"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 32 में स्वीकृत रचनाएँ - Open Books Online2024-03-29T15:35:48Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/32-5?commentId=5170231%3AComment%3A901207&x=1&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय योगराजजी ,लघुकथा गोष्ठ…tag:openbooksonline.com,2017-12-02:5170231:Comment:9012072017-12-02T17:49:51.884ZVASUDHA GADGILhttp://openbooksonline.com/profile/VASUDHAGADGIL
आदरणीय योगराजजी ,लघुकथा गोष्ठी के सुव्यवस्थित, सुसंगठित, सफल संचालन हेतु हार्दिक अभिनंदन और आभार।आपके मार्गदर्शन से लघुकथा लेखन में मुझे बहुत कुछ सीखने-समझने का अवसर मिल रहा है।अन्य सभी सुविज्ञ रचनाकारों की रचनाएं ,सहभागिता ,प्रतिक्रियाएं मेरी प्रेरणा और ऊर्जा शक्ति का स्त्रोत सिध्द हो रही हैं।इस मंच को साधुवाद।
आदरणीय योगराजजी ,लघुकथा गोष्ठी के सुव्यवस्थित, सुसंगठित, सफल संचालन हेतु हार्दिक अभिनंदन और आभार।आपके मार्गदर्शन से लघुकथा लेखन में मुझे बहुत कुछ सीखने-समझने का अवसर मिल रहा है।अन्य सभी सुविज्ञ रचनाकारों की रचनाएं ,सहभागिता ,प्रतिक्रियाएं मेरी प्रेरणा और ऊर्जा शक्ति का स्त्रोत सिध्द हो रही हैं।इस मंच को साधुवाद। सादर अभिवादन भैया ...संशोधित…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9009422017-12-01T07:03:01.128Zsavitamishrahttp://openbooksonline.com/profile/savitamisra
<div><div class="_1mf _1mj"><span><span>सादर अभिवादन भैया ...संशोधित कथा ..सभी को हार्दिक बधाई भी </span><br></br><br></br>मन का बोझ-</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>अस्पताल के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर विवेक कराह रहा था | डॉक्टर से उसके जल्द इलाज की मिन्नतें करता हुआ एक अजनबी, बहुत देर तक डॉक्टरों और नर्सों के बीच फुटबॉल बना हुआ था। बड़ी मुश्किल से कागजी कार्यवाही करने के बाद, विवेक को आपरेशन थियेटर के अंदर ले जाया गया | अजनबी…</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span><span>सादर अभिवादन भैया ...संशोधित कथा ..सभी को हार्दिक बधाई भी </span><br/><br/>मन का बोझ-</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>अस्पताल के कॉरिडोर में स्ट्रेचर पर विवेक कराह रहा था | डॉक्टर से उसके जल्द इलाज की मिन्नतें करता हुआ एक अजनबी, बहुत देर तक डॉक्टरों और नर्सों के बीच फुटबॉल बना हुआ था। बड़ी मुश्किल से कागजी कार्यवाही करने के बाद, विवेक को आपरेशन थियेटर के अंदर ले जाया गया | अजनबी अपना दो बोतल खून भी दे चुका था। एक-दो घंटे में ऑपरेशन खत्म हुआ तो विवेक को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया | अजनबी लगातार विवेक की खिदमत में लगा हुआ था |</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>तभी विवेक के बदहवास माता-पिता वार्ड में दाखिल हुए | विवेक को देखते ही माँ तो बेहोश हो गयी | अजनबी पानी लेने बाहर चला गया |</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>विवेक के माथे पर हाथ फेरते हुए काँपती आवाज में पिता ने पूछा - "कैसे हुआ? मुझे लगा तू दोस्त के यहाँ, देर रात हो जाने से रुक गया होगा।"</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>"पापा, मैं तो रात...ग्यारह बजे ही ..आहs..मुकेश के घर से चल दिया था..उह.. अह ह..लेकिन रास्ते में...!"</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>पत्नी की तरफ देखने के बाद पिता ने विवेक से फिर कहा - "चहलकदमी करती हुई तेरी माँ चिल्ला रही थी कि 'जन्मदिन, इतनी देर तक कोई मनाता है क्या भला' ! शाम को तेरा फोन भी बंद आ रहा था !!"</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>"आराम करने दो ! बाद में पूछताछ कर लेना, मेरे बच्चे को कितनी तकलीफ ..!" कहते हुए फिर बेहोश सी हो गयी |</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>"एक सहृदय भले आदमी की नजर...उहs मुझपर सुबह पड़ी, तो वह मुझे आह..अस्पताल ले आये।... पापा ! रातभर लोगों से भीख मांगकर ऊहंss निराश हो गया था मैं तो..और मोबाईल की बैटरी भी ...।" किसी तरह विवेक ने टूटे-फूटे शब्दों में पिता से अपनी व्यथा बयान की |</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>'सहृदय' शब्द अंदर आते हुए अजनबी के कानों में गया, तो वह बिलबिला पड़ा। जैसे उसके सूखे हुए घाव को किसी ने चाकू से कुरेद दिया हो।</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>अजनबी खुद से ही बुदबुदाया - "चार साल पहले, मेरी सहृदयता कहाँ खोई थी। सड़क किनारे खड़ी भीड़ की आती आवाजें- चीखें अनसुनी करके निकल गया था ड्यूटी पर अपने। दो घण्टे बाद ही फोन पर तूफान की खबर मिली थी।"</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>सहसा अपने सिर को झटक के वर्तमान में लौटकर अजनबी बोला- "बेटा, मैं सहृदय व्यक्ति नहीं हूँ, बनने का ढोंग कर रहा हूँ। यदि मैं सहृदय व्यक्ति होता तो मेरा बेटा जिंदा होता।" चुप होते ही आँसू अपने आप ढुलक गए, जिसे अजनबी ने रोकने की कोई कोशिश नहीं की।</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>"मौलिक व अप्रकाशित"</span></div>
</div> ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9008672017-12-01T06:57:40.836ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - 32 के सफल आयोजन,सुव्यवस्थित संचालन एवम त्वरित संकलन हेतु आपकी जितनी प्रसंशा की जाय कम है। हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।</p>
<p>ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - 32 के सफल आयोजन,सुव्यवस्थित संचालन एवम त्वरित संकलन हेतु आपकी जितनी प्रसंशा की जाय कम है। हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।</p> मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ ब…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9007842017-12-01T06:30:03.829ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक 32 के त्वरित संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक 32 के त्वरित संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदा…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9010302017-12-01T05:47:50.801ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,त्वरित संकलन पेश करने में आपका कोई सानी नहीं,संकलन और सफ़ल संचालन के लिए आपको बहुत बहुत मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,त्वरित संकलन पेश करने में आपका कोई सानी नहीं,संकलन और सफ़ल संचालन के लिए आपको बहुत बहुत मुबारकबाद पेश करता हूँ । लघुकथा गोष्ठी के सफल संचालन ह…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9010252017-12-01T03:58:26.885ZBarkha Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/BarkhaShukla
लघुकथा गोष्ठी के सफल संचालन हेतु बहुत २ बधाई आदरणीय योगराज सर जी ,मेरी लघुकथा को संकलन में स्थान देने के लिए बहुत २ धन्यवाद ,आभार ,सादर
लघुकथा गोष्ठी के सफल संचालन हेतु बहुत २ बधाई आदरणीय योगराज सर जी ,मेरी लघुकथा को संकलन में स्थान देने के लिए बहुत २ धन्यवाद ,आभार ,सादर आदरणीय भाई साहब / प्रणाम. आप…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9008632017-12-01T03:28:51.791ZOmprakash Kshatriyahttp://openbooksonline.com/profile/OmprakashKshatriya
<p>आदरणीय भाई साहब / प्रणाम. आप के जज्बे को सलाम. इतनी तीव्रता से संकलन निकाला हैं. इस की जितनी तारीफ की जाए वह कम है. यह आप की साहित्य के प्रति लग्न, इच्छा, आकांक्षा तथा साहित्यप्रेम को प्रदर्षित करता है. इस जज्बे को मेरा नमन. </p>
<p>मेरी लघुकथा में कुछ त्रुतिगत संशोधन है- कृपया प्रतिस्थपित करने की कृपा कीजिएगा--</p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2"><b>(4). आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी <br></br>वही बीवी</b></span><br></br><span class="font-size-2">.</span><br></br><span class="font-size-2">''भाई शादी करनी…</span></p>
<p>आदरणीय भाई साहब / प्रणाम. आप के जज्बे को सलाम. इतनी तीव्रता से संकलन निकाला हैं. इस की जितनी तारीफ की जाए वह कम है. यह आप की साहित्य के प्रति लग्न, इच्छा, आकांक्षा तथा साहित्यप्रेम को प्रदर्षित करता है. इस जज्बे को मेरा नमन. </p>
<p>मेरी लघुकथा में कुछ त्रुतिगत संशोधन है- कृपया प्रतिस्थपित करने की कृपा कीजिएगा--</p>
<p></p>
<p><span class="font-size-2"><b>(4). आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी <br/>वही बीवी</b></span><br/><span class="font-size-2">.</span><br/><span class="font-size-2">''भाई शादी करनी है तो किसी ने किसी लड़की के लिए "हां" करनी पड़ेगी,'' मोहन ने समझाया तो विनय बोला, '' मगर, उस की उम्र 19 वर्ष है और मेरी 45 वर्ष. फिर उस के पिताजी गहने के साथसाथ 3 लाख की एफडी मांग रहे हैं. हमारी जोड़ी नहीं जमेगी ?''</span><br/><span class="font-size-2">'' और, उस दूसरी वाली में क्या कमी है ? उस के लिए "हां" कर दो ?''</span><br/><span class="font-size-2">'' वह पति द्वारा छोड़ी हुई चालाक महिला है. फिर, उस के पिताजी को बहुत ज्यादा माल चाहिए. वह मैं नहीं दे सकता हूं.''</span><br/><span class="font-size-2">'' तब इस कम उम्र की लड़की से शादी कर लो ? इस में क्या बुराई है ? पिताजी गरीब और सीधेसादे है. वे जानते है कि तुम शिक्षक हो, इसलिए उन्हों ने शादी के लिए हां की है. अन्यथा तुम जैसे उम्रदराज से वे शादी करने को राजी नहीं होते .''</span><br/><span class="font-size-2">'' नहीं भाई ! हमारे बीच उम्र आड़े आ जाएगी. मैं घर पर अपना काम निपटा रहा होऊंगा और वह पड़ोस में ताकझांक कर रही होगी. मेरे शरीर और उस के शरीर को देखो. हमारा मेल संभव नहीं है.''</span><br/><span class="font-size-2">'' यदि तुम्हें शादी करनी है तो कहीं न कहीं समझौता करना ही पड़ेगा ?'' मोहन ने कहा तो विनय ने मोटरसाइकल दूसरी ओर मोड़ दी.</span><br/><span class="font-size-2">'' अरे भाई ! अब किधर चल दिए ? घर चलो. वैसे भी घुमतेघुमते बहुत देर हो गई है,'' मोहन ने विनय का कंधा पकड़ कर कहा.</span><br/><span class="font-size-2">'' जब समझौता ही करना है तो मेरी पुरानी बीवी कौनसी बुरी है ! इस से कम में तो वही मान जाएगी,'' कहते हुए उस ने मोटरसाइकल की गति तेज कर दी.</span></p> आद0 मंच संचालक भाई योगराज जी…tag:openbooksonline.com,2017-12-01:5170231:Comment:9008602017-12-01T03:06:39.986Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 मंच संचालक भाई योगराज जी सादर अभिवादन। रचनाओं के त्वरित संकलन और उत्सव के सफल संचालन पर मेरी कोटिश बधाइयाँ आपको। मेरी लघुकथा को संकलन में मान देने के लिए हृदय तल से आभार। सभी लघुकथाकारों और उत्साहवर्धन करने वालो सभी विद्वत जनों का भी आभार। सादर
आद0 मंच संचालक भाई योगराज जी सादर अभिवादन। रचनाओं के त्वरित संकलन और उत्सव के सफल संचालन पर मेरी कोटिश बधाइयाँ आपको। मेरी लघुकथा को संकलन में मान देने के लिए हृदय तल से आभार। सभी लघुकथाकारों और उत्साहवर्धन करने वालो सभी विद्वत जनों का भी आभार। सादर एक और सफल लघुकथा गोष्ठी और सं…tag:openbooksonline.com,2017-11-30:5170231:Comment:9009342017-11-30T19:21:38.292ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
एक और सफल लघुकथा गोष्ठी और संकलन के लिए आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर साहिब, सभी सहभागी रचनाकारों और टिप्पणीकर्ताओं को तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर हार्दिक आभार। जिस धीमी रफ़्तार से रचनाएं आ रही थीं, तो लग रहा था कि बेहतरीन दमदार लघुकथाएं मिलने वाली हैं। फिर भी 22 रचनाओं में से बहुत सु बढ़िया रचनाएं हमें पढ़ने को मिलीं। कुछ नये साथियों की सहभागिता से ख़ुशी हासिल हुई। 'सुबह के भूले' कुछ रचनाकारों की प्रतीक्षा हमेशा रहती ही है। नियमितता…
एक और सफल लघुकथा गोष्ठी और संकलन के लिए आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर साहिब, सभी सहभागी रचनाकारों और टिप्पणीकर्ताओं को तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर हार्दिक आभार। जिस धीमी रफ़्तार से रचनाएं आ रही थीं, तो लग रहा था कि बेहतरीन दमदार लघुकथाएं मिलने वाली हैं। फिर भी 22 रचनाओं में से बहुत सु बढ़िया रचनाएं हमें पढ़ने को मिलीं। कुछ नये साथियों की सहभागिता से ख़ुशी हासिल हुई। 'सुबह के भूले' कुछ रचनाकारों की प्रतीक्षा हमेशा रहती ही है। नियमितता से सीखने-सिखाने की गति तेज़ हो सकती है। सादर।