भोजपुरी लघुकथा : मन्थरा (गणेश जी बागी) - Open Books Online2024-03-19T04:10:45Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:482044?groupUrl=bhojpuri_sahitya&commentId=5170231%3AComment%3A520418&x=1&feed=yes&xn_auth=noपरनाम आदरणीय बैद्यनाथ भाई, एह…tag:openbooksonline.com,2014-03-12:5170231:Comment:5204182014-03-12T04:33:04.354ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>परनाम आदरणीय बैद्यनाथ भाई, एह सराहना प मन दोबाला हो गईल, का कहल जाव समाज के, भात भात के लोग बा, बहुत बहुत आभार राउर .</p>
<p>परनाम आदरणीय बैद्यनाथ भाई, एह सराहना प मन दोबाला हो गईल, का कहल जाव समाज के, भात भात के लोग बा, बहुत बहुत आभार राउर .</p> आदरणीय मनोज भाई जी, एह परयास…tag:openbooksonline.com,2014-03-12:5170231:Comment:5203142014-03-12T04:29:54.009ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीय मनोज भाई जी, एह परयास पर राउर आशिर्बाद मिलल, बहुते निक लागल, राउर सराहना खातिर बहुते आभार .</p>
<p>आदरणीय मनोज भाई जी, एह परयास पर राउर आशिर्बाद मिलल, बहुते निक लागल, राउर सराहना खातिर बहुते आभार .</p> आदरणीया मीना पाठक जी, लेखक जव…tag:openbooksonline.com,2014-03-12:5170231:Comment:5202012014-03-12T04:27:17.791ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>आदरणीया मीना पाठक जी, लेखक जवन देखेला भा महसूस करेला उहे नु लेखनी के माध्यम से निकलेला, कही ना कही, कतहु ना कतहु, कुछो ना कुछो बात त जरुरे बा जे लघुकथा जनम लिहलस, कथा रउआ के पसन् आइल, राउर बहुत बहुत आभार .</p>
<p>आदरणीया मीना पाठक जी, लेखक जवन देखेला भा महसूस करेला उहे नु लेखनी के माध्यम से निकलेला, कही ना कही, कतहु ना कतहु, कुछो ना कुछो बात त जरुरे बा जे लघुकथा जनम लिहलस, कथा रउआ के पसन् आइल, राउर बहुत बहुत आभार .</p> आदरणीय बागी भईया, गोर लाग तान…tag:openbooksonline.com,2014-03-10:5170231:Comment:5200242014-03-10T08:15:20.470ZSaarthi Baidyanathhttp://openbooksonline.com/profile/saarthibaidyanath
<p>आदरणीय बागी भईया, गोर लाग तानी ! राउर इ कहानी पढ़े घड़ी, एक दमे अइसन लागे लागल जैसे कि एगो सनेमा देखा तानी ! बहुते बन्हिया आ सुनर लिखले बाड़ा भईया ...! घर दुआर में त , बड़- बुजुर्ग के, सही गियान देवे के चाहीं लेकिन जब ओही लोगिन गलत आ खराब रस्ता दिखावे लागे लन लोग , त का करल जाव ! कहानी के मतलब बहुते साच बा ..अइसन होखबे करेला ...! राउर लेखनी के कर जोड़ प्रणाम एक बार फिरू से ! :)</p>
<p>आदरणीय बागी भईया, गोर लाग तानी ! राउर इ कहानी पढ़े घड़ी, एक दमे अइसन लागे लागल जैसे कि एगो सनेमा देखा तानी ! बहुते बन्हिया आ सुनर लिखले बाड़ा भईया ...! घर दुआर में त , बड़- बुजुर्ग के, सही गियान देवे के चाहीं लेकिन जब ओही लोगिन गलत आ खराब रस्ता दिखावे लागे लन लोग , त का करल जाव ! कहानी के मतलब बहुते साच बा ..अइसन होखबे करेला ...! राउर लेखनी के कर जोड़ प्रणाम एक बार फिरू से ! :)</p> आदरणीय गणेश भाई..पहिली बार ई…tag:openbooksonline.com,2014-03-10:5170231:Comment:5198292014-03-10T02:59:19.167Zमनोज कुमार सिंह 'मयंक'http://openbooksonline.com/profile/2pfvid8pxd2o7
<p>आदरणीय गणेश भाई..पहिली बार ई लघुकथा पढली..अउर सरासर दिमाग में उतरि गयल..अपने माटी क सोंधापन लिहले यह रचना क जेतनों तारीफ किह्ल जाय कम बा..भोजपुरी में काम करे क बहुतै जरूरत बा..आउर एम्मे आप लोगन क योगदान..सराहना करे क शब्द नाहीं मिल पावत बाटे| </p>
<p>आदरणीय गणेश भाई..पहिली बार ई लघुकथा पढली..अउर सरासर दिमाग में उतरि गयल..अपने माटी क सोंधापन लिहले यह रचना क जेतनों तारीफ किह्ल जाय कम बा..भोजपुरी में काम करे क बहुतै जरूरत बा..आउर एम्मे आप लोगन क योगदान..सराहना करे क शब्द नाहीं मिल पावत बाटे| </p> एगो बाति कहीं आ० गनेश जी .. इ…tag:openbooksonline.com,2013-12-20:5170231:Comment:4897172013-12-20T07:12:03.566ZMeena Pathakhttp://openbooksonline.com/profile/MeenaPathak
<p>एगो बाति कहीं आ० गनेश जी .. इ नईहर के लोग बुचिया के बिगाडेला लोग, साच्चों.... बाकी बड़ा निक लागल राउर इ लघुकथा|<br/> खूब ढेर के बधाई रउरा खातिर | एगो बतिया अऊर ... बहुते मंथरा बा लोग अबहिन , सच में</p>
<p>एगो बाति कहीं आ० गनेश जी .. इ नईहर के लोग बुचिया के बिगाडेला लोग, साच्चों.... बाकी बड़ा निक लागल राउर इ लघुकथा|<br/> खूब ढेर के बधाई रउरा खातिर | एगो बतिया अऊर ... बहुते मंथरा बा लोग अबहिन , सच में</p> राउर कहनाम एकदमे सही बा, लोगन…tag:openbooksonline.com,2013-12-07:5170231:Comment:4838252013-12-07T11:36:07.261ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>राउर कहनाम एकदमे सही बा, लोगन के सोच में बकलोलई घुस गईल बा, जाने अनजाने आपने संतान के दुसमन बन जात बा लोग,उ कहल बा नु, "रक्षा में हत्या" , रक्षा आ हत्या के बोध ख़तम होत जात बा आ परिणाम इ बा कि परिवार एकाकी होत जात बा । समाज मे हो रहल गतिबिधियन के सामने लावे के प्रयास स्वरुप ई लघुकथा जनम लिहलस, राउर आशीर्वाद मिलल ,लिखल सुफल भईल, बहुते आभार आदरणीय सौरभ भईया ।</p>
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<p>राउर कहनाम एकदमे सही बा, लोगन के सोच में बकलोलई घुस गईल बा, जाने अनजाने आपने संतान के दुसमन बन जात बा लोग,उ कहल बा नु, "रक्षा में हत्या" , रक्षा आ हत्या के बोध ख़तम होत जात बा आ परिणाम इ बा कि परिवार एकाकी होत जात बा । समाज मे हो रहल गतिबिधियन के सामने लावे के प्रयास स्वरुप ई लघुकथा जनम लिहलस, राउर आशीर्वाद मिलल ,लिखल सुफल भईल, बहुते आभार आदरणीय सौरभ भईया ।</p>
<p></p> गनेस भाई, लघु-काथा पढ़नी हम. ई…tag:openbooksonline.com,2013-12-04:5170231:Comment:4827542013-12-04T18:14:17.908ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>गनेस भाई, लघु-काथा पढ़नी हम. <br></br>ईहो एगो रूपे ह, एही समाज के ! घर के बड़ लोग सचेत ना रहल त आन गाँव के कमतर बिचार एही तरी आपन पैठ बनावे लागेला. आ अक्सरहा कवनो हँसत-खेलत घर के मसान बना के ध देला. एही से गाँव-जवार में तब एगो मान्यता प्रचलित रहे जे कवनो बहु-बहुरिया के शुरुआतिये में हाली-हाली नइहर नत भेजल जाओ. तब बहुरियनो के उमिर काँचे होत रहे. आज के बहु-बहुरिया आतना काँच उमिर के नइखी स आवत. बाकि अपना संतान के खुस देखे के अहस कवनो माई के कतना निर्घिन सोच से भर सकेले एकर नीमन उदाहरण दे रहल बिया ई…</p>
<p>गनेस भाई, लघु-काथा पढ़नी हम. <br/>ईहो एगो रूपे ह, एही समाज के ! घर के बड़ लोग सचेत ना रहल त आन गाँव के कमतर बिचार एही तरी आपन पैठ बनावे लागेला. आ अक्सरहा कवनो हँसत-खेलत घर के मसान बना के ध देला. एही से गाँव-जवार में तब एगो मान्यता प्रचलित रहे जे कवनो बहु-बहुरिया के शुरुआतिये में हाली-हाली नइहर नत भेजल जाओ. तब बहुरियनो के उमिर काँचे होत रहे. आज के बहु-बहुरिया आतना काँच उमिर के नइखी स आवत. बाकि अपना संतान के खुस देखे के अहस कवनो माई के कतना निर्घिन सोच से भर सकेले एकर नीमन उदाहरण दे रहल बिया ई लघु-काथा. <br/>घर-परिवार, गाँव-समाज के एगो जानल-बूझल तथ्य जतना सादगी से प्रस्तुत भइल बा, ओह खातिर गनेस भाई, तहरा निकहा बधाई.<br/>लघुकाथा सुन्दर भइल बा.</p>
<p></p> जे 'मन्थरा ' बहुब्रिही रूप मे…tag:openbooksonline.com,2013-12-04:5170231:Comment:4821682013-12-04T05:22:21.039Zविजय मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/37jicf27kggmy
जे 'मन्थरा ' बहुब्रिही रूप में बा ,जौनकी ए भाषा में सही में बहुत बोलल जाला त सार्थक ह | धन्यवाद बागीजी |
जे 'मन्थरा ' बहुब्रिही रूप में बा ,जौनकी ए भाषा में सही में बहुत बोलल जाला त सार्थक ह | धन्यवाद बागीजी | धन्यवाद .................tag:openbooksonline.com,2013-12-04:5170231:Comment:4824552013-12-04T04:07:48.431ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>धन्यवाद .................</p>
<p>धन्यवाद .................</p>