वास्तविक कवि और शायर - Open Books Online2024-03-28T10:40:05Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:163730?commentId=5170231%3AComment%3A164123&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय सौरभ जीआपकी बात शत प्र…tag:openbooksonline.com,2011-11-22:5170231:Comment:1692322011-11-22T12:59:20.763ZPallav Pancholihttp://openbooksonline.com/profile/PallavPancholi
<p>आदरणीय सौरभ जी<br></br>आपकी बात शत प्रतिशत सही है, मैं कुछ व्यक्तिगत एवं कुछ दूसरे कार्यों मे व्यस्त होने की वजह से पिछले कुछ समय मे ओ बी ओ पर ज़्यादा सक्रिया नही रह पाया.... मैं ओ बी ओ से बहुत दिल से जुड़ा हुआ हूँ क्योंकि मुझे पल्लव से मासूम बनाने का श्रेय श्री योगराज प्रभकर एवं श्री राणा को जाता है..... ओर मैं खुद चाहता हूँ की ओ बी ओ के सदस्यों का मेल मिलाप वढे ओर मैं सभी सदस्यों को कहना चाहूँगा की मेरी ओर से जो भी सहयता बन पड़ेगी मैं करूँगा... उम्र मे छोटा हूँ पर हा इतना ज़रूर कहना चाहूँगा की…</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी<br/>आपकी बात शत प्रतिशत सही है, मैं कुछ व्यक्तिगत एवं कुछ दूसरे कार्यों मे व्यस्त होने की वजह से पिछले कुछ समय मे ओ बी ओ पर ज़्यादा सक्रिया नही रह पाया.... मैं ओ बी ओ से बहुत दिल से जुड़ा हुआ हूँ क्योंकि मुझे पल्लव से मासूम बनाने का श्रेय श्री योगराज प्रभकर एवं श्री राणा को जाता है..... ओर मैं खुद चाहता हूँ की ओ बी ओ के सदस्यों का मेल मिलाप वढे ओर मैं सभी सदस्यों को कहना चाहूँगा की मेरी ओर से जो भी सहयता बन पड़ेगी मैं करूँगा... उम्र मे छोटा हूँ पर हा इतना ज़रूर कहना चाहूँगा की <br/>ये शब्द खरीदने की ताक़त ज़माने की नही यारों....... दुनिया की हर चीज़ बिकौ नही होती</p> आमीन !! आदरणीय सौरभ जी आपके श…tag:openbooksonline.com,2011-11-22:5170231:Comment:1690372011-11-22T04:29:14.686ZAbhinav Arunhttp://openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>आमीन !! आदरणीय सौरभ जी आपके शब्द ही हमारे साहस का संबल हैं !!</p>
<p>आमीन !! आदरणीय सौरभ जी आपके शब्द ही हमारे साहस का संबल हैं !!</p> //कभी मौका दीजिए मंच पे आने क…tag:openbooksonline.com,2011-11-22:5170231:Comment:1690352011-11-22T04:06:28.486ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>//कभी मौका दीजिए मंच पे आने का क्योंकि आप तो कई कवि सम्मेलनों मे संयोजक होते हैं इस पर उनकी प्रतिक्रिया रही कि बेटा मैं किसी नये व्यक्ति को मौका नही दे सकता.//</p>
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<p>इस तरह की पंक्तियाँ सही कहें नव-हस्ताक्षरों की झुंझलाहट का बहुत बड़ा कारण हैं. लेकिन, पल्लवजी, अपना मानना है कि लगन, स्वाध्याय, मनन और सतत व्यक्तिगत प्रयास, यह सभी कुछ मिलकर किसी नये रचनाकार को स्थापितों के सम्मुख खड़ा कर देते हैं. तथाकथित स्थापित होने या अच्छा लिखते जाने में से यदि मुझसे पूछें तो मैं लगातार प्रयासरत हो…</p>
<p>//कभी मौका दीजिए मंच पे आने का क्योंकि आप तो कई कवि सम्मेलनों मे संयोजक होते हैं इस पर उनकी प्रतिक्रिया रही कि बेटा मैं किसी नये व्यक्ति को मौका नही दे सकता.//</p>
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<p>इस तरह की पंक्तियाँ सही कहें नव-हस्ताक्षरों की झुंझलाहट का बहुत बड़ा कारण हैं. लेकिन, पल्लवजी, अपना मानना है कि लगन, स्वाध्याय, मनन और सतत व्यक्तिगत प्रयास, यह सभी कुछ मिलकर किसी नये रचनाकार को स्थापितों के सम्मुख खड़ा कर देते हैं. तथाकथित स्थापित होने या अच्छा लिखते जाने में से यदि मुझसे पूछें तो मैं लगातार प्रयासरत हो अच्छा लिखने को अधिक तरजीह दूँगा. क्योंकि श्रोता/पाठक को समृद्ध करना किसी रचनाकार का पहला कर्तव्य और रचना की कसौटी दोनों है. और वस्तुतः यही साहित्य-संस्कार है. </p>
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<p>मंच पर पढ़ना वैसे भी किसी रचनाकार के लिये मानक नहीं होता, होना भी नहीं चाहिये. बल्कि यह रचना-संप्रेषण का एक जरिया भर है. आपके पास ई-पत्रिका ओबीओ (ओपेनबुक्सऑनलाइन) का संबल और मंच है. एक महीने में तीन-तीन इण्टरऐक्टिव आयोजन होते हैं. आप यहाँ रेगुलर होइये. आप देखेंगे कि इन आयोजनों में सिर्फ़ मुँहदेखी ’वाहवाहियाँ’ नहीं होतीं, बल्कि रचना का नीर-क्षीर हो जाता है. उचित सलाह से रचनाओं में सुधार भी किया जाता है. ऐसा होते मैंने आजतक किसी मंच पर नहीं देखा है. यह कमतर किन्तु बेतुके अहं पाले हुए रचनाकारों को थोड़ा नागवार तो गुजरता है, लकिन यह उन रचनाकारों को सोचना होगा कि वे कोरी वाहवाही के भूखे हैं या व्यवस्थित रचनाकर्म के माध्यम से साहित्य-साधना करना चाहते हैं. </p>
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<p>पल्लवजी, आप इस मंच पर अपनी रेगुलर उपस्थिति बनाइये. आपकी सशक्त रचनाओं को तालियों की कमी नहीं होगी. धीरे-धीरे हम आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया पर भी प्रयासरत होंगे. अफ़सोसजी, बेखुदजी, अभिनवजी, शमीमजी के सानिध्य में वाराणसी में ऐसा एक प्रयास हो चुका है. अगली दफ़ा, कुछ और संयत ढंग से ऐसे प्रयास होंगे. </p>
<p> </p> पल्लव जी वाकई स्थिति चिंताजनक…tag:openbooksonline.com,2011-11-22:5170231:Comment:1690282011-11-22T01:46:29.054ZAbhinav Arunhttp://openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>पल्लव जी वाकई स्थिति चिंताजनक है ख़ास कर नए रचनाकारों के लिए | परन्तु हम सबको एक होकर अपना मंच खुद बनाना होगा | ओ बी ओ इस दिशा में बढ़िया कार्य कर रहा है | आज हम संजाल पर है कल ज़मीन पर भी इकठ्ठा होंगे और दिखा देंगे | आप हौसला रखिये !!</p>
<p>पल्लव जी वाकई स्थिति चिंताजनक है ख़ास कर नए रचनाकारों के लिए | परन्तु हम सबको एक होकर अपना मंच खुद बनाना होगा | ओ बी ओ इस दिशा में बढ़िया कार्य कर रहा है | आज हम संजाल पर है कल ज़मीन पर भी इकठ्ठा होंगे और दिखा देंगे | आप हौसला रखिये !!</p> "मैने सुना है.." और "मैं समझत…tag:openbooksonline.com,2011-11-21:5170231:Comment:1690272011-11-21T19:28:16.814ZAfsos Ghazipurihttp://openbooksonline.com/profile/VibhutiNarayanSingh
<p>"मैने सुना है.." और "मैं समझता हूँ.." कह कर अपने बता ही दिया की वास्तविक कवि की कितनी पहचान है आपको ?</p>
<p>"मैने सुना है.." और "मैं समझता हूँ.." कह कर अपने बता ही दिया की वास्तविक कवि की कितनी पहचान है आपको ?</p> अभी कुछ दिनों पहले शहर के इक…tag:openbooksonline.com,2011-11-21:5170231:Comment:1691132011-11-21T11:37:18.928ZPallav Pancholihttp://openbooksonline.com/profile/PallavPancholi
<p>अभी कुछ दिनों पहले शहर के इक कवि से मुलाकात हुई... उन्हे मैने अपनी कुछ रचनाएँ सुनाई... सुनकर उन्होने कहा बेटा बहुत अच्छा लिखते हो.... मैने कहा कभी मौका दीजिए मंच पे आने का क्योंकि आप तो काई कवि सम्मेलनों मे संयोजक होते हैं इस पर उनकी प्रतिक्रिया रही की बेटा मैं किसी नये व्यक्ति को मौका नही दे सकता..... मैने कहा की जब तक किसी नये व्यक्ति को मौका नही मिलेगा वो तो हमेशा नया ही रहेगा... वे निरुत्तर रहे ..... किंतु काव्या मंचो पर चल रही दादागिरी की झलक दे गये....... पता नही शायद स्टॅंड उप…</p>
<p>अभी कुछ दिनों पहले शहर के इक कवि से मुलाकात हुई... उन्हे मैने अपनी कुछ रचनाएँ सुनाई... सुनकर उन्होने कहा बेटा बहुत अच्छा लिखते हो.... मैने कहा कभी मौका दीजिए मंच पे आने का क्योंकि आप तो काई कवि सम्मेलनों मे संयोजक होते हैं इस पर उनकी प्रतिक्रिया रही की बेटा मैं किसी नये व्यक्ति को मौका नही दे सकता..... मैने कहा की जब तक किसी नये व्यक्ति को मौका नही मिलेगा वो तो हमेशा नया ही रहेगा... वे निरुत्तर रहे ..... किंतु काव्या मंचो पर चल रही दादागिरी की झलक दे गये....... पता नही शायद स्टॅंड उप आर्टिस्ट ओर कवि दोनों इक ही हो गये हैं ....</p>
<p>सादर</p> नया हूँ इसलिए इशारों की बातें…tag:openbooksonline.com,2011-11-15:5170231:Comment:1670152011-11-15T18:37:53.571ZAfsos Ghazipurihttp://openbooksonline.com/profile/VibhutiNarayanSingh
<p>नया हूँ इसलिए इशारों की बातें कम ही समझता हूँ, कह नहीं सकता व्यावहारिक धरातल आप किसे समझते हैं, उसे जहाँ एक व्यक्ति अपने अस्तित्व (अस्मिता नहीं) की लड़ाई लड़ता दिखता है (?) अथवा उसे जहाँ साहित्य कर्म को निष्काम भाव से किया जाता है ? मेरी निगाह में आम आदमी, साहित्य-सेवी न होकर दर्शक, प्रेक्षक, आलोचक अथवा बुद्धिजीवी आदि कुछ भी हो सकता है लेकिन वह साहित्य सेवी, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी कैसे हो सकता है ?</p>
<p>नया हूँ इसलिए इशारों की बातें कम ही समझता हूँ, कह नहीं सकता व्यावहारिक धरातल आप किसे समझते हैं, उसे जहाँ एक व्यक्ति अपने अस्तित्व (अस्मिता नहीं) की लड़ाई लड़ता दिखता है (?) अथवा उसे जहाँ साहित्य कर्म को निष्काम भाव से किया जाता है ? मेरी निगाह में आम आदमी, साहित्य-सेवी न होकर दर्शक, प्रेक्षक, आलोचक अथवा बुद्धिजीवी आदि कुछ भी हो सकता है लेकिन वह साहित्य सेवी, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी कैसे हो सकता है ?</p> अभी अफ़सोस जी कुछ दिनों में पद…tag:openbooksonline.com,2011-11-07:5170231:Comment:1642572011-11-07T10:10:30.802ZAbhinav Arunhttp://openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>अभी अफ़सोस जी कुछ दिनों में पद्धति से वाकिफ हो जायेंगे -</p>
<p><font color="#FF0000">खुलेंगे परिंदों के पर धीरे धीरे >>((>:))...</font></p>
<p>अभी अफ़सोस जी कुछ दिनों में पद्धति से वाकिफ हो जायेंगे -</p>
<p><font color="#FF0000">खुलेंगे परिंदों के पर धीरे धीरे >>((>:))...</font></p> आपने सर्वथा उचित कहा है, अभिन…tag:openbooksonline.com,2011-11-07:5170231:Comment:1643252011-11-07T07:57:11.817ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपने सर्वथा उचित कहा है, अभिनवजी.</p>
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<p>आपने सर्वथा उचित कहा है, अभिनवजी.</p>
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उक्त…tag:openbooksonline.com,2011-11-07:5170231:Comment:1641792011-11-07T07:52:25.879ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अफ़सोस ग़ाज़ीपुरीजी,</p>
<p>उक्त प्रतिक्रिया/टिप्पणी आपके संप्रेषण पर नहीं है. मैंने अनुज रोहित को इंगित किया है. </p>
<p>आपके संदेश या संप्रेषण की टिप्पणी या प्रतिक्रिया <strong>आपके संप्रेषण</strong> के नीचे बने Reply के नीचे होगी और उसी थ्रेड में होंगी. कृपया, किन्हीं और सदस्य को कही गयी मेरी बातों को आप स्वयं पर न लें.</p>
<p>सादर.</p>
<p>आदरणीय अफ़सोस ग़ाज़ीपुरीजी,</p>
<p>उक्त प्रतिक्रिया/टिप्पणी आपके संप्रेषण पर नहीं है. मैंने अनुज रोहित को इंगित किया है. </p>
<p>आपके संदेश या संप्रेषण की टिप्पणी या प्रतिक्रिया <strong>आपके संप्रेषण</strong> के नीचे बने Reply के नीचे होगी और उसी थ्रेड में होंगी. कृपया, किन्हीं और सदस्य को कही गयी मेरी बातों को आप स्वयं पर न लें.</p>
<p>सादर.</p>