"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-36 में स्वीकृत लघुकथाएं - Open Books Online2024-03-28T22:33:21Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/36-5?commentId=5170231%3AComment%3A924116&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noयथा निवेदित - तथा प्रतिस्थापि…tag:openbooksonline.com,2018-04-09:5170231:Comment:9239982018-04-09T06:23:59.402Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>यथा निवेदित - तथा प्रतिस्थापित </p>
<p>यथा निवेदित - तथा प्रतिस्थापित </p> दोनों रचनाएँ क्रमांक 18 व 19…tag:openbooksonline.com,2018-04-09:5170231:Comment:9240842018-04-09T06:21:22.217Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>दोनों रचनाएँ क्रमांक 18 व 19 पर प्रतिस्थापित कर दी हैं, ध्यानाकर्ष्ण हेतु हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.</p>
<p>दोनों रचनाएँ क्रमांक 18 व 19 पर प्रतिस्थापित कर दी हैं, ध्यानाकर्ष्ण हेतु हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.</p> आदरणीय योगराज जी मेरी और आरण…tag:openbooksonline.com,2018-04-08:5170231:Comment:9241162018-04-08T05:43:13.709Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>आदरणीय योगराज जी मेरी और आरणीय मुज़्फ्फर जी की लघुकथा स॔कलन में नहीं हैं</p>
<p>आदरणीय योगराज जी मेरी और आरणीय मुज़्फ्फर जी की लघुकथा स॔कलन में नहीं हैं</p> हार्दिक आभार आदरणीय वीर मेहता…tag:openbooksonline.com,2018-04-06:5170231:Comment:9237742018-04-06T14:36:48.857ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>हार्दिक आभार आदरणीय वीर मेहता जी. वैसे इस सूची में आप अपनी लघुकथा का नाम लेना भूल गए. सादर.</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय वीर मेहता जी. वैसे इस सूची में आप अपनी लघुकथा का नाम लेना भूल गए. सादर.</p> आदरणीय योगराज प्रभाकर सर, लघु…tag:openbooksonline.com,2018-04-06:5170231:Comment:9237692018-04-06T14:29:03.060ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p><span>आदरणीय योगराज प्रभाकर सर, लघुकथा गोष्ठी अंक 36 के सफल आयोजन, कुशल संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आपसे निवेदन है कि क्रमांक 14 पर अंकित लघुकथा "विष बेल" को निम्न लघुकथा से प्रतिस्थापित कर दें. सादर धन्यवाद.</span></p>
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<p><strong>विष बेल </strong><br></br><br></br><span>‘‘अरे कोई इस पिलिया का मुँह बन्द कराओ!’’ उच्च अधिकारी ने उस बच्ची को एक हाथ से उठा कर लाशों के ढेर पर फेंकते हुए कहा।</span><br></br><span>फ़ौरन ही एक सैनिक ने बच्ची को वहाँ से उठा कर उस कुँए में डाल…</span></p>
<p><span>आदरणीय योगराज प्रभाकर सर, लघुकथा गोष्ठी अंक 36 के सफल आयोजन, कुशल संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आपसे निवेदन है कि क्रमांक 14 पर अंकित लघुकथा "विष बेल" को निम्न लघुकथा से प्रतिस्थापित कर दें. सादर धन्यवाद.</span></p>
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<p><strong>विष बेल </strong><br/><br/><span>‘‘अरे कोई इस पिलिया का मुँह बन्द कराओ!’’ उच्च अधिकारी ने उस बच्ची को एक हाथ से उठा कर लाशों के ढेर पर फेंकते हुए कहा।</span><br/><span>फ़ौरन ही एक सैनिक ने बच्ची को वहाँ से उठा कर उस कुँए में डाल दिया जहाँ पहले से ही अनगिनत बच्चों की लाशें तैर रही थीं। वह इन शिविरों में अकेले ही हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारने वाला एक वीर सैनिक था।</span><br/><span>बच्ची के ख़ामोश होते ही सभी सैनिक समवेत स्वर में बोल उठे ‘‘हम जल्द ही इस धरती को स्वर्ग बना देंगे।’’</span><br/><span>‘‘मुक्त करो इन कीड़ों को।’’ उस अधिकारी ने शिविर में खड़े हुए लोगों की तरफ़ इशारा किया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया।</span><br/><span>श्रम योग्य पुरुषों को अलग करने के बाद लोगों के सर से बाल उतारने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी थी। आगे बढ़कर जैसे ही उस वीर सैनिक ने एक महिला के बाल उतारने की कोशिश की तो वह चौंक गया। वह उसकी प्रेमिका थी। ‘तुम? तो तुम इसलिए मुझे छोड़कर चले गये थे?’ महिला ने आँखों ही आँखों में उससे सवाल पूछा।</span><br/><span>वह प्रेमी जो अक्सर अपनी प्रेमिका से कहा करता था, ‘‘मुझे बस दो ही चीज़ें पसन्द हैं, एक तुम्हारी आँखों में डूबना और दूसरा तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से खेलना।’’ थोड़ी देर तक वहीं जड़वत खड़ा रहा। फिर उसने अपना उस्तरा निकाला और वही किया जो वह करता आया था।</span><br/><span>लोगों को गैस चैम्बर की तरफ़ ले जाने की बारी आ चुकी थी। गैस चैम्बर के दरवाज़े पर पहुँच कर उसने आख़िरी बार अपनी प्रेमिका की आँखों में देखा। झील सूख चुकी थी। उसने प्रेमिका का हाथ पकड़ा और उसे गैस चैम्बर के अन्दर भेज दिया।</span><br/><span>इससे पहले कि दरवाज़ा पूरी तरह बन्द होता उस महिला ने अपने प्रेमी से कहा, ‘‘जिस रोती हुई बच्ची को तुमने कुँए में अपने हाथों से फेंका है वह तुम्हारी बेटी थी जिसे तुम मेरी कोख में ही छोड़कर चले आये थे।’’ इतना सुनते ही वह धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया।</span><br/><span>ज़हरीली गैस चैम्बर के अन्दर भरने लगी। ज़मीन पर बैठे-बैठे ही वह अपनी प्रेमिका को तड़पते और मरते हुए देखता रहा। फिर उसने अपनी पिस्टल निकाली और ख़ुद को गोली मार ली।</span></p>
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<p></p> आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री…tag:openbooksonline.com,2018-04-03:5170231:Comment:9231802018-04-03T16:54:06.097ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी "<span style="text-decoration: underline;"><em><strong>ओपनबुक्सओनलाइनडॉटकॉम</strong></em></span>" की मासिक लघुकथा गोष्ठी -36- 'पराजित योद्धा' के शानदार सफल आयोजन और संकलन के लिए और ओबीओ के <strong>आठवें वर्ष-प्रवेश</strong> पर आपको, ओबीओ-परिवार और सभी सहभागी रचनाकारों को बहुत-बहुत <strong>मुबारकबाद</strong> और <strong>शुभकामनाएं</strong>। मेरी मिश्रित शैली की लघुकथा को संकलन में (5 वें क्रम में) स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया।…</p>
<p>आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी "<span style="text-decoration: underline;"><em><strong>ओपनबुक्सओनलाइनडॉटकॉम</strong></em></span>" की मासिक लघुकथा गोष्ठी -36- 'पराजित योद्धा' के शानदार सफल आयोजन और संकलन के लिए और ओबीओ के <strong>आठवें वर्ष-प्रवेश</strong> पर आपको, ओबीओ-परिवार और सभी सहभागी रचनाकारों को बहुत-बहुत <strong>मुबारकबाद</strong> और <strong>शुभकामनाएं</strong>। मेरी मिश्रित शैली की लघुकथा को संकलन में (5 वें क्रम में) स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। प्राप्त टिप्पणियों और इस्लाह मुताबिक अपनी मिश्रित शैली की लघुकथा को क्रमशः पूरी तरह केवल पत्रात्मक शैली में तथा फिर केवल डायरी शैली में लिख कर परिमार्जित लघुकथाएं यहां प्रेषित कर रहा हूं अवलोकनार्थ। इनमें से जो/दोनों/तीनों उपयुक्त हों, कृपया उसे/उन्हें संकलन के क्रमांक 5 पर प्रतिस्थापित कर दीजिएगा। पात्र तथा कथ्य अनुसार, यदि इनमें भी कुछ कमियां रह गई हों, तो कृपया मार्गदर्शन प्रदान कीजियेगा :<br/>______________________________________________<br/>(<strong>पत्रात्मक शैली में परिमार्जन</strong>- प्रयास) :</p>
<p></p>
<p><em><strong>'युद्ध कर' (लघुकथा) :</strong></em></p>
<p></p>
<p>"मेरी लैला 'नाज़ो',<br/>आज तुम्हारी दूसरी चिठ्ठी बिस्तर के नीचे मिली। अच्छा है कि तुम अपनी भड़ास यूं निकाल देती हो। तुम्हें लगता है कि तुम मुझसे परेशान हो, लेकिन मेरी अम्मी और अपने देवर- देवरानी को क्यूं लपेट रही हो? तलाक़ की राह या ख़ुदक़ुशी जैसी धमकी की बेवक़ूफियां क्यों? तुम्हारा मुझसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा होना किस काम का? ठीक है, हमारे ख़्यालात और तौर-तरीक़े बेमेल हैं। शादी के पहले हम यह महसूस नहीं कर पाये। मरे जा रहे थे एक दूसरे के लिए! तुमने यह भी नहीं सोचा कि मैं कम पढ़ा-लिखा अॉटो चलाने वाला ग़रीब हूं! मेरा क्या कसूर? तुम्हारी तीनों छोटी बहनों की ख़ातिर तुम्हारे अब्बू ने तुम्हारी शादी मुझसे कर दी! हम समझे कि उन्हें हमारा प्यार कबूल है! हमने सोचा कि तुम मुझे इज़्ज़त दोगी, प्यार करती रहोगी। क्या पता था कि नौकरी करते हुए रईस सहेलियों और टीवी धारावाहिकों के असर से तुम यूं मुझ पर हावी होने लगोगी। तुमने मुझे कई बार तलाक़ के लिए उकसाया; बहस के हालात पैदा किए। लेकिन मैं चुप ही रहा। .... मैं तलाक़ नहीं दूंगा, यह तुम अच्छी तरह समझ लो! बच्चे बड़े हो रहे हैं! तुम्हारे अब्बू भी अब न रहे!"<br/> तुम्हें तलाक़ क्यों दूं। क्या कमी है तुम में? मेरी पसंद की हो! लड़ाई-झगड़े और बहस तो सब में होती हैं, रईसों में भी! कई बेमेल रिश्ते हो जाते हैं मुहब्बत या मज़बूरी के नाम पर! तुमने कितनी बार मेरी बेइज़्ज़ती कितने लोगों के सामने की! मैंने भी तुम्हारी की! तुमने हमारे मायके वालों को बुरा-भला कहा, तो मैंने तुम्हारे! बात बराबर! फिर तलाक़ या ख़ुदक़ुशी जैसे इरादे क्यों? मुझ में और तुम में सिर्फ यही फ़र्क है नाज़ो कि मैं अपनी औक़ात में रहकर ज़मीं पर रहता हूं! दिन-रात मेहनत कर के पैसे कमाता हूं ! लेकिन मुझसे ज़्यादा पढ़े-लिखे होने के सबब से और सरकारी नौकरी करने की वज़ह से, कम मेहनत में ज़्यादा पैसे कमा कर, ग़लत सहेलियों के साथ तुम हवा में उड़ने लगी हो! अपनी व मेरी औक़ात से बाहर जा रही हो! ख़ुदा गवाह है कि मैंने न सिर्फ़ तुम्हें अपने बजट में ख़ुश रखने की कोशिश की है, बल्कि वक्त-व-वक़्त तुम्हें समझाता रहा हूं कि बच्चों पर ध्यान दो, बच्चे अब बड़े हो रहे हैं! तुम मेरी ज़रूरतें पूरी कर सकती हो, लेकिन करती नहीं हो! मैं तुम्हारी ज़रूरतें पूरी कर सकता हूं, लेकिन तुम्हें पता नहीं कौन सी हवा लग गई है? ... और ये इस तरह की चिट्ठियां रसोई में और बिस्तर के नीचे छिपाना कहां से सीखा तुमने? सहेलियों से या टीवी चैनलों के धारावाहिकों और फ़िल्मों से? मुंहफट बहस करने की तरह? तुम्हें मालूम है कि मैं और मेरी अम्मीजान चुपचाप यह सब बर्दाश्त कर रहे हैं, क्योंकि तुम हमारी सहारा भी हो! लव-मैरिज है हमारी, कोई मज़ाक नहीं! तुमने ख़त में अपने जमा पैसे ख़ुदक़ुशी करने के बाद सिर्फ बच्चों के नाम करने की बात लिखी? मैं इतना बुरा हूं, मुझ पर भरोसा इतना कम? कब से? न मुझमें कोई ऐब है, न ही तुम में! फिर किस बात की अहसास-कमतरी तुम्हें तलाक़ या ख़ुदक़ुशी के लिए उकसाती है?<br/>तुम्हें नहीं पता कि आज फिर मैं गज़रे लेकर किसी और मूड से घर आया था लेकिन तुम्हारे इस ख़त ने सिर दर्द ही दिया। ख़ैर, अपनी सेवा ख़ुद करना आता है मुझे! तुम यूं ही खुर्राटें भर के सोती रहो, मैं भी सो ही जाऊंगा!<br/> हार गया हूं तुम्हें समझाते हुए, फिर भी एक उम्मीद है। शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। अधिकतर लोगों की ऐसी ही ज़िन्दगी कटा करती है!"</p>
<p><br/>सिर्फ़ तुम्हारा,<br/>आसिफ़</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित)</p>
<p>____________________________________________</p>
<p><br/>(<strong>डायरी शैली में परिमार्जन</strong>-प्रयास) :</p>
<p></p>
<p><em><strong>'युद्ध कर' (लघुकथा) :</strong></em></p>
<p></p>
<p>30 मार्च, 2018 (शनिवार)<br/>[रात 11: 30 बजे]</p>
<p><br/>मेरी लैला 'नाज़ो' की दूसरी चिठ्ठी आज अचानक बिस्तर के नीचे मिली। शायद मेरा इंतज़ार करती हुई वह खुर्राटें भरते हुए सो गई दोनों बच्चों के साथ। क्या करूं, आज कुछ ज़्यादा ही सवारियां मिल गईं!<br/> ख़त लिख कर वह अपनी भड़ास यूं निकाल देती है। लगता है कि मुझसे बहुत परेशान हो चुकी है या फिर नये ज़माने के चलन से! लेकिन, मेरी अम्मी और अपने देवर- देवरानी को क्यूं लपेट रही है इस चिट्ठी में? ऐसी बेवक़ूफियां क्यों? उसका मुझसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा होना किस काम का? ठीक है, हमारे ख़्यालात और तौर-तरीक़े बेमेल हैं। शादी के पहले हम यह महसूस नहीं कर पाये। मरे जा रहे थे एक दूसरे के लिए! उसने यह भी नहीं सोचा कि मैं कम पढ़ा-लिखा अॉटो चलाने वाला ग़रीब हूं! आख़िर मेरा क्या कसूर? उसकी तीनों छोटी बहनों की ख़ातिर उसके अब्बू ने उसकी शादी मुझसे कर दी! हम समझे कि उन्हें हमारा प्यार कबूल है! हमने सोचा कि वह मुझे इज़्ज़त देगी, प्यार करती रहेगी। क्या पता था कि नौकरी करते हुए रईस सहेलियों और टीवी धारावाहिकों के असर से वह यूं मुझ पर हावी होने लगेगी। उसने मुझे कई बार तलाक़ के लिए उकसाया बहस के हालात पैदा करके। लेकिन मैं चुप ही रहा। ...मैं तलाक़ नहीं दूंगा! बच्चे बड़े हो रहे हैं! अब तो उसके अब्बू भी नहीं रहे!<br/>मैं उसे तलाक़ क्यों दूं। क्या कमी है उस में? मेरी ही पसंद की है! लड़ाई-झगड़े और बहसें तो सब में होती हैं, रईसों में भी! कई बेमेल रिश्ते हो जाते हैं मुहब्बत या मज़बूरी के नाम पर! उस ने कितनी बार मेरी बेइज़्ज़ती कितने लोगों के सामने की! मैंने भी उसकी की! उसने हमारे मायके वालों को बुरा-भला कहा, तो मैंने उसके! बात बराबर! फिर तलाक़ या ख़ुदक़ुशी जैसे इरादे क्यों? मुझ में और उसमें सिर्फ़ यही फ़र्क है न कि मैं अपनी औक़ात में रहकर ज़मीं पर रहता हूं! दिन-रात मेहनत कर के पैसे कमाता हूं ! लेकिन मुझसे ज़्यादा पढ़े-लिखे होने के सबब से और सरकारी नौकरी करने की वज़ह से कम मेहनत में ज़्यादा पैसे कमा कर, ग़लत सहेलियों के साथ नाज़ो हवा में उड़ने लगी है, अपनी व मेरी औक़ात से बाहर जा रही है! ख़ुदा गवाह है कि मैंने न सिर्फ़ अपने बजट में उसे ख़ुश रखने की कोशिश की है, बल्कि वक्त-व-वक़्त उसे समझाता भी रहा हूं कि बच्चों पर ध्यान दो, बच्चे अब बड़े हो रहे हैं! वह मेरी ज़रूरतें पूरी कर सकती है, लेकिन करती नहीं है! मैं उसकी ज़रूरतें पूरी कर सकता हूं, लेकिन उसे पता नहीं कौन सी हवा लग गई है? ... और ये इस तरह की चिट्ठियां रसोई में और बिस्तर के नीचे छिपाना उन रईस सहेलियों से या टीवी चैनलों के धारावाहिकों और फ़िल्मों से ही तो सीखा उसने मुंहफट बहस करने की तरह? उसे मालूम है कि मैं और मेरी अम्मीजान चुपचाप यह सब बर्दाश्त कर रहे हैं, क्योंकि वह हमारा सहारा भी है! लव-मैरिज है हमारी, कोई मज़ाक नहीं! लेकिन इस ख़त में उसने ख़ुदक़ुशी करने के बाद अपने जमा पैसे सिर्फ बच्चों के नाम करने की बात लिखी? मैं इतना बुरा हूं, मुझ पर भरोसा इतना कम? कब से? न मुझमें कोई ऐब है, न ही उस में! फिर किस बात की अहसास-कमतरी उसे तलाक़ या ख़ुदक़ुशी के लिए उकसाती है, कुछ समझ में नहीं आता!<br/>उसे नहीं पता कि आज फिर मैं गज़रे लेकर किसी और मूड से घर आया था लेकिन उसके इस ख़त ने सिर दर्द ही दिया। ख़ैर, अपनी ख़िदमात ख़ुद करना आता है मुझे! वह यूं ही खुर्राटें भर के सोती रहे, मैं भी सो ही जाऊंगा!<br/> हार गया हूं उसे समझाते हुए, फिर भी एक उम्मीद है। शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। अधिकतर लोगों की ऐसी ही ज़िन्दगी कटा करती है!</p>
<p><br/>हमेशा से उसका ही,<br/>आसिफ़</p>
<p><br/>(मौलिक व अप्रकाशित)</p> लघुकथा गोष्ठी अंक 36 के सफल आ…tag:openbooksonline.com,2018-04-02:5170231:Comment:9231402018-04-02T08:36:06.483ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>लघुकथा गोष्ठी अंक 36 के सफल आयोजन, सुन्दर संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी और पूरी टीम को.. हालांकि इस बार के आयोजन में सभी लघुकथाए बेहतरीन थी लेकिन विशेस्तौर से मुझे आदरणीय तेज् वीर जी, सुनील कुमार जी, महेंदर कुमार जी और सीमा जी की रचनाओं ने बहुत प्रभावित किया....</p>
<p>ये आयोजन दो मायनों में बहुत महत्वपूर्ण होता है, एक इसके शीर्षक / विषय इतना उम्दा होते है कि लेखक को बड़ी ही गंभीरता से इसके लिए कथ्य तलाश करना पड़ता है. दुसरे आयोजन में प्रस्तुत रचनाओं पर…</p>
<p>लघुकथा गोष्ठी अंक 36 के सफल आयोजन, सुन्दर संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी और पूरी टीम को.. हालांकि इस बार के आयोजन में सभी लघुकथाए बेहतरीन थी लेकिन विशेस्तौर से मुझे आदरणीय तेज् वीर जी, सुनील कुमार जी, महेंदर कुमार जी और सीमा जी की रचनाओं ने बहुत प्रभावित किया....</p>
<p>ये आयोजन दो मायनों में बहुत महत्वपूर्ण होता है, एक इसके शीर्षक / विषय इतना उम्दा होते है कि लेखक को बड़ी ही गंभीरता से इसके लिए कथ्य तलाश करना पड़ता है. दुसरे आयोजन में प्रस्तुत रचनाओं पर आये कमेंट्स से सहज ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है.... सादर आभार ओ बी ओ टीम को इस आयोजन को निरंतर चलाते रहने के लिए.... </p> हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्…tag:openbooksonline.com,2018-04-02:5170231:Comment:9231252018-04-02T06:02:21.202ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी, ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - 36 के सफल आयोजन,शानदार संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई।यह गोष्ठी मेरे लिये एक दृष्टिकोण से तो सुखद और उपलव्धि पूर्ण रही क्योंकि इस गोष्ठी का शुभारंभ मेरी लघुकथा से हुआ था एवम मेरी लघुकथा को पहली बार इतने गुणी जनों द्वारा सराहना मिली। लेकिन साथ ही मुझे अफसोस रहा कि इंटरनेट ने दोनों ही दिन (30/03/2018 व 31/03/2018) इतना परेशान किया कि मैं अन्य लघुकथाकारों की लघुकथाओं पर अपनी टिप्पणी भी सही तरीके से नहीं कर…</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी, ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - 36 के सफल आयोजन,शानदार संचालन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई।यह गोष्ठी मेरे लिये एक दृष्टिकोण से तो सुखद और उपलव्धि पूर्ण रही क्योंकि इस गोष्ठी का शुभारंभ मेरी लघुकथा से हुआ था एवम मेरी लघुकथा को पहली बार इतने गुणी जनों द्वारा सराहना मिली। लेकिन साथ ही मुझे अफसोस रहा कि इंटरनेट ने दोनों ही दिन (30/03/2018 व 31/03/2018) इतना परेशान किया कि मैं अन्य लघुकथाकारों की लघुकथाओं पर अपनी टिप्पणी भी सही तरीके से नहीं कर सका।31.03.2018 की रात को जल्दी जल्दी टिप्पणी पोस्ट करने की कोशिश की। आदरणीय सीमा जी की अंतिम लघुकथा थी।उसके लिये टिप्पणी लिख चुका था।जैसे हीपोस्ट करने का प्रयास किया।“रिप्लाईज क्लोसड” का संदेश आ गया।बहुत दुख हुआ, कि इतनी बेहतरीन लघुकथा पर एक बधाई संदेश भी नहीं दे सका।</p>
<p>विशेष अनुरोध - आदरणीय प्रधान संपादक महोदय जी से करवद्ध निवेदन है कि मुझे, मेरी लघुकथा का शीर्षक "कुदरत की मार" के स्थान पर "कुदरत से खिलवाड़" करने की अनुमति प्रदान की जाय। सादर।</p>