छंद सलिला: तीन बार हो भंग त्रिभंगी संजीव 'सलिल' - Open Books Online2024-03-29T11:00:04Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:311290?groupUrl=chhand&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noअत्यधिक कठिन छंद है...कई बार…tag:openbooksonline.com,2014-03-04:5170231:Comment:5175892014-03-04T02:59:21.087Zमनोज कुमार सिंह 'मयंक'http://openbooksonline.com/profile/2pfvid8pxd2o7
<p>अत्यधिक कठिन छंद है...कई बार पढ़ना पड़ेगा..किन्तु जिस तरह का विशद वर्णन प्रस्तुत लेख में है..उससे बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है..ऐसा मेरा मत है...कोटिशः आभार आदरणीय </p>
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<p>अत्यधिक कठिन छंद है...कई बार पढ़ना पड़ेगा..किन्तु जिस तरह का विशद वर्णन प्रस्तुत लेख में है..उससे बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है..ऐसा मेरा मत है...कोटिशः आभार आदरणीय </p>
<p></p> आदरणीय सजीव जी,
सादर प्रणाम!…tag:openbooksonline.com,2013-01-31:5170231:Comment:3134422013-01-31T16:49:23.371ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय सजीव जी,</p>
<p>सादर प्रणाम!</p>
<p>मेरे संशय को धैर्यपूर्वक, इतनी गहनता से समझा कर निराकरण करने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ.</p>
<p>सादर.</p>
<p>आदरणीय सजीव जी,</p>
<p>सादर प्रणाम!</p>
<p>मेरे संशय को धैर्यपूर्वक, इतनी गहनता से समझा कर निराकरण करने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ.</p>
<p>सादर.</p> प्राची जी वन्दे मातरम.आपकी रू…tag:openbooksonline.com,2013-01-31:5170231:Comment:3135352013-01-31T14:58:27.293Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
<p>प्राची जी <br></br>वन्दे मातरम.<br></br>आपकी रूचि तथा जिज्ञासु वृत्ति को नमन. <br></br>जगण से आशय लघु गुरु लघु मात्राओं के स्वतंत्र शब्द से है जो आप द्वारा इंगित पंक्तियों में नहीं है. कहीं आ जाए तो उसे अपवाद मानें किन्तु स्वयं जगण का प्रयोग न करें. <br></br><br></br>महाकवि तुलसीदास रचित दो उदाहरण देखें. <br></br>प्रथम उदहारण में पहले, दूसरे व चौथे पद में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं तथा तीसरे पद के अंतिम चरण में ६ के स्थान पर ७ मात्राएँ हैं। यह आदर्श स्थिति नहीं है। रचनाकार…</p>
<p>प्राची जी <br/>वन्दे मातरम.<br/>आपकी रूचि तथा जिज्ञासु वृत्ति को नमन. <br/>जगण से आशय लघु गुरु लघु मात्राओं के स्वतंत्र शब्द से है जो आप द्वारा इंगित पंक्तियों में नहीं है. कहीं आ जाए तो उसे अपवाद मानें किन्तु स्वयं जगण का प्रयोग न करें. <br/><br/>महाकवि तुलसीदास रचित दो उदाहरण देखें. <br/>प्रथम उदहारण में पहले, दूसरे व चौथे पद में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं तथा तीसरे पद के अंतिम चरण में ६ के स्थान पर ७ मात्राएँ हैं। यह आदर्श स्थिति नहीं है। रचनाकार ऐसी त्रुटियों से बचें तो बेहतर है।<br/><br/>धीरज मन कीन्हा, प्रभु मन चीन्हा, रघुपति कृपा भगति पाई।<br/><br/>पदकमल परागा, रस अनुरागा, मम मन मधुप करै पाना।<br/><br/>सोई पद पंकज, जेहि पूजत अज, मम सिर धरेउ कृपाल हरी।<br/><br/>जो अति मन भावा, सो बरु पावा, गै पतिलोक अनन्द भरी।<br/><br/>2. तुलसी की ही निम्न पंक्तियों में हर पद का हर चरण आपने में पूर्ण है।<br/><br/>परसत पद पावन, सोक नसावन, प्रगट भई तप, पुंज सही।<br/><br/>देखत रघुनायक, जन सुख दायक, सनमुख हुइ कर, जोरि रही।<br/><br/>अति प्रेम अधीरा, पुलक सरीरा, मुख नहिं आवै, वचन कही।<br/><br/>अतिशय बड़भागी, चरनन लागी, जुगल नयन जल, धार बही।<br/><br/>यहाँ पहले 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में 'प' तथा 'र' लघु (समान) हैं किन्तु अंतिम 2 पदों में तीसरे चरण के अंत में क्रमशः गुरु तथा लघु हैं।<br/><br/>निर्णय आपको लेना है की आप निर्दोष छंद रचना करे या किसी महान कवि का नाम लेकर दोषों को उचित ठहराएँ. निवेदन मात्र यह किसूर्य के दागों की अनदेखी होती है किन्तु चन्द्र को दाग के कारण कलंकी कह दिया जाता है. शेष आप समझदार हैं. <br/><br/></p> आदरणीय संजीव जी ,
त्रिभंगी छ…tag:openbooksonline.com,2013-01-30:5170231:Comment:3129532013-01-30T13:20:38.579ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय संजीव जी , </p>
<p>त्रिभंगी छंद पर विस्तृत व सम्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ह्रदय से आभार स्वीकारिये.</p>
<p>कल से त्रिभंगी छंद पर एक रचना लिखने का प्रयास कर रही हूँ, पर इसके नियम बहुत क्लिष्ट हैं, सच में आसान नहीं है, सब कुछ साध सकी, पर कहीं न कहीं जगण आ ही जाता था, इसलिए अपनी रचना को त्रुटिपूर्ण ही मान कर मैनें पुनः आपका यह आलेख पड़ा, समझा, यति, मात्रा गणना भी देखीं, विस्तार से....</p>
<p>इस आलेख में उद्धृत छंदों में भी जगण का प्रयोग हुआ है.</p>
<p>इससे मेरा संशय और ज्यादा बढ़ गया…</p>
<p>आदरणीय संजीव जी , </p>
<p>त्रिभंगी छंद पर विस्तृत व सम्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए ह्रदय से आभार स्वीकारिये.</p>
<p>कल से त्रिभंगी छंद पर एक रचना लिखने का प्रयास कर रही हूँ, पर इसके नियम बहुत क्लिष्ट हैं, सच में आसान नहीं है, सब कुछ साध सकी, पर कहीं न कहीं जगण आ ही जाता था, इसलिए अपनी रचना को त्रुटिपूर्ण ही मान कर मैनें पुनः आपका यह आलेख पड़ा, समझा, यति, मात्रा गणना भी देखीं, विस्तार से....</p>
<p>इस आलेख में उद्धृत छंदों में भी जगण का प्रयोग हुआ है.</p>
<p>इससे मेरा संशय और ज्यादा बढ़ गया है... क्या इन नियमों में छूट भी ली जा सकती है, यदि हाँ तो कब व कैसे, कृपया इस बिंदु पर थोड़ा सा प्रकाश डालें. </p>
<p>सादर.</p>
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<p>ऊपर दिए गए उदाहरणों में जगण का प्रयोग .....</p>
<p>पढमं दह रहणं, अट्ठ विरहणं, पुणु वसु र<strong><span style="text-decoration: underline;">हणं, र</span></strong>स रहणं।........................यहाँ जगण है </p>
<p>अन्ते गुरु सोहइ, महिअल मोहइ, सिद्ध <span style="text-decoration: underline;"><strong>सराह</strong></span>इ, वर तरुणं।......................यहाँ जगण है </p>
<p>जइ पलइ पओहर, किमइ <span style="text-decoration: underline;"><strong>मणोह</strong></span>र, हरइ <strong><span style="text-decoration: underline;">कलेव</span></strong>र, तासु कई।......................यहाँ जगण है </p>
<p>तिब्भन्गी छंदं, सुक्खाणंदं, भणइ फणिन्दो, विमल मई। </p>
<p> (संकेत: अष्ट वसु = 8, रस = 6) </p>
<p>सारांश: प्रथम यति 10 मात्रा पर, दूसरी 8 मात्रा पर, तीसरी 8 मात्रा पर तथा चौथी 6 मात्रा पर हो। हर पदांत में गुरु हो तथा जगण (ISI लघु गुरु लघु ) कहीं न हो।</p>
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<p>भानुकवि के छंद-प्रभाकर के अनुसार:</p>
<p>दस बसु बसु संगी, जन रसरंगी, छंद त्रिभंगी, गंत भलो।</p>
<p>स<span style="text-decoration: underline;"><strong>ब संत</strong></span> सुजाना, जाहि बखाना, सोइ पुराना, पन्थ चलो।.............यहाँ जगण है </p>
<p>मोहन बनवारी, गिरवरधरी, कुञ्जबिहारी, पग परिये।</p>
<p>सब घट घट वासी मंगल रासी, रासविलासी उर धरिये।</p>
<p>(संकेत: बसु = 8, जन = जगण नहीं, गंत = गुरु से अंत)</p>
<p></p>
<p>सु<span style="text-decoration: underline;"><strong>र काज</strong></span> संवारन, अधम <strong><span style="text-decoration: underline;">उघार</span></strong>न, दैत्य <strong><span style="text-decoration: underline;">विदार</span></strong>न, टेक धरे।..........................यहाँ जगण है </p>
<p>प्रगटे गोकुल में, हरि छिन छिन में, नन्द हिये में, मोद भरे।</p>
<p>सूत्र: धिन ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना धिन, ताक धिना।</p>
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सही, सटीक प्रस्तुति, आदरणीय…tag:openbooksonline.com,2013-01-25:5170231:Comment:3114712013-01-25T17:30:48.485ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><strong> </strong></p>
<p>सही, सटीक प्रस्तुति, आदरणीय आचार्यजी.</p>
<p>त्रिभंगी ही नहीं किसी छंद की आदर्श स्थिति का होना, न होना अलग, इसकी विशद स्वीकार्यता उक्त छंद को विशिष्ट और अनुकरणीय बनाता है. तभी यह उक्ति सामने आती है, कि <em>तुलसीदास रचित इस उदाहरण में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं, यह आदर्श स्थिति नहीं है किन्तु मान्य है.</em> तभी, आदरणीय, हमने निवेदन किया था और अबभी कायम हूँ, कि <strong>आलेख प्रस्तुतिकरण के क्रम में दायित्व-बोध अवश्य ही संयत और…</strong></p>
<p><strong> </strong></p>
<p>सही, सटीक प्रस्तुति, आदरणीय आचार्यजी.</p>
<p>त्रिभंगी ही नहीं किसी छंद की आदर्श स्थिति का होना, न होना अलग, इसकी विशद स्वीकार्यता उक्त छंद को विशिष्ट और अनुकरणीय बनाता है. तभी यह उक्ति सामने आती है, कि <em>तुलसीदास रचित इस उदाहरण में तीसरे चरण की 8 मात्राएँ अगले शब्द के प्रथम अक्षर पर पूर्ण होती हैं, यह आदर्श स्थिति नहीं है किन्तु मान्य है.</em> तभी, आदरणीय, हमने निवेदन किया था और अबभी कायम हूँ, कि <strong>आलेख प्रस्तुतिकरण के क्रम में दायित्व-बोध अवश्य ही संयत और शोधपरक होने की अपेक्षा करता है. हम किसी पुस्तक-विशेष पर या किसी मान्यता-विशेष पर अतिनिर्भर होकर तार्किक न हों. </strong></p>
<p>आपकी विशद प्रस्तुति से बहुत कुछ स्पष्ट हुआ है. इस सफल प्रयास से नव-हस्ताक्षरों और गंभीर रचनाकर्मियों के लिए बेहतर वातावरण उपलब्ध हुआ है, सुलभ मार्ग प्रशस्त हुआ है. <strong>आपकी सोदाहरण प्रस्तुति सूत्रात्मकता पर समृद्ध कारिका तरह समक्ष है</strong>. </p>
<p>सादर</p> आदरणीय गुरुदेव को सादर प्रणाम…tag:openbooksonline.com,2013-01-25:5170231:Comment:3113912013-01-25T15:11:23.059ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>आदरणीय गुरुदेव को सादर प्रणाम,</p>
<p>उपरोक्त आलेख हम सभी के लिए दिशा निर्देशक व अत्यंत उपयोगी है ! इसे विस्तार से साझा करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय | साद्र्र |</p>
<p>आदरणीय गुरुदेव को सादर प्रणाम,</p>
<p>उपरोक्त आलेख हम सभी के लिए दिशा निर्देशक व अत्यंत उपयोगी है ! इसे विस्तार से साझा करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय | साद्र्र |</p>