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ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या- माह अक्टूबर,  2018- एक प्रतिवेदन  -डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

21 अक्टूबर 2018, दिन रविवार को लोकप्रिय कथाकार डॉ. अशोक शर्मा के आवास, 81 विनायकपुरम, विकासनगर. लखनऊ पर उन्हीं के संयोजन से ओ.बी.ओ लखनऊ-चैप्टर की ‘साहित्य संध्या‘ माह अक्टूबर का आयोजन हुआ I इस आयोजन में कतिपय व्यस्तताओं के कारण ओ.बी .ओ प्रबंधन के सदस्य और ओ.बी.ओ लखनऊ-चैप्टर के संयोजक डॉ. शरदिंदु मुकर्जी कार्यक्रम में नही आ सके I स्वास्थ्य संबंधी कारणों से कुंती मुकर्जी का भी आगमन नही हुआ I इन विभूतियों की कमी को बहुत-बहुत अनुभव करते हुए कार्यक्रम का समारम्भ किया गया I इस हेतु   प्रख्यात कवयित्री सुश्री संध्या सिंह को सर्वसम्मति से अध्यक्ष मनोनीत किया गया I

कार्यक्रम के प्रथम चरण में डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव द्वारा किये गए महाकवि कालिदास के प्रख्यात खंड काव्य ‘मेघदूत ‘ के काव्यानुवाद अथच भावानुवाद  ‘यक्ष का संदेश’ पर परिचर्चा हुई I इस काव्य के सम्बन्ध में सबसे पहले रचनाकार डॉ. श्रीवास्तव ने अपने विचार रखे I  उन्होंने बताया कि एक दिन अंतर्जाल में उनकी दृष्टि मेघदूत और उसके गद्यानुवाद पर पड़ी I उन दिनों अंतर्जाल की एक आभासी साहित्यिक संस्था ओ.बी.ओ द्वारा ‘पावस’ पर रचना करने का आमन्त्रण था I  डॉ. श्रीवस्तव ने मेघदूत के दो छंदों का ‘ककुंभ‘ छंद में अनुवाद कर ओ.बी.ओ की ब्लाग में पोस्ट कर दिया I इस अनुवाद को दिग्गज साहित्यकरों से भूरि –भूरि प्रशंसा मिली I इससे प्रेरित होकर उन्होंने दो और छन्दों का अनुवाद कर डाला I सहसा उनके मन में विचार आया कि यदि चार छंदों का अनुवाद हो सकता है तो  सारे मेघदूत का क्यों नहीं I मेघदूत कोई बड़ा काव्य भी नहीं है I ‘यक्ष का संदेश’ उनके इसी संकल्प का अवदान है I डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि इस अनुवाद के ब्याज से उन्हें कालिदास और उनकी अन्यतम साहित्यिक मनीषा को समझने का अवसर मिला और इस बात की सच्चाई भी प्रकट हुई कि महाकवि के सम्बन्ध में ‘उपमा कालिदासस्य’ कहने का वास्तविक मर्म क्या है I

 

कथाकार डॉ. अशोक शर्मा ने इस पुस्तक के संबंध में बताया कि यह एक सशक्त भावानुवाद है I अधिकांशतः कवि अनुवाद करते समय संस्कृत के एक छंद को हिन्दी के एक ही छंद में समाविष्ट करने की चेष्टा करते है I इससे कहीं तुक बिगड़ जाता है तो कहीं भाव बिखर जाते हैं I शिल्प सध नही पाता और कविता प्रवाहहीन गद्य की भाँति हो जाती है I ‘यक्ष का सन्देश‘ का रचनाकार संस्कृत भाषा की सामासिक शक्ति को समझता है I संस्कृत भाषा में समास और संधि की बहुलता से बहुत सी बातें कम शब्दों में कही जा सकती है, पर खडी बोली हिन्दी के साथ ऐसा नही है I इसलिए डॉ. श्रीवास्तव संस्कृत के एक छंद को हिन्दी के एक ही छंद में बाँधने के व्यामोह से बचते रहे हैं I उन्होंने  छंदों में भावों को पूर्ण निष्पत्ति देने के लिए एकाधिक छंदों का आश्रय लिया है I मेघदूत जैसी जटिल और संश्लिष्ट भावाभिव्यक्ति को डॉ. श्रीवास्तव ने जिस  कुशलता से अपने शब्द दिए हैं, वह सही मायने में स्पृहणीय ही कहा जाएगा I ‘यक्ष का संदेश‘ पढ़ते समय कहीं भी यह नहीं लगता कि किसी स्थल पर या किसी प्रसंग में कोई सायास योजना हुयी है I सारी अभिव्यक्ति सहज, सरल और प्रवाहमय है I डॉ.अशोक शर्मा ने इस काव्यानुवाद के कुछ भावों का खुलासा करते हुए उसके उदाहरण प्रस्तुत किये I यथा –

 

जामुन के कुंजों में बहता नर्मद-जल प्यारा-प्यारा I

वनराजी के तीखे मद से रस- भावित सुरभित धारा II

बरसाकर सरिता में अपने अंतस का सारा पानी I

करना फिर आचमन सुधा का हे मेरे बादल मानी II

भीतर से घन होगे यदि घन तब तुम थिर रह पाओगे I

पूँछ सकोगे तब मारुत से कैसे मुझे उड़ाओगे ?

हलके होते हैं वे सचमुच जो भीतर से रीते हैं I

भारी-भरकम ही दुनिया में शीश उठा के जीते है II

 

साहित्य संध्या के दूसरे चरण में ‘काव्य पाठ ‘ का आयोजन था I संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ ने सबसे पहले माँ शारदा की स्तुति में अपना छंद इस प्रकार पढ़ा –

 

भारती की आरती उतारती सकल सृष्टि बुद्धि ज्ञान हेतु अम्बु अम्बु है पुकारती

शब्द शिल्पियों की काव्य साधना संवारि मातु स्नेह से सदा सुयोग्य पुत्र को दुलारती

जो चले धरम दया, छमा की सदा की नेक राह उनके ही जीवन का रूप माँ संवारती

करते अनीति कष्ट देते साधु सज्ज्नों को ऐसे पापियों को दुष्ट को है माँ संहारती

 

प्रथम कवि के रूप में हास्य-व्यंग्य के कवि मृगांक श्रीवास्तव का आह्वान किया गया I श्री श्रीवास्तव ने छोटे-छोटे कई व्यंग्य सुनाये और जसलीन–जलोटा के ताजा-तरीन प्रकरण पर अपने भावों को इस प्रकार व्यक्त किया I

हम टी वी पर खबर सुन रहे थे

इस बीच जसलीन-जलोटा की खबर आयी

पत्नी सुनकर ऐसे गरमाई 

जैसे हमने ही कर ली हो जसलीन से सगाई

उधर जलोटा की बाजार में कीमत बढ़ गयी

उनकी भजन संध्या अब जे जे नाईट हो गयी

 

कागज़ और कलम से दूर भी कविता का शायद कोई संसार है, जहाँ कविता लिखी या रची नहीं जाती I इस संसार में कवि शायद कविता को जीते हैं I इस बहुत रूमानी और सपनीले संसार में कविता को जीने की मूड में आतुर हैं, कवयित्री नमिता सुन्दर I उनकी यह दास्तान उनकी ज़ुबानी पेश है -

 

नही,

नहीं आज मुझसे मत कहो

कागज़-कलम उठाने को

मैं कविता लिखने नहीं

जीने के मूड में हूँ I

 

गजलकार भूपेन्द्र सिंह ‘शून्य’ ने कुछ छोटी-छोटी रचनायें तहद में सुनाई I पर उन्हें बिना तरन्नुम में सुने उपस्थित समुदाय कहाँ मानने वाला था I अंततः उन्हें लोकैषणा का सम्मान करना ही पडा I बा-तरन्नुम उनके द्वारा पढ़ी गयी उम्दा गजल के चंद अअशार निम्न प्रकार हैं  -

 

नक्श यादों के भी इस दिल से मिटाते जाते I

आज कर देते यह अहसान भी जाते जाते II

दर्द दुनिया को दिखाने से भला क्या होता

लोग रुसवाई का इल्जाम लगाते जाते II

 

कवयित्री अलका त्रिपाठी ‘विजय’ का अवसाद उन्हें दामन में खार के गुल खिलाने का हौसला देता है I दर्दे-दिल की सिफत यह है कि कोई उनके बेकरार दिल का हाल पूछने से भी बाज आये I सबूत हाजिर है -

 

कि अवसर मिले हैं देख हमे रोजगार के

दामन में गुल खिलाने चले आज खार के II

कि जीते हैं यार उसके लिए दर्द दिल में सौ

मत पूछ दिल का हाल दिले बेकरार से II

 

संचालक मनोज शुक्ल ‘मनुज’ इंकलाबी कवि है I वह प्रिय का सानिध्य पाने से पहले मरना नही चाहते I इतना ही नही वह पलटवार भी करते हैं कि –‘क्यों मर जाऊँ ? और यदि मरना ही है तो उनकी अनेक शर्ते हैं  I जरा मुलाहिजा फरमाईए -

 

जब तक तेरे पास न आऊँ ,क्यों मर जाऊँ

जब तक नही अमरता आकर मुझको अपने गले लगाती

जब तक असह्य वेदना मेरे उर में रहती है मुस्काती

जब तक प्रेम हिलोरे मारे मर-मर कर जीने की खातिर

जब तक यादों का तेरी वह बादल फिर-फिर आता है घिर

तब तक क्यों डरपोक कहाऊँ

जब तक तेरे पास न आऊँ ,क्यों मर जाऊँ

 

कवयित्री आभा खरे ने तुम्हारे शहर का सूरज और मेरे शहर के सूरज का प्रतीक लेकर दो मनों के बीच के अंतर का बेहतरीन खुलासा किया -

 

तपते सूरज की पैदाईश है

तुम्हारा शहर

और मेरे शहर से

बेपनाह मुहब्बत है

बारिशों को

तय था खिल जाना

इन्द्रधनुष

दरमियाँ साझा हुए

मन के आकाश में

 

रेशमी आवाज और मखमली गजल एवं कविता के चमकते नक्षत्र आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ यद्यपि कार्यक्रम में भौतिक रूप से उपस्थित नहीं थे, किंतु गोरखपुर में रहते हुए उन्होंने अपनी कविता की रिकॉर्डिंग वाया वाट्स एप उपलब्ध कराई, जिसका श्रवणानन्द सभी उपस्थित समुदाय  ने लिया I आलोक की कविता का केन्द्रीय विषय प्रेम था I उसकी एक बानगी यहाँ पेश है –

 

प्रेम की रसधार में यह मन तरंगित हो उठा

कामना के स्वर जगे संसार झंकृत हो उठा II

 

नेह की बूंदों ने जब साकार तन मन को छुआ

जद सरीखा जो रहा था आज वह चेतन हुआ II

प्रेम की पहली छुअन से तन प्रकम्पित हो उठा 

प्रेम की रसधार में------------`

 

डॉ अशोक शर्मा बड़ी विनम्रता से कहते हैं कि भई मैं कवि-ववि तो हूँ नही ,. कुछ यूँ ही लिख देता हूँ I इस ‘यूँ ही’ में कितना कवित्व है इसका प्रमाणिक दस्तावेज इन पंक्तियों में अन्तर्हित है -

 

मैं दिवस की सांध्य बेला यूं बिताना चाहता हूँ

बस तुम्हारे मन के थोड़ा पास आना चाहता हूँ II

चाहता हूँ मुझ पर अंकित नाम हो केवल तुम्हारा

और फिर मैं मिलन का उत्सव मनाना चाहता हूँ II

 

डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने जीवन में स्मृति के रूप मे पीड़ाऑ के बार-बार उभर आने का अनुभव अपने शब्द-चित्र में कुछ इस प्रकार उकेरा  -

 

अश्रुओं में ढल चुके है सब ह्रदय के पाप मेरे I

फिर उभर आये क्षितिज पर क्यों वही संताप मेरे II

 

यक्ष का संदेश लेकर घिर उठीं काली घटाएं I

रो रहा है करूण बादल गूंजती सारी दिशायें II

दूर नभ में वृक्ष पर है मौन चातक लौ लगाए I

खिलखिलाती बिजलियाँ हैं व्यंग्य करती हैं हवाएं II

तुम अकेले ही नहीं हो विश्व में संताप मेरे I

फिर उभर आये क्षितिज पर -------------------

 

अंत में कार्यक्रम की अध्य्क्षता कर रहीं कवयित्री संध्या सिंह ने एक मुक्तक, एक गीत और एक गजल का पाठ किया  I उनके मुक्तक का इतिवृत्त निम्नलिखित है -

जेहन पर लिखी

विचारों की पांडुलिपि

काट-छाँट के बाद

आती जुबां तक

मूलतः मानव है

कुशल सम्पादक  

 

श्रीमती संध्या सिंह की गजल यद्यपि छोटे बह्र में थी, पर उसके पंच ( PUNCH ) बहुत ही सशक्त थे I गजल के चंद अशआर यहाँ पेश हैं =

 

बाहर जाने में खतरा है I

हर तहखाने में ख़तरा है II

कोई कहीं कलम कर देगा

शीश नवाने में ख़तरा है I

 

सुश्री संध्या सिंह के काव्य पाठ के उपरांत अचानक एक स्तब्धता सी छा गयी I सभी सोचने को मजबूर थे कि क्या वाकई शीश नवाने में खतरा है I इस निस्तब्धता को डॉ. अशोक शर्मा के आतिथ्य और चाय की गर्म प्यालियों ने तोडा I शरीर में मानो नव चेतना का संचार हुआ –

 

क्रीडा करते जो खतरों से

उनसे खतरों को खतरा है 

हम है अपनी मर्यादा में

हर दशकंधर को खतरा है (2 X 8)

              --- स्वरचित

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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