमृत लाल नागर पुरस्कार प्राप्त करने वाले साहित्यकार कौस्तुभ आनंद चंदोला द्वारा अपने उक्त उपन्यास की संदर्भ चर्चा से हुआ.

‘संन्यासी योद्धा‘ उत्तराखंड के एक वीर लोकनायक की गाथा है जिसे यद्यपि इतिहास पुरुष कहा जाता है किन्तु उत्तराखंड के लिखित इतिहास में इसका उल्लेख नहीं है. आश्चर्य की बात है कि लिखित इतिहास में दर्ज न होने के अनंतर वीर गोरिया (गोल्ज्यू ) लोक इतिहास में अमर है और आज भी नवरात्रि में ढोल–दमाऊ, नगाड़े, झाल–तूरी की धुन के बीच उसकी शौर्य गाथा का लोक भाषा में गायन होता है और मंदिर के परिसर में विशाल अग्नि जलाकर लोग झूम–झूम कर रात-रात भर नाचते हैं. अमरत्व वास्तव में यही है. जिसके चरित्र को लोक-जीवन आत्मसात कर ले उसका मरण कहाँ संभव है. गोल्ज्यू न केवल न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध है अपितु पहाड़ी लोक-जीवन में वह ईश्वर की भाँति पूजित है. अल्मोड़ा के चितई के गोल्ज्यू मंदिर में हजारों-हजार मनौतियाँ मानी जाती हैं और लोक विश्वास से पूरी भी होती हैं.

‘संन्यासी योद्धा‘ पूर्णतः मौलिक पुस्तक है और शोध पर आधारित है. कौस्तुभ आनंद चंदोला ने कथावस्तु पर न जाते हुए लोकनायक और लोक विश्वास की मजबूत कड़ी पर विशेष बल दिया.

साहित्य संध्या के द्वितीय चरण का आगाज सदैव की भाँति  मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ की वाणी–वंदना से हुआ. प्रथम कवि के रूप में उन्होंने सम्प्रति कुछ प्रभाव विस्तार करने वाले रचनाकार केवल प्रसाद ‘सत्यम’ का आह्वान किया. सत्यम दोहा छंद के विशेष कवि हैं. उन्होंने उसी मर्यादा में कुछ सुन्दर दोहे सुनाये जिनकी बानगी इस प्रकार है –शिक्षा–दीक्षा रो पड़ी करके निज शृंगार

व्यापारी मिल कर रहे उनका कारोबार

 

शिक्षा अपनी प्राथमिक सुख दुपहर के भोज

मुफ्त वस्त्र पुस्तक सभी पढ़ते भारत खोज

शहर के जाने –माने ग़ज़लकार  ‘कुंवर कुसुमेश’ ने सर्व प्रथम हिन्दी की शान में एक मुक्तक पढ़ा –

गांधी, सुभाष, शहीद भगत सिंह का बलिदान कहानी नहीं है

जो मिल पायी बड़ी मुश्किल से स्वतंत्रता आज गंवानी नहीं है

आप तो खुद हैं ज्ञानी गुणी यह बात हमें समझानी नहीं है 

हिन्दी का जो न करे सम्मान वो हिन्द में हिन्दुस्तानी नहीं है

 इसके बाद उन्होंने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल पढ़ी, जिसका मतला उदाहरण के रूप में निम्नवत प्रस्तुत है –

देखता हूँ मैं रोज ख़्वाबों में

लखनऊ के मैं हूँ नवाबों में

संचालक मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने लौकिक संभावनाओं को अध्यात्म से जोड़ते हुए पेशकश की –

रूह ये शिवमय हुयी तन भी शिवाला हो गया

आप मुझ से मिल गए मन में उजाला हो गया  

उपन्यासकार कौस्तुभ आनंद चंदोला स्फुट रूप से कविता रचना भी करते हैं. उन्होंने अपनी स्मरण शक्ति को झिंझोड़ कर जो काव्य पंक्ति प्रकट की, वह इस प्रकार है –

जीवन में संघर्ष आते रहेंगे

बुलबुलों की तरफ वो जाते रहेंगे

जीवन है रंगमंच सजते रहेंगे

कई पात्र आते व जाते रहेंगे 

डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी प्रकृति के अनेकानेक उपादानों के बीच घिरकर स्वयं को अनिश्चय और द्वन्द्व में खंगालते हैं और अंत में परम विभु के समक्ष शरणागत होते हैं -

मैं तो अब थक हार गया

आओ तुम समझाओ मुझे

माटी से उन नक्षत्रों तक

हाथ पकड़ ले जाओ मुझे

यहाँ वहां सर्वत्र विचरते 

हो बंधु तुम ही भीतर बाहर

जाना मैंने कैसा यह छंद

मेरे बाहर मेरे अन्दर  

दूसरी कविता  ‘मैत्री’ उनके अंटार्कटिका में भारतीय स्टेशन के सर्वेसर्वा के रूप में हुए अनुभव के आधार पर रचित है. कविता के अंत में वे घर-परिवार से हजारों किलोमीटर दूर अचिंतनीय कष्ट सहते हुए मैत्री स्टेशन में अस्थायी रूप से बसे अभियात्रियों का देश के प्रति समर्पण को व्यक्त करते हुए कहते हैं -  

मैत्री

एक दायरे में सिमटी हुयी 

एक जाति की कहानी

साहस के प्रतीक

कुछ परिवारों के गौरव 

एक राष्ट्र के अभिमान 

ये छब्बीस जान

एक ही बंधन

एक ही आन

मैत्री मैत्री मैत्री

अंतिम कवि के रूप में डॉ0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने नर्मदा नदी के जीवन से जुड़ी एक लोकगाथा को कविता के माध्यम से जीवंत किया.

पीछे से हठात

तभी रेवा वहाँ आ गयी

चिर सुकुमारिका, कन्यका कुमारिका

जोहिला को रोम-रोम शोण में समाया देख 

फेर ली आँख उसने घृणा और शर्म से

साथ ही फेर लिये वापस

अपने कदम 

नहीं जायेगी अब

प्राची की ओर वह  

और फिर चल पड़ी वह सहज एकाकी 

उस दिशा पथ पर पश्चिम की ओर

जिधर प्रायशः

भारत की नदियाँ नहीं जाती

कार्यक्रम के अंत में ओ बी ओ  लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ0 शरदिंदु मुकर्जी ने सभी उपस्थित कवियों को धन्यवाद दिया. सभी कविगण एवं साहित्यकार ‘संन्यासी योद्धा‘, अंटार्कटिका के ‘मैत्री’ स्टेशन की छवि, और नर्मदा नदी की लोकगाथा को आत्मसात करते हुए रंगमंच से विदा हुए. आँखों में एक सपना था फिर एक ऐसी ही संध्या हो और ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के तत्वावधान में साहित्य का एक और नया साज सजे इसी ओज और सोच के साथ.

                 आकाश तू अपनी महफ़िल सजा

                 मेरा वादा है तारे कम नहीं होंगे

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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