"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-34 में शामिल सभी लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-29T14:16:42Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/34-4?commentId=5170231%3AComment%3A912198&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय योगराज प्रभाकर सर,सादर…tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:Comment:9123852018-02-03T14:45:14.811Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://openbooksonline.com/profile/28fn40mg3o5v9
<p>आदरणीय योगराज प्रभाकर सर,सादर वन्दे! गोष्ठी की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं संकलन हेतु सादर आभार। क्रम 15 पर प्रस्तुति <strong>मेहनत पार लगाए </strong><em>में प्रथम शब्द को <strong>शेल्फ </strong> तथा <strong>प्रवक्ताओं </strong> शब्द को प्रतिस्थापित कर कृतार्थ करें। सादर</em></p>
<p>आदरणीय योगराज प्रभाकर सर,सादर वन्दे! गोष्ठी की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं संकलन हेतु सादर आभार। क्रम 15 पर प्रस्तुति <strong>मेहनत पार लगाए </strong><em>में प्रथम शब्द को <strong>शेल्फ </strong> तथा <strong>प्रवक्ताओं </strong> शब्द को प्रतिस्थापित कर कृतार्थ करें। सादर</em></p> हार्दिक आभार आ० नीता कसार जी. tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:Comment:9123652018-02-03T05:43:32.475Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हार्दिक आभार आ० नीता कसार जी. </p>
<p>हार्दिक आभार आ० नीता कसार जी. </p> यथा निवेदित तथा प्रस्थापित tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:Comment:9126372018-02-03T05:41:16.732Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित </p>
<p>यथा निवेदित तथा प्रस्थापित </p> यथा निवेदित तथा संशोधित.tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:Comment:9124642018-02-03T05:33:51.029Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित तथा संशोधित.</p>
<p>यथा निवेदित तथा संशोधित.</p> आद0 योगराज भाई जी सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2018-02-03:5170231:Comment:9123632018-02-03T05:15:53.160Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 योगराज भाई जी सादर अभिवादन। आपसे सादर निवेदन है कि संकलन में आई 6वी लघुकथा 'जैसा अतीत वैसा वर्तमान' के पहले पैरा को हटा दें। क्योंकि समीक्षात्मक रूप से पढ़ने पर वह लघुकथा को बोझिल बना रहा है। सादर</p>
<p>आद0 योगराज भाई जी सादर अभिवादन। आपसे सादर निवेदन है कि संकलन में आई 6वी लघुकथा 'जैसा अतीत वैसा वर्तमान' के पहले पैरा को हटा दें। क्योंकि समीक्षात्मक रूप से पढ़ने पर वह लघुकथा को बोझिल बना रहा है। सादर</p> आदरणीय योगराज सर, इस बार की ग…tag:openbooksonline.com,2018-02-02:5170231:Comment:9123432018-02-02T14:04:26.701ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आदरणीय योगराज सर, इस बार की गोष्ठी वाकई में ऐतिहासिक रही. एक से बढ़कर एक उम्दा लघुकथाएँ पढ़ने को मिलीं. सफल सञ्चालन एवं तीव्र संकलन के साथ-साथ ऐसा सामयिक विषय देने के लिए आपको ढेरों साधुवाद. साथ ही, सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>आपसे सादर निवेदन है कि अपनी समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए क्रमांक (1) पर संकलित लघुकथा को निम्नलिखित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. यदि संशोधन की कोई गुंजाइश हो तो अवश्य सूचित करें. सादर धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p><span><strong>ज़िन्दा…</strong></span></p>
<p>आदरणीय योगराज सर, इस बार की गोष्ठी वाकई में ऐतिहासिक रही. एक से बढ़कर एक उम्दा लघुकथाएँ पढ़ने को मिलीं. सफल सञ्चालन एवं तीव्र संकलन के साथ-साथ ऐसा सामयिक विषय देने के लिए आपको ढेरों साधुवाद. साथ ही, सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>आपसे सादर निवेदन है कि अपनी समीक्षात्मक दृष्टि डालते हुए क्रमांक (1) पर संकलित लघुकथा को निम्नलिखित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. यदि संशोधन की कोई गुंजाइश हो तो अवश्य सूचित करें. सादर धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p><span><strong>ज़िन्दा क़ब्रें</strong></span></p>
<p></p>
<p><span>अफ्रीका के घने जंगल में दो नंगे आदमी एक दूसरे के सामने से गुज़र रहे थे। पास आने पर एक ने पूछा, ‘‘इतिहास से छेड़छाड़...’’, दूसरे ने कहा ‘‘...नहीं होनी चाहिए।’’</span></p>
<p><br/><span>किसने सोचा था कि इतिहास को लेकर भी विश्वयुद्ध हो सकता है मगर हुआ। </span><span>‘‘उन कमीनों की इतनी हिम्मत कि उन्होंने हमारे महान राष्ट्रपति के चरित्र पर कीचड़ उछाला। कल का सूरज उनके मुल्क़ का आख़िरी सूरज होगा।’’ यही वो चिंगारी थी जिसने आग का रूप धारण कर लिया। इससे दूसरे देशों के नागरिकों ने भी अपनी सरकारों पर दबाव बनाया कि वो भी उन देशों के साथ ऐसा ही सुलूक करें ताकि फिर कोई उनके गौरवशाली इतिहास के साथ छेड़छाड़ न कर सके। शीघ्र ही पूरी दुनिया युद्ध की आग में जलने लगी।</span><br/></p>
<p></p>
<p><span>यह भयावह स्थिति बद से बदतर तब हो गयी जब सभी देशों में गृहयुद्ध छिड़ गया। ‘‘दुनिया का जितना भी इतिहास है वो दरबारी है। इसमें महिलाओं की तरह दबे-कुचले लोगों का भी कहीं ज़िक्र नहीं है।’’ वंचित वर्गों के कारण ख़ुद को श्रेष्ठ बताने वाली सभ्यताएँ अब दो मोर्चों पर लड़ रही थीं।</span><br/></p>
<p></p>
<p><span>जल्द ही युद्ध को रोकने के लिए इस पर चिन्तन आवश्यक हो गया कि आख़िर हम किस इतिहास को सही मानें? और इस पर भी कि ‘इतिहास से छेड़छाड़’ का क्या अर्थ है? उत्तर यह प्राप्त हुआ कि ‘इतिहास से छेड़छाड़’ का अर्थ ‘सत्य को छिपाना’ है। इसके लिए इतिहासकारों से कहीं ज़्यादा कवि तथा कलाकार ज़िम्मेदार थे। इसलिए उन्हें चौराहों पर चुन-चुन कर लटकाया गया। सत्य को ज़िन्दा रखने का काम दार्शनिकों का था जिसमें वो पूरी तरह से असफ़ल रहे। इससे पहले कि सरकारें उन्हें ढूँढतीं वे यूनान की एक प्राचीन गुफ़ा में जा कर छुप गये।</span><br/></p>
<p></p>
<p><span>‘‘मानव इतिहास की शुरुआत अफ्रीका से हुई है।’’ सभी राष्ट्राध्यक्षों ने इसे एकमत से स्वीकार करते हुए युद्ध समाप्ति की घोषणा की और कहा कि ‘‘इसके इतर जितना भी इतिहास है वो सब दूषित है। इसलिए अपने पूर्वजों की भाँति हम भी अफ्रीका के घने जंगलों में निर्वस्त्र होकर रहेंगे।’’ जिन चन्द लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया उन्हें देखते ही मार डालने का आदेश लागू है।</span><br/></p>
<p></p>
<p><span>‘‘इतिहास से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।’’ दोनों ने दोहराया और फिर एक दूसरे से दूर जाने लगे। उनमें से एक अभी थोड़ी ही दूर गया होगा कि उसने एक आदमी को पेड़ पर बन्दर की तरह लटके हुए देखा। इससे पहले कि वह पूछता, ‘‘इतिहास से छेड़छाड़...’’, बन्दर की तरह लटके हुए उस आदमी ने अपनी जीभ निकाली और उसे चिढ़ाने लगा।</span></p> ओ बी ओ लघुकथा गोष्ठी के सफल आ…tag:openbooksonline.com,2018-02-02:5170231:Comment:9123382018-02-02T11:16:24.392ZNita Kasarhttp://openbooksonline.com/profile/NitaKasar
<p>ओ बी ओ लघुकथा गोष्ठी के सफल आयोजन व संचालन के लिये बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनायें आद० योगराज प्रभाकर जी ।ओ बी ओ के सशक्त मंच के जरिये गूढ,उम्दा कथायें पढने सीखने मिलती है।सफर में होने के कारणकथा पर आये कमेंट्स का जवाब नही दे पाई।इसके लिये क्षमा करियेगा आप सभी मुझे ।</p>
<p>ओ बी ओ लघुकथा गोष्ठी के सफल आयोजन व संचालन के लिये बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनायें आद० योगराज प्रभाकर जी ।ओ बी ओ के सशक्त मंच के जरिये गूढ,उम्दा कथायें पढने सीखने मिलती है।सफर में होने के कारणकथा पर आये कमेंट्स का जवाब नही दे पाई।इसके लिये क्षमा करियेगा आप सभी मुझे ।</p> हार्दिक अभार आ० तस्दीक़ अहमद ख…tag:openbooksonline.com,2018-02-01:5170231:Comment:9123062018-02-01T14:38:55.723Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>हार्दिक अभार आ० तस्दीक़ अहमद खान साहिब.</p>
<p>हार्दिक अभार आ० तस्दीक़ अहमद खान साहिब.</p> बहुत बहुत शुक्रिया आ० तेजवीर…tag:openbooksonline.com,2018-02-01:5170231:Comment:9124212018-02-01T14:37:55.334Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आ० तेजवीर सिंह जी. "इतिहास" ने वाक़ई इतिहास रच दिया, जो बहुत ही हर्ष का विषय है. </p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आ० तेजवीर सिंह जी. "इतिहास" ने वाक़ई इतिहास रच दिया, जो बहुत ही हर्ष का विषय है. </p> वाक़ई इस बार आयोजन में बहुत ही…tag:openbooksonline.com,2018-02-01:5170231:Comment:9123222018-02-01T14:36:49.137Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>वाक़ई इस बार आयोजन में बहुत ही बाकमाल रचनाएँ आईं. आपकी स्नेहिल टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. </p>
<p>वाक़ई इस बार आयोजन में बहुत ही बाकमाल रचनाएँ आईं. आपकी स्नेहिल टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ. </p>