"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44 (विषय: परिणाम) - Open Books Online2024-03-28T22:23:30Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/44-4?commentId=5170231%3AComment%3A964237&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noबहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय वीर…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9642722018-11-30T18:17:43.001ZBarkha Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/BarkhaShukla
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय वीर जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी ,आभार ,सादर </p>
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय वीर जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी ,आभार ,सादर </p> बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9644202018-11-30T18:16:08.723ZBarkha Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/BarkhaShukla
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी ,आभार ,सादर </p>
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,आपके सुझाव पर ध्यान दूँगी ,आभार ,सादर </p> बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आरो…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9641922018-11-30T18:14:31.891ZBarkha Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/BarkhaShukla
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आरोफ जी ,आपके सुझाव पर ध्यान देकर सुधार की कोशिश करूँगी ,आभार ,सादर </p>
<p>बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आरोफ जी ,आपके सुझाव पर ध्यान देकर सुधार की कोशिश करूँगी ,आभार ,सादर </p> आत्महत्या
"मैं जीना नहीं चाहत…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9643212018-11-30T18:10:15.636ZDr. Kumar Sambhav Joshihttp://openbooksonline.com/profile/DrKumarSambhavJoshi
आत्महत्या<br />
"मैं जीना नहीं चाहता यार!"<br />
"लेकिन आत्महत्या पाप है."<br />
"पाप-वाप रहने दो, कोई तरीका बताओ."<br />
"तरीके तो कई हैं. पानी में जहर घोलकर पी जाओ."<br />
"हमारी फैक्टरियों का सारा कचरा नदी में जाता है. सारा पानी जहरीला है, पूरा शहर वही जहर पीता है."<br />
"भई! साँस रोक लो, दम घुट जाएगा."<br />
"हमारी फैक्टरी, गाड़ियाँ इतना धुआँ फैंक रही है कि दम घुटने की आदत पड़ चुकी है."<br />
"पैट्रोल छिड़ककर आग लगा लो."<br />
"पैट्रोल बड़ा मँहगा है और पेड़ हमने सारे काट डाले कि लकड़ी भी नहीं मिलती."<br />
"तो किसी गुण्डे से झगड़ा कर लो, वो टपका…
आत्महत्या<br />
"मैं जीना नहीं चाहता यार!"<br />
"लेकिन आत्महत्या पाप है."<br />
"पाप-वाप रहने दो, कोई तरीका बताओ."<br />
"तरीके तो कई हैं. पानी में जहर घोलकर पी जाओ."<br />
"हमारी फैक्टरियों का सारा कचरा नदी में जाता है. सारा पानी जहरीला है, पूरा शहर वही जहर पीता है."<br />
"भई! साँस रोक लो, दम घुट जाएगा."<br />
"हमारी फैक्टरी, गाड़ियाँ इतना धुआँ फैंक रही है कि दम घुटने की आदत पड़ चुकी है."<br />
"पैट्रोल छिड़ककर आग लगा लो."<br />
"पैट्रोल बड़ा मँहगा है और पेड़ हमने सारे काट डाले कि लकड़ी भी नहीं मिलती."<br />
"तो किसी गुण्डे से झगड़ा कर लो, वो टपका डालेगा."<br />
"नहीं यार! पिछले साल विधायक जी से पंगा हो गया था. ये लोग हमसे ज्यादा परिवार को तंग करते हैं."<br />
"अबे तो खुद ही छुरा घोप लो."<br />
"यह भी हमारा पूरा समाज ही कर रहा है. जाति-धर्म, नस्ल-निष्ठा के आधार पर एक-दूसरे की पीठ में छुरा ही तो घोप रहे हैं."<br />
"अरे यार रस्सी का फंदा बनाकर फाँसी लगा लो या गला घोंट लो."<br />
"क्या तुम भी..! यह तो हम औरतों और गर्भस्थ या नवजात कन्याओं के लिए आजमाते हैं."<br />
"फिर कहीं अज्ञात स्थान पर चले जाओ. कोई बोलने-पूछने वाला ही न होगा तो एक दिन घुट कर मर ही जाओगे."<br />
"टीवी-मोबाईल ने हमें अज्ञातवास पर ही रखा हुआ है, पास बैठे हुए भी परिवार से बात ही नहीं हो पाती."<br />
"आखिर ये जंगलों का विनाश, जाति-धर्म, भ्रूणहत्या आदि करके फैक्टरी, गाड़ियाँ, टीवी-मोबाइल आदि साधन जुटा क्यों रहे हो?"<br />
"जीवन स्तर बढ़ाने और सुखी रहने के लिए."<br />
"तो मरना क्यों चाहते हो?"<br />
"मैं जीवन से बहुत दुखी हूँ यार." बहुत बहुत आभार आ वीरजीtag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9643202018-11-30T17:48:48.361Zविनय कुमारhttp://openbooksonline.com/profile/vinayakumarsingh
<p style="text-align: right;">बहुत बहुत आभार आ वीरजी</p>
<p style="text-align: right;">बहुत बहुत आभार आ वीरजी</p> बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9641912018-11-30T17:47:06.258Zविनय कुमारhttp://openbooksonline.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर आ वीर मेहताजी, आ योगराज सर की टिप्पणी का संज्ञान लीजिएगा. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए</p>
<p>बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर आ वीर मेहताजी, आ योगराज सर की टिप्पणी का संज्ञान लीजिएगा. बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए</p> रचना पर आपकी सुंदर और स्नेह भ…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9642672018-11-30T16:19:46.785ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>रचना पर आपकी सुंदर और स्नेह भरी टिप्पणी के लिये तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहज़ाद उस्मानी भाई। सादर। </p>
<p>रचना पर आपकी सुंदर और स्नेह भरी टिप्पणी के लिये तहे दिल से शुक्रिया भाई शेख शहज़ाद उस्मानी भाई। सादर। </p> प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लि…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9641902018-11-30T16:18:09.628ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
<p>प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी। सादर।</p>
<p>प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी। सादर।</p> असफल प्रेम संबंध और 'पारिवारि…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9642662018-11-30T15:53:50.923ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
असफल प्रेम संबंध और 'पारिवारिक तौर पर तय रिश्तों' के बीच की समस्याओं पर लिखी गई रचना सहज ही अच्छी बनी है लेकिन प्रस्तुति को थोड़ा प्रभावी रूप में रखने में चूक गयी आप। कथा की सपाट अभिव्यक्ति और पति-पत्नी के आपसी वार्तालाप पर थोड़ा ध्यान देकर कथा को प्रभावी बनाया जा सकता है। बरहाल बधाई स्वीकारें आद: बरखा शुक्ला जी।
असफल प्रेम संबंध और 'पारिवारिक तौर पर तय रिश्तों' के बीच की समस्याओं पर लिखी गई रचना सहज ही अच्छी बनी है लेकिन प्रस्तुति को थोड़ा प्रभावी रूप में रखने में चूक गयी आप। कथा की सपाट अभिव्यक्ति और पति-पत्नी के आपसी वार्तालाप पर थोड़ा ध्यान देकर कथा को प्रभावी बनाया जा सकता है। बरहाल बधाई स्वीकारें आद: बरखा शुक्ला जी। ग्लोबल वार्मिंग और मानवीय भूल…tag:openbooksonline.com,2018-11-30:5170231:Comment:9643182018-11-30T15:46:38.830ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
ग्लोबल वार्मिंग और मानवीय भूलों के कारण पैदा हुई स्थिति के संदर्भ में अच्छा ताना-बाना बुना गया है रचना का। हालांकि जिस प्रकार से रचना को लिखने का प्रयास हुआ हैं उसमें 'कालखंड' जैसी अवधारणा को इग्नोर भी किया जा सकता था, लेकिन बतौर लघुकथा इस रचना में जब सूर्य चंद्रमा और बर्फ आदि को पात्रों के साथ रचे गए कथ्य में 'कालखंड' का ध्यान दिया जाता तो मानवेतर विषय के ऊपर ये एक बेहतरीन लघुकथा बनती। बरहाल प्रदत्त विषय पर इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार भाई आशीष श्रीवास्तव जी।
ग्लोबल वार्मिंग और मानवीय भूलों के कारण पैदा हुई स्थिति के संदर्भ में अच्छा ताना-बाना बुना गया है रचना का। हालांकि जिस प्रकार से रचना को लिखने का प्रयास हुआ हैं उसमें 'कालखंड' जैसी अवधारणा को इग्नोर भी किया जा सकता था, लेकिन बतौर लघुकथा इस रचना में जब सूर्य चंद्रमा और बर्फ आदि को पात्रों के साथ रचे गए कथ्य में 'कालखंड' का ध्यान दिया जाता तो मानवेतर विषय के ऊपर ये एक बेहतरीन लघुकथा बनती। बरहाल प्रदत्त विषय पर इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार भाई आशीष श्रीवास्तव जी।