निर्गुण भोजपुरी गीत : पिया अईले बोलावे - Open Books Online2024-03-28T15:05:29Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:210546?groupUrl=bhojpuri_sahitya&feed=yes&xn_auth=noमेहनत सुकलान हो गईल सौरभ भईया…tag:openbooksonline.com,2012-04-22:5170231:Comment:2170272012-04-22T12:15:12.549ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>मेहनत सुकलान हो गईल सौरभ भईया, राउर सराहना पुरस्कार से तनिको कम ना लागे, माता जी के भी पढ़ के सूना देब , हम जानत बानी उहा के बहुत पसन् करब | आभार राउर |</p>
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<p>मेहनत सुकलान हो गईल सौरभ भईया, राउर सराहना पुरस्कार से तनिको कम ना लागे, माता जी के भी पढ़ के सूना देब , हम जानत बानी उहा के बहुत पसन् करब | आभार राउर |</p>
<p></p> आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, निर…tag:openbooksonline.com,2012-04-22:5170231:Comment:2168692012-04-22T12:12:06.511ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, निर्गुण सराहे खातिर आभार,</p>
<p>आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, निर्गुण सराहे खातिर आभार,</p> भाई गणेशजी ! जिनिगी के सचाई…tag:openbooksonline.com,2012-04-14:5170231:Comment:2141642012-04-14T09:46:33.383ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाई गणेशजी ! जिनिगी के सचाई ठाढ़ क दिहलऽ, ए भाई. कतनो फहरई में उड़त मन पढ़ि-सुनि के भुइयाँ भहरा जाई. एह सत्य के चकचकइला का सोझा मन के अन्हार ना रहि सके. निर्गुन अपना देस के गंग-जमुनी संस्कृति के पताका हऽ, सउँसे विश्व खातिर उपहार बा अपना देस से.</p>
<p>एह पंक्तियन खातिर विशेष बधाई स्वीकार कइल जाओ -</p>
<p><em>पाप के कमाईल इहे रह जाई,</em><br></br> <em>पुण्य के खाइल ससुरा ले जाई,</em><br></br> <em>पियवा एक दिन सबके ले जाई,</em><br></br> <em>सबके ले जाई, रामा,सबके ले जाई,</em><br></br> <em>इहे बा सचाई, रामा,…</em></p>
<p>भाई गणेशजी ! जिनिगी के सचाई ठाढ़ क दिहलऽ, ए भाई. कतनो फहरई में उड़त मन पढ़ि-सुनि के भुइयाँ भहरा जाई. एह सत्य के चकचकइला का सोझा मन के अन्हार ना रहि सके. निर्गुन अपना देस के गंग-जमुनी संस्कृति के पताका हऽ, सउँसे विश्व खातिर उपहार बा अपना देस से.</p>
<p>एह पंक्तियन खातिर विशेष बधाई स्वीकार कइल जाओ -</p>
<p><em>पाप के कमाईल इहे रह जाई,</em><br/> <em>पुण्य के खाइल ससुरा ले जाई,</em><br/> <em>पियवा एक दिन सबके ले जाई,</em><br/> <em>सबके ले जाई, रामा,सबके ले जाई,</em><br/> <em>इहे बा सचाई, रामा, इहे बा सचाई,</em><br/> <em>जनि कर "बागी" हाय हाय हो ,</em><br/> <em>पिया अईले बोलावे</em></p>
<p>हम विलम्ब से एह पन्ना प आ सकनीं हँ, एकर अपार अफ़सोस बा.</p>
<p></p> आदरणीय बागी जी, सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2012-04-10:5170231:Comment:2132382012-04-10T15:58:52.861ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p> आदरणीय बागी जी, सादर अभिवादन.</p>
<div>जीवन की सत्यता को बयां करता हुआ निर्गुण. सरल सधी भाषा में. बधाई. </div>
<div><br/><br class="Apple-interchange-newline"/></div>
<p> आदरणीय बागी जी, सादर अभिवादन.</p>
<div>जीवन की सत्यता को बयां करता हुआ निर्गुण. सरल सधी भाषा में. बधाई. </div>
<div><br/><br class="Apple-interchange-newline"/></div> आदरणीया नीलम बहिन, राउर टिप्प…tag:openbooksonline.com,2012-04-10:5170231:Comment:2130032012-04-10T15:30:25.743ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीया नीलम बहिन, राउर टिप्पणी बहुत नीक लागल, इ निर्गुण गीत बहुत दिन से अधपका अवस्था में रखल रहल हा, पन्ना उलाटत में नजर पडल त वोकरा के पका के रौरा लोगन के सेवा में प्रस्तुत कईनी ह , <span id="7_TRN_1f">रउआ के नीक लागल , श्रम सार्थक भईल, आभार राउर |</span></p>
<p>आदरणीया नीलम बहिन, राउर टिप्पणी बहुत नीक लागल, इ निर्गुण गीत बहुत दिन से अधपका अवस्था में रखल रहल हा, पन्ना उलाटत में नजर पडल त वोकरा के पका के रौरा लोगन के सेवा में प्रस्तुत कईनी ह , <span id="7_TRN_1f">रउआ के नीक लागल , श्रम सार्थक भईल, आभार राउर |</span></p> बहुत बढ़िया रचना बा. वास्तव…tag:openbooksonline.com,2012-04-10:5170231:Comment:2131052012-04-10T14:36:09.984ZNeelam Upadhyayahttp://openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p>बहुत बढ़िया रचना बा. वास्तव में जीवन के सच्चाई ईहे बा कि नईहर छोड़े के परबे करेला बाकिर मनुष्य अपना मोह माया के जाल में इतना ना लिप्त रहेला कि भुला जला कि ओकरा पिया के संगे जाये के बा......ओही में जे पिया के संगे जाये के तैयार बा आ पिया के इंतजार करत बा ऊ इहाँ के दुनियादारी से ऊपर उठ गईल बा.....ऊहे सच्चा अर्थ में संत कहला...... इतना बढ़िया रचना खातिर हमर हार्दिक बढ़ायी स्वीकार करीं. ई पढ़ के कबीर दास जी के एगो निर्गुण याद पर गईल ह .....<br></br> <br></br> नईहरवा हमका न भावे <br></br> साईं की नगरी परम…</p>
<p>बहुत बढ़िया रचना बा. वास्तव में जीवन के सच्चाई ईहे बा कि नईहर छोड़े के परबे करेला बाकिर मनुष्य अपना मोह माया के जाल में इतना ना लिप्त रहेला कि भुला जला कि ओकरा पिया के संगे जाये के बा......ओही में जे पिया के संगे जाये के तैयार बा आ पिया के इंतजार करत बा ऊ इहाँ के दुनियादारी से ऊपर उठ गईल बा.....ऊहे सच्चा अर्थ में संत कहला...... इतना बढ़िया रचना खातिर हमर हार्दिक बढ़ायी स्वीकार करीं. ई पढ़ के कबीर दास जी के एगो निर्गुण याद पर गईल ह .....<br/> <br/> नईहरवा हमका न भावे <br/> साईं की नगरी परम अति सुंदर<br/> जहाँ कोई जाये न आवे<br/> चाँद सूरज जहाँ पवन ना पानी<br/> को संदेसा पहुँचावे<br/> दरद यह सांई को बतावे<br/> नईहरवा हमका ना भावे.....<br/> <br/> बीर सतगुरु आपनो नहीं कोई<br/> जो यह रह बतावे<br/> कहत कबीर सुनो भाई साधो <br/> सपने में प्रीतम आवे<br/> तपन यह जिया कि बुझावे<br/> नईहरवा हमका ना भावे</p> धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी…tag:openbooksonline.com,2012-04-07:5170231:Comment:2106332012-04-07T05:04:41.941ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी |</p>
<p>धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी |</p> आभार आदरणीया महिमा श्री,tag:openbooksonline.com,2012-04-07:5170231:Comment:2106322012-04-07T05:04:03.770ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>आभार आदरणीया महिमा श्री,</p>
<p>आभार आदरणीया महिमा श्री,</p> पियवा एक दिन सबके ले जाई,
सबक…tag:openbooksonline.com,2012-04-07:5170231:Comment:2108202012-04-07T04:57:04.606ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
पियवा एक दिन सबके ले जाई,<br />
सबके ले जाई, रामा,सबके ले जाई,<br />
इहे बा सचाई, रामा, इहे बा सचाई,.....<br />
<br />
आदरणीय बागी जी , नमस्कार ,<br />
सारस्वत सत्य तो यही है जीवन का...सब को एक दिन जाना है और ऊपर जाकर कर्मो का हिसाब भी देना है ...<br />
जाके बाबुल से नजरे मिलाऊ कैसे....लागा चुनरी में दाग...<br />
बधाई स्वीकार करे....
पियवा एक दिन सबके ले जाई,<br />
सबके ले जाई, रामा,सबके ले जाई,<br />
इहे बा सचाई, रामा, इहे बा सचाई,.....<br />
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आदरणीय बागी जी , नमस्कार ,<br />
सारस्वत सत्य तो यही है जीवन का...सब को एक दिन जाना है और ऊपर जाकर कर्मो का हिसाब भी देना है ...<br />
जाके बाबुल से नजरे मिलाऊ कैसे....लागा चुनरी में दाग...<br />
बधाई स्वीकार करे.... गणेश जी बहुत बहुत आभार आपका अ…tag:openbooksonline.com,2012-04-07:5170231:Comment:2108122012-04-07T03:00:52.066Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p><span>गणेश जी बहुत बहुत आभार आपका अब सारी पिक्चर साफ़ हो गई बहुत दार्शनिक भावान्तिका गीत है बहुत सुंदर बधाई |</span></p>
<p><span>गणेश जी बहुत बहुत आभार आपका अब सारी पिक्चर साफ़ हो गई बहुत दार्शनिक भावान्तिका गीत है बहुत सुंदर बधाई |</span></p>