"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-37 में स्वीकृत सभी लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-29T11:31:17Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/37-4?commentId=5170231%3AComment%3A928117&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noसमयाभाव के कारण इस बार न तो म…tag:openbooksonline.com,2018-05-14:5170231:Comment:9305042018-05-14T03:33:26.448ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>समयाभाव के कारण इस बार न तो मैं साथी रचनाकारों की लघुकथाओं पर टिप्पणी कर पाया और न ही अपनी लघुकथा पर आयी टिप्पणियों का प्रत्युत्तर. इस हेतु मैं सभी से क्षमाप्रार्थी हूँ. मेरी लघुकथा को लेकर एक आम राय यह रही कि यह अस्पष्ट है. इसलिए इसे मैंने संशोधित कर थोड़ा और स्पष्ट करने की कोशिश की है. आदरणीय योगराज सर से सादर निवेदन है कि क्रमांक 4 पर संकलित लघुकथा को इस संशोधित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. सभी सुधि साथियों और आदरणीय मंच संचालक महोदय को एक और सफल लघुकथा गोष्ठी की हार्दिक बधाई.…</p>
<p>समयाभाव के कारण इस बार न तो मैं साथी रचनाकारों की लघुकथाओं पर टिप्पणी कर पाया और न ही अपनी लघुकथा पर आयी टिप्पणियों का प्रत्युत्तर. इस हेतु मैं सभी से क्षमाप्रार्थी हूँ. मेरी लघुकथा को लेकर एक आम राय यह रही कि यह अस्पष्ट है. इसलिए इसे मैंने संशोधित कर थोड़ा और स्पष्ट करने की कोशिश की है. आदरणीय योगराज सर से सादर निवेदन है कि क्रमांक 4 पर संकलित लघुकथा को इस संशोधित लघुकथा से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें. सभी सुधि साथियों और आदरणीय मंच संचालक महोदय को एक और सफल लघुकथा गोष्ठी की हार्दिक बधाई. बहुत-बहुत धन्यवाद.</p>
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<p><strong>अधूरे ख़्वाब</strong></p>
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<p>अंग्रेज़ सैनिकों की टुकड़ी इमारत में प्रवेश कर चुकी थी।</p>
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<p>“न्याय की देवी वो द्रौपदी है जिसकी अस्मत कृष्ण ने ही लूट ली।’’ बूढ़े चित्रकार ने उस न्यायाधीश पर कूची फेरते हुए कहा जो एक औरत की साड़ी उतार रहा था। औरत की हालत अत्यन्त दयनीय थी। वह बेहद कमज़ोर हो चुकी थी। उसकी तलवार टूटी हुई थी तो तराज़ू का पलड़ा एक ओर झुका हुआ। उसके पास काले कोट पहने हुए ढेर सारी आदमी खड़े थे जिनकी एक आँख पर काली पट्टी बंधी थी। वेे सभी उस औरत को निर्वस्त्र होते देख ज़ोर-ज़ोर से हँस रहे थे।</p>
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<p>बूढ़े चित्रकार के कमरे में चारों तरफ़ ऐसे ही चित्र बिखरे पड़े थे। यहाँ तक कि उसकी दीवारें भी तस्वीरों से रंगी हुई थीं। बूढ़ा चित्रकार उस दीवार की तरफ़ मुड़ा जहाँ पर वृत्ताकार भवन की तस्वीर बनी हुई थी। भवन की छत पर सफ़ेद कपड़े पहने हुए ढेर सारे आदमी बैठे थे जिनकी पीठ भवन की ओर थी तो मुँह बाहर की ओर। शौच की मुद्रा में बैठे हुए उन सभी लोगों के सामने एक लोटा रखा था। “सारे पन्ने बदल दिये गए हैं। अब ये किताब जादुई हो गयी है।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन नेताओं के लोटों में संविधान के फटे हुए पन्ने भरने लगा।</p>
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<p>उस आलीशान भवन के बाहर एक टूटे हुए खम्भे के समीप सूट-बूट पहने हुए कुछ लोग खड़े थे जो उस भवन से निकलने वाले मल को आकर्षक डिब्बों में पैक कर रहे थे। “ये शुद्ध सोना है। जनता की ज़िन्दगी बदल देगा।” उन्होंने एक काग़ज़ पर लिखा और हवा में उछाल दिया। इसके बाद उन लोगों ने अपने गले में लटके हुए कैमरों से जो सिर्फ़ एक ही रंग की तस्वीरें क़ैद करते थे, सामने वाले उजाड़ बाग़ की तस्वीरें लीं। तस्वीरें लेते ही उजाड़ बाग़ हरा-भरा हो गया।</p>
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<p>इधर अंग्रेज़ सैनिक सीढ़ियों तक पहुँच चुके थे।</p>
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<p>बूढ़े चित्रकार ने अपनी नज़रें चारों तरफ़ दौड़ायीं। हर कहीं रंगों की जद्दोजहद मौजूद थी। सबसे स्याह तस्वीर युवाओं की थी। औरतों के चित्र से तो रंग ही गायब था। वह उस दीवार के पास जा कर खड़ा हो गया जहाँ बड़ी-बड़ी मशीनें विकास उगल रही थीं। उन मशीनों को पुलिस और सेना वाले मिलकर खींच रहे थे। “ये मशीनें जल, जंगल और जमीन को एक ऐसे स्वर्ग में तब्दील करती हैं जहाँ आदमी नहीं सिर्फ़ देवता रहते हैं।” बूढ़े चित्रकार ने कहा और उन मोटे लोगों के पैरों के पास जो उन मशीनों के मालिक थे, नरमुण्ड बनाने लगा।</p>
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<p>तभी दरवाजा टूटने की आवाज़ आयी। अंग्रेज़ सैनिक उस बूढ़े चित्रकार के सामने खड़े थे। ‘‘ये रहा देशद्रोही!’’ सेनानायक के कहते ही सैकड़ों गोलियाँ उस बूढ़े के सीने में समा गयीं। लेकिन अभी भी उसमें कुछ जान बाकी थी। अपने स्वतंत्रता सेनानी साथियों की लाशों के चित्र के बीच से रेंगता हुआ वह उस एकमात्र ख़ूबसूरत चित्र के पास पहुँचा जहाँ उगते हुए सूर्य के बीच एक नवयुवक खड़ा था। वह नवयुवक वही बूढ़ा चित्रकार था। उस की आँखों में सुनहरे ख़्वाब थे तो हाथों में देश का झंडा और वह अभी भी मुस्कुरा रहा था। इससे पहले कि वह बूढ़ा चित्रकार रेंग कर उस तस्वीर के क़रीब पहुँचता एक अंग्रेज सैनिक ने आगे बढ़कर दो गोलियाँ उसकी आँखों में मार कर उसे हमेशा के लिए वहीं पर ख़ामोश कर दिया।</p> बेहतरीन समसामयिक और महत्त्वपू…tag:openbooksonline.com,2018-05-03:5170231:Comment:9281172018-05-03T11:30:13.410ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>बेहतरीन समसामयिक और महत्त्वपूर्ण विषय पर लघुकथा प्रेमियों और रचनाकारों को मन की बात सम्प्रेषित करने का अवसर प्रदान करने के लिए और शानदार संकलन में सभी सम्मानित रचनाकारों के साथ मेरी रचना को 7 वें स्थान पर स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार।</p>
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<p>शीर्षक में अर्थ संबंधी एक टिप्पणी आईं थी। मेरा आशय सोज़ = दुख/मातम,... से था। नेट अर्थ के बतौर। यदि त्रुटिपूर्ण हो, तो मार्गदर्शन निवेदित।</p>
<p>रचना में किनारे से गिनने पर सत्रहवीं पंक्ति में यह शब्द समूह दो बार…</p>
<p>बेहतरीन समसामयिक और महत्त्वपूर्ण विषय पर लघुकथा प्रेमियों और रचनाकारों को मन की बात सम्प्रेषित करने का अवसर प्रदान करने के लिए और शानदार संकलन में सभी सम्मानित रचनाकारों के साथ मेरी रचना को 7 वें स्थान पर स्थापित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार।</p>
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<p>शीर्षक में अर्थ संबंधी एक टिप्पणी आईं थी। मेरा आशय सोज़ = दुख/मातम,... से था। नेट अर्थ के बतौर। यदि त्रुटिपूर्ण हो, तो मार्गदर्शन निवेदित।</p>
<p>रचना में किनारे से गिनने पर सत्रहवीं पंक्ति में यह शब्द समूह दो बार टंकित हो गया है। कृपया सही कर दीजियेगा -// <span><em><strong>पढ़ाया जाता है </strong></em>//</span></p>
<p><span>इसी तरह <em>दसवीं</em> और <em>अंतिम</em> पंक्ति के पहले वाले शब्दों में स्पेसिंग नहीं हो सकी है। कृपया इन दोनों जगहों पर दो शब्दों के बीच एक स्पेस दे दीजिए। धन्यवाद।</span></p> जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदा…tag:openbooksonline.com,2018-05-01:5170231:Comment:9275922018-05-01T09:33:31.898ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,लघुकथा गोष्ठी अंक-37 के त्वरित संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब योगराज प्रभाकर साहिब आदाब,लघुकथा गोष्ठी अंक-37 के त्वरित संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।</p> मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ ब…tag:openbooksonline.com,2018-05-01:5170231:Comment:9277682018-05-01T09:29:56.268ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक--37 की कामयाब निज़ामत और त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।</p>
<p>मुहतरम जनाब योगराज साहिब ,ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्टी अंक--37 की कामयाब निज़ामत और त्वरित संकलन के लिए मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।</p> सर जी , मेरी लघु कथा को संकलन…tag:openbooksonline.com,2018-05-01:5170231:Comment:9275822018-05-01T07:26:20.461ZMohan Begowalhttp://openbooksonline.com/profile/MohanBegowal
<p>सर जी , मेरी लघु कथा को संकलन का हिस्सा बनाने के लिए , आप जी का बहुत धन्यवाद</p>
<p>सर जी , मेरी लघु कथा को संकलन का हिस्सा बनाने के लिए , आप जी का बहुत धन्यवाद</p> ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक…tag:openbooksonline.com,2018-05-01:5170231:Comment:9275732018-05-01T04:56:37.832ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - ३७ के सफल संचालन, शानदार संपादन एवम त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।</p>
<p>ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक - ३७ के सफल संचालन, शानदार संपादन एवम त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।</p>