नवगीत ( एक परिचर्चा) - Open Books Online2024-03-28T15:16:56Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:358338?groupUrl=chhand&commentId=5170231%3AComment%3A586374&groupId=5170231%3AGroup%3A156482&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय डॉ.प्राची जी निवेदन है…tag:openbooksonline.com,2014-11-10:5170231:Comment:5863742014-11-10T02:58:56.650ZRahul Dangi Panchalhttp://openbooksonline.com/profile/RahulDangi
आदरणीय डॉ.प्राची जी निवेदन है ! अगर आप गीत पर भी एक एेसा ही लेख दे तो बडा आभार होगा! सादर!
आदरणीय डॉ.प्राची जी निवेदन है ! अगर आप गीत पर भी एक एेसा ही लेख दे तो बडा आभार होगा! सादर! आदरणीया डॉ. प्राची जी...
आपका…tag:openbooksonline.com,2013-10-10:5170231:Comment:4524832013-10-10T15:41:24.139ZSushil.Joshihttp://openbooksonline.com/profile/SushilJoshi
<p>आदरणीया डॉ. प्राची जी...</p>
<p>आपका यह लेख वाकई मेरी गीत लेखन से जुड़ी अनेक शंकाओं को निरस्त करने में सफल हुआ है.... आदरणीय विजय निकोरे जी की सलाह पर आपने अनेक उदाहरण भी साँझा किए जिससे बची खुची शंकाओं का भी समाधान हो गया.... इतने विस्तार से एवं सरल भाषा में नवगीत लेखन पर आलेख लिखकर आपने जिस प्रकार से हमारी मुश्किलों को आसान किया है, वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ़ है..... इसके लिए आपके समक्ष नत् मस्तक हूँ..... सादर धन्यवाद आपका....</p>
<p>आदरणीया डॉ. प्राची जी...</p>
<p>आपका यह लेख वाकई मेरी गीत लेखन से जुड़ी अनेक शंकाओं को निरस्त करने में सफल हुआ है.... आदरणीय विजय निकोरे जी की सलाह पर आपने अनेक उदाहरण भी साँझा किए जिससे बची खुची शंकाओं का भी समाधान हो गया.... इतने विस्तार से एवं सरल भाषा में नवगीत लेखन पर आलेख लिखकर आपने जिस प्रकार से हमारी मुश्किलों को आसान किया है, वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ़ है..... इसके लिए आपके समक्ष नत् मस्तक हूँ..... सादर धन्यवाद आपका....</p> आदरणीया प्राची जी , इतनी जल्द…tag:openbooksonline.com,2013-09-05:5170231:Comment:4294262013-09-05T15:03:26.195Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीया प्राची जी , इतनी जल्दी संशय समाधार के लिये आपका आभार !! बात साफ हो गई !!</p>
<p>आदरणीया प्राची जी , इतनी जल्दी संशय समाधार के लिये आपका आभार !! बात साफ हो गई !!</p> आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
इस…tag:openbooksonline.com,2013-09-05:5170231:Comment:4292632013-09-05T14:44:58.608ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,</p>
<p>इस आलेख पर आपका स्वागत है.. </p>
<p>आपके संशय का स्वागत है..</p>
<p></p>
<p>//मात्रा विधान क्या कढाई से पालन करना ज़रूरी है//</p>
<p>आदरणीय, इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले मात्रिकता के महत्व को समझा जाना ज़रूरी है.. तब इस प्रश्न का उत्तर स्वतः ही मिल जाता है..</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक आधुनिक समय में प्रचलित हो चुकी स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता की बात है तो इस बिंदु पर दो धाराएं विपरीत धुर पर दिखती ही हैं, और दोनों की ही मान्यता व्याप्त हैं.. अब सही गलत को तय…</p>
<p>आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,</p>
<p>इस आलेख पर आपका स्वागत है.. </p>
<p>आपके संशय का स्वागत है..</p>
<p></p>
<p>//मात्रा विधान क्या कढाई से पालन करना ज़रूरी है//</p>
<p>आदरणीय, इस प्रश्न का उत्तर समझने से पहले मात्रिकता के महत्व को समझा जाना ज़रूरी है.. तब इस प्रश्न का उत्तर स्वतः ही मिल जाता है..</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक आधुनिक समय में प्रचलित हो चुकी स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता की बात है तो इस बिंदु पर दो धाराएं विपरीत धुर पर दिखती ही हैं, और दोनों की ही मान्यता व्याप्त हैं.. अब सही गलत को तय करना तो बहुत मुश्किल है..</p>
<p></p>
<p>और यदि मेरी निजी मान्यता की बात है..तो मैं तो गीत-नवगीत में मात्रिकता का कढ़ाई से पालन करने की ही पक्षधर हूँ.</p>
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<p>सादर! </p> आदरणीय प्राची जी , लेख से बहु…tag:openbooksonline.com,2013-09-05:5170231:Comment:4291622013-09-05T13:02:28.365Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय प्राची जी , लेख से बहुत कुछ समझा , कुछ शंका बाकी भी है , मात्रा विधान क्या कडाई से पालना ज़रूरी है , ऊपर के उदाहर्णो मे मात्राओं मे फर्क दिख रहा है , खास कर आदरणीय अटल जी की रचनाओं मे !!</p>
<p>आदरणीय प्राची जी , लेख से बहुत कुछ समझा , कुछ शंका बाकी भी है , मात्रा विधान क्या कडाई से पालना ज़रूरी है , ऊपर के उदाहर्णो मे मात्राओं मे फर्क दिख रहा है , खास कर आदरणीय अटल जी की रचनाओं मे !!</p> आदरणीय सौरभ जी यह नियम उपर्यु…tag:openbooksonline.com,2013-05-16:5170231:Comment:3635102013-05-16T18:00:26.524Zबृजेश नीरजhttp://openbooksonline.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आदरणीय सौरभ जी यह नियम उपर्युक्त लेख में 'नवगीत का शिल्प' के तहत <span>चौ</span>थे पैराग्राफ की दूसरी पंक्ति में दिया हुआ है।</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी यह नियम उपर्युक्त लेख में 'नवगीत का शिल्प' के तहत <span>चौ</span>थे पैराग्राफ की दूसरी पंक्ति में दिया हुआ है।</p> आपका उद्धरण कहाँ से है यदि उस…tag:openbooksonline.com,2013-05-16:5170231:Comment:3634842013-05-16T17:31:07.065ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपका उद्धरण कहाँ से है यदि उसका मूल मिल पाया तो और स्पष्ट हो सकूँगा, भाईबृजेशजी.</p>
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<p>आपका उद्धरण कहाँ से है यदि उसका मूल मिल पाया तो और स्पष्ट हो सकूँगा, भाईबृजेशजी.</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी,
//हर अंतरा द…tag:openbooksonline.com,2013-05-16:5170231:Comment:3632962013-05-16T16:32:28.340Zबृजेश नीरजhttp://openbooksonline.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p><span> </span>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>//हर अंतरा दूसरे अंतरे व मुखड़े से सम्तुकान्ताता अनिवार्य रूप से रखता है//</p>
<p>लेख में नवगीत के शिल्प के संबंध में इस निर्देश के परिप्रेक्ष्य में आप द्वारा उल्लिखित रचना की स्थिति के संबंध में मार्गदर्शन चाहूंगा।</p>
<p><span> </span>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>//हर अंतरा दूसरे अंतरे व मुखड़े से सम्तुकान्ताता अनिवार्य रूप से रखता है//</p>
<p>लेख में नवगीत के शिल्प के संबंध में इस निर्देश के परिप्रेक्ष्य में आप द्वारा उल्लिखित रचना की स्थिति के संबंध में मार्गदर्शन चाहूंगा।</p> रचनाकारों द्वारा स्वयं ही तय…tag:openbooksonline.com,2013-05-16:5170231:Comment:3633682013-05-16T14:24:49.052ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><strong>रचनाकारों द्वारा स्वयं ही तय मात्रिकता..</strong> यानि मुखड़े और अंतरे को नियत कर लयबद्ध करलें ताकि आगे की पंक्तियों में असहजता न बने.. जैसे कि आपने <strong>ये सच है माँ</strong> में किया है.. .</p>
<p></p>
<p>आपकी रचना <strong>ये सच है माँ</strong> कथ्य, तथ्य, मात्रिक-शिल्प, प्रभाव, गेयता, शब्द-संयोजन हर तरह से समृद्ध रचना है. इसकी बधाई यहाँ भी स्वीकारें, आदरणीय</p>
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<p><strong>रचनाकारों द्वारा स्वयं ही तय मात्रिकता..</strong> यानि मुखड़े और अंतरे को नियत कर लयबद्ध करलें ताकि आगे की पंक्तियों में असहजता न बने.. जैसे कि आपने <strong>ये सच है माँ</strong> में किया है.. .</p>
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<p>आपकी रचना <strong>ये सच है माँ</strong> कथ्य, तथ्य, मात्रिक-शिल्प, प्रभाव, गेयता, शब्द-संयोजन हर तरह से समृद्ध रचना है. इसकी बधाई यहाँ भी स्वीकारें, आदरणीय</p>
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<p></p> //वस्तुतः नवगीत की उदार धारा…tag:openbooksonline.com,2013-05-16:5170231:Comment:3633442013-05-16T12:09:58.727Zराजेश 'मृदु'http://openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha
<p>//वस्तुतः नवगीत की उदार धारा <strong>रचनाकारों द्वारा स्वयं ही तय मात्रिकता</strong> से लेकर <strong>पूर्व से ही उपलब्ध सूत्रों और मात्रिकता के नियमों से अपने अनुसार मात्रिकता को चयनित</strong> कर लेने जैसे दो पाटों के बीच से बहती है. यही विन्दु इस विधा के रचनाकार के प्रयास को अभिनव बना देता है//</p>
<p></p>
<p>आदरणीय, आपका यह मंतव्य ''उदित भानु जिमि शिशिर निपाता'' को पूरी तरह चरितार्थ कर रही है । मुझे लगता है कि इस मार्गदर्शी सिद्वांत के बाद नवगीत में मात्रिकता को लेकर कोई संशय नहीं होना…</p>
<p>//वस्तुतः नवगीत की उदार धारा <strong>रचनाकारों द्वारा स्वयं ही तय मात्रिकता</strong> से लेकर <strong>पूर्व से ही उपलब्ध सूत्रों और मात्रिकता के नियमों से अपने अनुसार मात्रिकता को चयनित</strong> कर लेने जैसे दो पाटों के बीच से बहती है. यही विन्दु इस विधा के रचनाकार के प्रयास को अभिनव बना देता है//</p>
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<p>आदरणीय, आपका यह मंतव्य ''उदित भानु जिमि शिशिर निपाता'' को पूरी तरह चरितार्थ कर रही है । मुझे लगता है कि इस मार्गदर्शी सिद्वांत के बाद नवगीत में मात्रिकता को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए । चौबीस कैरेट सोने सी खरी बात आपने कह दी है, सादर</p>