कइसे होई गंगा पार - Open Books Online2024-03-29T08:36:23Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:1014464?groupUrl=bhojpuri_sahitya&xg_source=activity&xg_raw_resources=1&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय श्री Saurabh Pandey स…tag:openbooksonline.com,2020-08-19:5170231:Comment:10151292020-08-19T13:59:52.483Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>आदरणीय श्री <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/group/bhojpuri_sahitya/forum/topic/listForContributor?user=2hgrsx5v453xn" class="fn url">Saurabh Pandey</a> सर, आप से एतना मान पा के हम धन्न भ गईलीं। आज एक पंक्ति बढ़ा दिहलीं हँ। आपकी असिरवाद से एके अउर बढ़ाइब।</p>
<p>आदरणीय श्री <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/group/bhojpuri_sahitya/forum/topic/listForContributor?user=2hgrsx5v453xn" class="fn url">Saurabh Pandey</a> सर, आप से एतना मान पा के हम धन्न भ गईलीं। आज एक पंक्ति बढ़ा दिहलीं हँ। आपकी असिरवाद से एके अउर बढ़ाइब।</p> आ. भाई आशीष जी, बहुत अच्छी रच…tag:openbooksonline.com,2020-08-12:5170231:Comment:10147742020-08-12T13:02:58.836Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आशीष जी, बहुत अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई आशीष जी, बहुत अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> वाह ! नीतिपरक रचना से साहित्य…tag:openbooksonline.com,2020-08-08:5170231:Comment:10145642020-08-08T09:13:57.836ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह ! नीतिपरक रचना से साहित्य में योगदान ला बहुते धन्नबाद, भाई आशीष जी. ढेर दिन प आपके रचना देखि रहल बानीं. ओइसे हमहूँ पटल प कम आ पावेनीं. </p>
<p>काशिका-भोजपुरी के रस में पगाइल एह रचना के आल्हा छंद के विन्यास प जवना सहज ढङ से निर्वहन कइल गइल बा ऊ मन के अनघा संतोख दे रगल बा. </p>
<p></p>
<p>बाकिर, एक पंक्ती अउर चाहत रहल हs तब्बे ई रचना चार जोड़ा में हो पाई. नाहीं त ई साढ़े तीनिये जोड़ा के रचना बन रहल बा. </p>
<p></p>
<p>जै जै</p>
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<p>वाह ! नीतिपरक रचना से साहित्य में योगदान ला बहुते धन्नबाद, भाई आशीष जी. ढेर दिन प आपके रचना देखि रहल बानीं. ओइसे हमहूँ पटल प कम आ पावेनीं. </p>
<p>काशिका-भोजपुरी के रस में पगाइल एह रचना के आल्हा छंद के विन्यास प जवना सहज ढङ से निर्वहन कइल गइल बा ऊ मन के अनघा संतोख दे रगल बा. </p>
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<p>बाकिर, एक पंक्ती अउर चाहत रहल हs तब्बे ई रचना चार जोड़ा में हो पाई. नाहीं त ई साढ़े तीनिये जोड़ा के रचना बन रहल बा. </p>
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<p>जै जै</p>
<p></p> आदरणीय श्री Shyam Narain Verm…tag:openbooksonline.com,2020-08-07:5170231:Comment:10144942020-08-07T13:03:06.985Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
आदरणीय श्री Shyam Narain Verma सर, बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय श्री Shyam Narain Verma सर, बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय आशीष जी, बहुत ही सुंदर…tag:openbooksonline.com,2020-08-07:5170231:Comment:10145422020-08-07T10:36:50.262ZShyam Narain Vermahttp://openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
आदरणीय आशीष जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
आदरणीय आशीष जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर