आयास चाहती है दोहे की सिद्धि :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव - Open Books Online2024-03-28T20:26:47Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:1008676?groupUrl=chhand&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय लेखनी को नमन , आपने बह…tag:openbooksonline.com,2021-06-27:5170231:Comment:10626362021-06-27T11:43:24.936ZOm Parkash Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/OmParkashSharma
<p>आदरणीय लेखनी को नमन , आपने बहुत सुंदर तरीके से अर्धसम मात्रिक छंद दोहे के इतिहास , उसकी रचना शैली को बता दिया उसे पढ़कर आसानी से दोहा लिखना सीखा जा सकता है । आदरणीय एक प्रश्न मानस पटल पर उभरता है कि मात्रिक गण जिन्हें मात्रिक छंद विधान के लिए ही बनाया गया था कहाँ विलुप्त हो गए ? इस संबंध मे समझ में नहीं आता। केवल उर्दू वाले ही उनकी चर्चा मात्र करते हैं हिन्दी में तो कोई उनका नाम तक नहीँ लेता । वे प्रचलित होते तो आपकी बात को और भी आसानी से समझा जा सकता। विषम चरणों की बनावट 33232 और…</p>
<p>आदरणीय लेखनी को नमन , आपने बहुत सुंदर तरीके से अर्धसम मात्रिक छंद दोहे के इतिहास , उसकी रचना शैली को बता दिया उसे पढ़कर आसानी से दोहा लिखना सीखा जा सकता है । आदरणीय एक प्रश्न मानस पटल पर उभरता है कि मात्रिक गण जिन्हें मात्रिक छंद विधान के लिए ही बनाया गया था कहाँ विलुप्त हो गए ? इस संबंध मे समझ में नहीं आता। केवल उर्दू वाले ही उनकी चर्चा मात्र करते हैं हिन्दी में तो कोई उनका नाम तक नहीँ लेता । वे प्रचलित होते तो आपकी बात को और भी आसानी से समझा जा सकता। विषम चरणों की बनावट 33232 और समचरणो की बनवाट 4432 को ढ ढ ण ढ ण और ड ड ढ ण के सुगमता से स्मरण रखा जा सकता है । असल में पाँच मात्रिक गण क्रमश: द्विकल , त्रिकल , चौकल , पंचकल के ही परिचायक तो हैं । यदि मात्रिक गण के प्रस्तार रूपों को आप नाम सहित समझाएँ तो हम पाठकों का बहुत भला होगा । सादर । </p>
<p></p> वाह वाह श्रीवास्तव जी | आपने…tag:openbooksonline.com,2020-06-02:5170231:Comment:10089892020-06-02T09:38:36.391ZC.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi"http://openbooksonline.com/profile/CMUpadhyayShoonyaAkankshi
<p>वाह वाह श्रीवास्तव जी | <br/>आपने बहुत सुन्दर व्याख्या की है खास तौर से तीसरे त्रिकल को बहुत सरलता से समझाया है | प्रायः दोहाकारों से यहाँ ही गलती होती है | <br/>आपको बधाई और धन्यवाद भी | <br/><br/></p>
<p>- शून्य आकांक्षी </p>
<p>वाह वाह श्रीवास्तव जी | <br/>आपने बहुत सुन्दर व्याख्या की है खास तौर से तीसरे त्रिकल को बहुत सरलता से समझाया है | प्रायः दोहाकारों से यहाँ ही गलती होती है | <br/>आपको बधाई और धन्यवाद भी | <br/><br/></p>
<p>- शून्य आकांक्षी </p> आदरणीय प्रणाम, बहुत ही सुंदर…tag:openbooksonline.com,2020-05-31:5170231:Comment:10090122020-05-31T07:22:53.644ZShyam Narain Vermahttp://openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
आदरणीय प्रणाम, बहुत ही सुंदर तरीके से अच्छी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद l सादर
आदरणीय प्रणाम, बहुत ही सुंदर तरीके से अच्छी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद l सादर