प्रयाग-क्षेत्र में ओबीओ के तत्त्वावधान में काव्य-गोष्ठी का आयोजन - Open Books Online2024-03-28T20:35:04Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:170018?commentId=5170231%3AComment%3A169782&feed=yes&xn_auth=noअबतक हम सब, तुम थे हम थे
मिल…tag:openbooksonline.com,2011-12-01:5170231:Comment:1715602011-12-01T17:27:14.864ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>अबतक हम सब, तुम थे हम थे</p>
<p>मिल कर जाना, तुम से हम थे .. . </p>
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<p>फिर आना..</p>
<p>अबतक हम सब, तुम थे हम थे</p>
<p>मिल कर जाना, तुम से हम थे .. . </p>
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<p>फिर आना..</p> मैं इस गोष्ठी के मुख्य आयोजक…tag:openbooksonline.com,2011-11-30:5170231:Comment:1714332011-11-30T20:39:18.859Zविवेक मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/VivekMishra
<p>मैं इस गोष्ठी के मुख्य आयोजक और मंच संचालक- वीनस जी को और अध्यक्ष- सौरभ पाण्डेय जी को कोटिशः धन्यवाद कहना चाहूँगा. बिना उनके प्रयासों के यह काव्य-गोष्ठी कत्तई संभव न होती. सभी साहित्य-प्रेमियों को एक स्थान पर इकट्ठा करने के लिए उनके द्वारा किया किया जाने वाला परिश्रम देखते ही बनता था. (इस परिश्रम में ढोकलों, नान-खटाइयों और बिस्किटों का चयन भी सम्मिलित है क्योंकि मैं स्वयं भी इसका गवाह था.. :))))<br></br><span style="color: #000080;">राणा प्रताप जी, श्री जयकृष्ण जी ’तुषार’, श्रीमती लता आर. ओझा…</span></p>
<p>मैं इस गोष्ठी के मुख्य आयोजक और मंच संचालक- वीनस जी को और अध्यक्ष- सौरभ पाण्डेय जी को कोटिशः धन्यवाद कहना चाहूँगा. बिना उनके प्रयासों के यह काव्य-गोष्ठी कत्तई संभव न होती. सभी साहित्य-प्रेमियों को एक स्थान पर इकट्ठा करने के लिए उनके द्वारा किया किया जाने वाला परिश्रम देखते ही बनता था. (इस परिश्रम में ढोकलों, नान-खटाइयों और बिस्किटों का चयन भी सम्मिलित है क्योंकि मैं स्वयं भी इसका गवाह था.. :))))<br/><span style="color: #000080;">राणा प्रताप जी, श्री जयकृष्ण जी ’तुषार’, श्रीमती लता आर. ओझा जी, इम्तियाज़ अहमद ’ग़ाज़ी’ साहब, वीनसजी और अंत में श्री सौरभ पाण्डेय जी से आशा के अनुरूप ही स्तरीय रचनाएँ सुनने को मिलीं, जिसके लिए सभी साहित्यकार बधाई के पात्र हैं. <br/>वस्तुतः यह मेरे जीवन की पहली काव्य-गोष्ठी थी, जिसकी अमिट छवि मेरे मानस पटल पर जीवन पर्यंत बनी रहेगी.<br/>और अंत में, याद आता है मुनव्वर राणा साहब का यह शे'र-<br/>"</span>गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब, <br/> इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं ।"<br/><br/>जय हो!</p> धन्यवाद सत्येन्द्रजी.
tag:openbooksonline.com,2011-11-29:5170231:Comment:1706332011-11-29T06:37:48.363ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>धन्यवाद सत्येन्द्रजी.</p>
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<p>धन्यवाद सत्येन्द्रजी.</p>
<p> </p> इस सफल आयोजन के लिए सभी को बध…tag:openbooksonline.com,2011-11-29:5170231:Comment:1705632011-11-29T06:31:12.188ZSatyendra Kumar Upadhyayhttp://openbooksonline.com/profile/SatyendraKumarUpadhyay
<p>इस सफल आयोजन के लिए सभी को बधाई|</p>
<p>इस सफल आयोजन के लिए सभी को बधाई|</p> भाई अभिनवजी, जिस तत्परता और…tag:openbooksonline.com,2011-11-28:5170231:Comment:1704692011-11-28T16:52:21.525ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई अभिनवजी, जिस तत्परता और आसानी से आपने वाराणसी की गोष्ठी को अंजाम दिया उसी का विस्तार प्रयाग क्षेत्र तक हुआ है. देखिये अगली गोष्ठी <strong>वाराणसी</strong> में कब होती है. और आप तो वैसे श्रोता हैं जो बखूबी अपनी रचना सुनाता है और खुल कर दाद भी पाता है.</p>
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<p>भाई अभिनवजी, जिस तत्परता और आसानी से आपने वाराणसी की गोष्ठी को अंजाम दिया उसी का विस्तार प्रयाग क्षेत्र तक हुआ है. देखिये अगली गोष्ठी <strong>वाराणसी</strong> में कब होती है. और आप तो वैसे श्रोता हैं जो बखूबी अपनी रचना सुनाता है और खुल कर दाद भी पाता है.</p>
<p> </p> शानदार आयोजन और जानदार काव्य…tag:openbooksonline.com,2011-11-28:5170231:Comment:1702782011-11-28T14:49:16.539ZAbhinav Arunhttp://openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>शानदार आयोजन और जानदार काव्य रचनाएँ !! वाह बधाई सभी को !!! क्या अच्छा होता हम सभी श्रोता के रूप में वहां होते !! बहरहाल इस रपट ने इस कमी को पूरा किया साधुवाद !!</p>
<p>शानदार आयोजन और जानदार काव्य रचनाएँ !! वाह बधाई सभी को !!! क्या अच्छा होता हम सभी श्रोता के रूप में वहां होते !! बहरहाल इस रपट ने इस कमी को पूरा किया साधुवाद !!</p> हर कार्य का नियत समय होता है,…tag:openbooksonline.com,2011-11-27:5170231:Comment:1700592011-11-27T12:50:23.847ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हर कार्य का नियत समय होता है, वीनसजी. गोष्ठी के आयोजन का समय आया तो हर कुछ संयत होता चला गया. </p>
<p>कविवर अयोध्या प्रसाद सिंह ’हरिऔंध’ जी की कर्मवीरों को इंगित करती पंक्तियाँ हैं न..</p>
<p>देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं</p>
<p>रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं</p>
<p> </p>
<p>//कार्यक्रम की रूपरेखा इतनी त्वरित बनी थी कि कई लोग कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके//</p>
<p>इस क्रम में फोन पर आप द्वारा श्रीमती अलकाजी से सम्बन्धित घटना का वर्णन करना मुझे दिल से दुखी कर गया है, जिसे मैं…</p>
<p>हर कार्य का नियत समय होता है, वीनसजी. गोष्ठी के आयोजन का समय आया तो हर कुछ संयत होता चला गया. </p>
<p>कविवर अयोध्या प्रसाद सिंह ’हरिऔंध’ जी की कर्मवीरों को इंगित करती पंक्तियाँ हैं न..</p>
<p>देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं</p>
<p>रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं</p>
<p> </p>
<p>//कार्यक्रम की रूपरेखा इतनी त्वरित बनी थी कि कई लोग कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके//</p>
<p>इस क्रम में फोन पर आप द्वारा श्रीमती अलकाजी से सम्बन्धित घटना का वर्णन करना मुझे दिल से दुखी कर गया है, जिसे मैं आपके माध्यम से सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ. </p>
<p>अलकाजी उक्त आयोजन की परिधि तक आ गयी थीं किन्तु मोबाइल के घर पर ही छूट जाने के कारण हमसे सम्पर्क कर नियत स्थान तक नहीं आ पायीं. और करीब एक घण्टे तक भटकने के बाद वापस हो गयीं. वीनसजी, मुझे बहुत ही अफ़सोस हुआ है. जिस शारीरिक अवस्था और दौर में उनका होना ज्ञात हुआ है, उनके साथ इस तरह का कुछ होना हमसभी के लिये अत्यंत ही दुख की बात है. हम सब की भावनाओं से आप उन्हें अवश्य ही सूचित कर देंगे.</p>
<p> </p> शुभकामनाओं के लिये आपका धन्यव…tag:openbooksonline.com,2011-11-27:5170231:Comment:1700022011-11-27T12:10:56.357ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>शुभकामनाओं के लिये आपका धन्यवाद मोहतरमा मुमताज़जी.</p>
<p>आप कानपुर शहर में अपने तईं इस तरह की गोष्ठी के आयोजित होने का माहौल बना सकती हैं.</p>
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<p>शुभकामनाओं के लिये आपका धन्यवाद मोहतरमा मुमताज़जी.</p>
<p>आप कानपुर शहर में अपने तईं इस तरह की गोष्ठी के आयोजित होने का माहौल बना सकती हैं.</p>
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<p> </p> जी लता जी, आपने सही कहा है.
ह…tag:openbooksonline.com,2011-11-27:5170231:Comment:1700562011-11-27T12:08:17.191ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>जी लता जी, आपने सही कहा है.</p>
<p>हम सभी आपस में एक दूसरे को पढ़ चुके थे, परन्तु आपस में मिलने का अविस्मरणीय संयोग नहीं बन पाया था.</p>
<p>सधन्यवाद</p>
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<p>जी लता जी, आपने सही कहा है.</p>
<p>हम सभी आपस में एक दूसरे को पढ़ चुके थे, परन्तु आपस में मिलने का अविस्मरणीय संयोग नहीं बन पाया था.</p>
<p>सधन्यवाद</p>
<p> </p> सौरभ जी, तुषार जी, राणा जी, ल…tag:openbooksonline.com,2011-11-27:5170231:Comment:1700542011-11-27T11:53:14.228Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>सौरभ जी, तुषार जी, राणा जी, लता जी, इम्तियाज़ जी और विवेक जी आप सभी का विशेष रूप से आभारी हूँ <br></br> आप कार्यक्रम में आयें और सभी ने मिल कर इसे "सफल कार्यक्रम" में परिवर्तित कर दिया <br></br> <br></br> सफल इस मायनों में भी कि हममे से अधिकतर लोग एक दूसरे से पहली बार मिले और भौतिक रूप से उपस्थिति की एक सुन्दर शुरुआत हुई</p>
<p>और इस मायने में भी कि सभी को एक दूसरे से मिला कर आपार हर्ष हुआ <br></br>और कहीं न कही इस मायने में भी कि , मैं कई महीने से सभी लोग को आपस में मिलवाना चाहता था जो इलाहाबाद में हैं नेट…</p>
<p>सौरभ जी, तुषार जी, राणा जी, लता जी, इम्तियाज़ जी और विवेक जी आप सभी का विशेष रूप से आभारी हूँ <br/> आप कार्यक्रम में आयें और सभी ने मिल कर इसे "सफल कार्यक्रम" में परिवर्तित कर दिया <br/> <br/> सफल इस मायनों में भी कि हममे से अधिकतर लोग एक दूसरे से पहली बार मिले और भौतिक रूप से उपस्थिति की एक सुन्दर शुरुआत हुई</p>
<p>और इस मायने में भी कि सभी को एक दूसरे से मिला कर आपार हर्ष हुआ <br/>और कहीं न कही इस मायने में भी कि , मैं कई महीने से सभी लोग को आपस में मिलवाना चाहता था जो इलाहाबाद में हैं नेट की दुनिया में अच्छा कर रहे हैं और साहित्य से जुड़े हुए हैं <br/><br/>कार्यक्रम की रूपरेखा इतनी त्वरित बनी थी कि कई लोग कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके क्योकि या तो इलाहाबाद में नहीं थे या अन्य कार्यक्रम में व्यस्त थे तो कोशिश रहेगी कि अगली बार वो सभी आ सकें जो इस बार नहीं आ सके </p>
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<p>सादर <br/>वीनस केशरी</p>