मोरे सईंया भये कोतवाल.. अब डर काहे का.. - Open Books Online2024-03-29T13:38:08Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:29414?feed=yes&xn_auth=noयो बात तो सही कह दी तुमने ► न…tag:openbooksonline.com,2010-11-08:5170231:Comment:321872010-11-08T17:11:43.187ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
यो बात तो सही कह दी तुमने ► <b>नूतन</b> .....<br />
ठीक है कानून सीधे लोगों के लिए है पर आवाज़ उठाना बंद तो नहीं कर सकते हैं ना......
यो बात तो सही कह दी तुमने ► <b>नूतन</b> .....<br />
ठीक है कानून सीधे लोगों के लिए है पर आवाज़ उठाना बंद तो नहीं कर सकते हैं ना...... sundar post Jogi bhaiya .. ka…tag:openbooksonline.com,2010-11-08:5170231:Comment:321712010-11-08T14:52:53.171ZDr Nutanhttp://openbooksonline.com/profile/DrNutan
<b>sundar post Jogi bhaiya .. kanoon ko aml e jama pehnaney valo kaa ye photo daal kar aap gustakhi kar rahey hai.. kanoon sidhe saadhe logo ke liye hai....takat ke liye nahi...</b>
<b>sundar post Jogi bhaiya .. kanoon ko aml e jama pehnaney valo kaa ye photo daal kar aap gustakhi kar rahey hai.. kanoon sidhe saadhe logo ke liye hai....takat ke liye nahi...</b> सतीश जी ,,,
इस सरकारी बेहूदगी…tag:openbooksonline.com,2010-10-30:5170231:Comment:298032010-10-30T09:31:03.803ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
सतीश जी ,,,<br />
इस सरकारी बेहूदगी पर आपकी पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत हैं ... धन्यवाद आपका ...
सतीश जी ,,,<br />
इस सरकारी बेहूदगी पर आपकी पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत हैं ... धन्यवाद आपका ... नीलम जी ,,,
सबसे बड़ी बात यह ह…tag:openbooksonline.com,2010-10-30:5170231:Comment:298022010-10-30T09:29:52.802ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
नीलम जी ,,,<br />
सबसे बड़ी बात यह है कि हम कुछ करना चाहें तो बस के बदले हमें भी लपेट दिया जाता है ,<br />
इसीलिए आमजन ऍमतौर पर आवाज़ उठाने से डरा करता है ...
नीलम जी ,,,<br />
सबसे बड़ी बात यह है कि हम कुछ करना चाहें तो बस के बदले हमें भी लपेट दिया जाता है ,<br />
इसीलिए आमजन ऍमतौर पर आवाज़ उठाने से डरा करता है ... अनीता जी ,,,
एन.सी.सी. में मे…tag:openbooksonline.com,2010-10-30:5170231:Comment:298012010-10-30T09:27:44.801ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
अनीता जी ,,,<br/>
एन.सी.सी. में मेरे साथ भी यही वाकया हुआ करता था जो आपके साथ हुआ ...<br/>
आतंकी जब घर में हो तो बाहर वालों से कितना डरा जाये ...?
अनीता जी ,,,<br/>
एन.सी.सी. में मेरे साथ भी यही वाकया हुआ करता था जो आपके साथ हुआ ...<br/>
आतंकी जब घर में हो तो बाहर वालों से कितना डरा जाये ...? बिलकुल सही कहा आपने शैलेन्द्र…tag:openbooksonline.com,2010-10-30:5170231:Comment:298002010-10-30T09:26:09.800ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
बिलकुल सही कहा आपने शैलेन्द्र जी ...
बिलकुल सही कहा आपने शैलेन्द्र जी ... बागी जी ,,,
इस बहस के हो जाने…tag:openbooksonline.com,2010-10-30:5170231:Comment:297992010-10-30T09:25:31.799ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/JogendraSingh
बागी जी ,,,<br />
इस बहस के हो जाने मात्र से कितना फर्क पड़ जाना है , जब तक कि चर्चा सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है ... उचित होगा कि जिनकी पहुँच उच्चाधिकारियों तक है वे इस जानकारी को भुनाएँ और ऐसे लोगों पर लगाम कसवायें ....
बागी जी ,,,<br />
इस बहस के हो जाने मात्र से कितना फर्क पड़ जाना है , जब तक कि चर्चा सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है ... उचित होगा कि जिनकी पहुँच उच्चाधिकारियों तक है वे इस जानकारी को भुनाएँ और ऐसे लोगों पर लगाम कसवायें .... OBO के मंच पर एक सार्थक बहस क…tag:openbooksonline.com,2010-10-29:5170231:Comment:296222010-10-29T07:49:11.622Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
OBO के मंच पर एक सार्थक बहस का आगाज़ करने के लिए मैं आपको साधुवाद देता हूँ. यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि जिन पर रखवाली की ज़िम्मेदारी होती है, वही सेंध लगाते हैं.यहाँ मैं अपनी ही लिखी दो पंक्तियाँ उधृत करना चाहता हूँ-<br />
जिसे करने में फ़रिश्ते भी शायद डरते हैं.<br />
हम इंसान उसे दिल लगाकर करते हैं.<br />
भाई जोगेंद्र जी, एक बार पुन: मैं आपको धन्यवाद देता हूँ.
OBO के मंच पर एक सार्थक बहस का आगाज़ करने के लिए मैं आपको साधुवाद देता हूँ. यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि जिन पर रखवाली की ज़िम्मेदारी होती है, वही सेंध लगाते हैं.यहाँ मैं अपनी ही लिखी दो पंक्तियाँ उधृत करना चाहता हूँ-<br />
जिसे करने में फ़रिश्ते भी शायद डरते हैं.<br />
हम इंसान उसे दिल लगाकर करते हैं.<br />
भाई जोगेंद्र जी, एक बार पुन: मैं आपको धन्यवाद देता हूँ. कानून के रक्षकों के क्या कहने…tag:openbooksonline.com,2010-10-29:5170231:Comment:295922010-10-29T04:32:27.592ZNeelam Upadhyayahttp://openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
कानून के रक्षकों के क्या कहने । मैं दिल्ली में रहती हूँ । यहाँ रहने वाले वे सभी लोग जो प्राइवेट बसों में यात्रा करते हैं इस बात से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं कि यहाँ की सड़कों पर ड्यूटी देने वाली ट्रैफिक पुलिस का यहाँ की सड़कों पर चलने वाले हर आटो, प्राइवेट बस, चार्टर्ड बस से यहाँ के हर रेड लाइट क्रासिंग पर 'हफ्ता' देना पड़ता है । कभी अगर पैसे देने में थोड़ा भी हीला हवाला किया गया तो बिना मतलब के चालान करना या गाड़ी को थाने में बन्द करवा देना - ये सब आम बात है । अब अगर बस बन्द हो गई तो बस वालों…
कानून के रक्षकों के क्या कहने । मैं दिल्ली में रहती हूँ । यहाँ रहने वाले वे सभी लोग जो प्राइवेट बसों में यात्रा करते हैं इस बात से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं कि यहाँ की सड़कों पर ड्यूटी देने वाली ट्रैफिक पुलिस का यहाँ की सड़कों पर चलने वाले हर आटो, प्राइवेट बस, चार्टर्ड बस से यहाँ के हर रेड लाइट क्रासिंग पर 'हफ्ता' देना पड़ता है । कभी अगर पैसे देने में थोड़ा भी हीला हवाला किया गया तो बिना मतलब के चालान करना या गाड़ी को थाने में बन्द करवा देना - ये सब आम बात है । अब अगर बस बन्द हो गई तो बस वालों के रोजगार पर तो असर होगा ही -रोज काम पर जाने वालों को परेशानी अलग से होती है । इस डर से उन्हें पैसे देने ही पड़ते हैं । इन उगाहे गए पैसों में हिस्सेदारी नीचे से ऊपर के तबके के हर पुलिस वाले की होती है । अगर कोई त्योहार वगैरह आने वाला हो तो उगाही बढ़ जाती है । सभी जानते हैं ये गलत है लेकिन कोई कुछ नहीं कर सकता इसे रोकने के लिये । पुलिस वालो का आतंक ... पूछिए…tag:openbooksonline.com,2010-10-29:5170231:Comment:295772010-10-29T03:05:57.577ZAnita Mauryahttp://openbooksonline.com/profile/AnitaMaurya
पुलिस वालो का आतंक ... पूछिए मत .. जब हम एन सी सी में थे .. और हम लोग ऑटो में घर जाने के लिए जब भी बैठते थे तो ऑटो वाले हमें 'पुलिस में हैं' सोच कर भाडा देने पर भी लेने से इनकार कर देते थे .. इनके आतंक का इस से अच्छा उदाहरण और क्या होगा ...!!
पुलिस वालो का आतंक ... पूछिए मत .. जब हम एन सी सी में थे .. और हम लोग ऑटो में घर जाने के लिए जब भी बैठते थे तो ऑटो वाले हमें 'पुलिस में हैं' सोच कर भाडा देने पर भी लेने से इनकार कर देते थे .. इनके आतंक का इस से अच्छा उदाहरण और क्या होगा ...!!