अर्थ गौरव की ऊर्जा है शब्द शक्ति - Open Books Online2024-03-28T19:34:40Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:542724?groupUrl=chhand&x=1&groupId=5170231%3AGroup%3A156482&id=5170231%3ATopic%3A542724&feed=yes&xn_auth=noआ० वामनकर जी
आपका बहुत बहुत आ…tag:openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6462682015-04-27T14:24:21.788Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० वामनकर जी</p>
<p>आपका बहुत बहुत आभार .</p>
<p>आ० वामनकर जी</p>
<p>आपका बहुत बहुत आभार .</p> आदरणीय छाया जी
सादर आभार .tag:openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6461672015-04-27T14:23:16.601Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय छाया जी</p>
<p>सादर आभार .</p>
<p>आदरणीय छाया जी</p>
<p>सादर आभार .</p> आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्त…tag:openbooksonline.com,2015-04-26:5170231:Comment:6460412015-04-26T19:22:35.350Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, शब्द शक्ति पर बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख के लिए हार्दिक आभार </p>
<p>ये आलेख न पढ़ते तो हम सच में <span>बछिया के ताऊ रह जाते.</span></p>
<p>एक निवेदन है यदि पैराग्राफ के बीच थोड़ा स्पेस हो तो पढने में सहजता होगी. सादर </p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, शब्द शक्ति पर बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख के लिए हार्दिक आभार </p>
<p>ये आलेख न पढ़ते तो हम सच में <span>बछिया के ताऊ रह जाते.</span></p>
<p>एक निवेदन है यदि पैराग्राफ के बीच थोड़ा स्पेस हो तो पढने में सहजता होगी. सादर </p> आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्त…tag:openbooksonline.com,2014-09-22:5170231:Comment:5769732014-09-22T08:14:55.839ZChhaya Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/ChhayaShukla
<p>आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी <br/>गहन सुस्पस्ट विस्तृत जानकारी पढकर बहुत अच्छा लगा |लगा जैसे क्लास में हूँ |</p>
<p>सादर नमन आदरणीय विस्तृत जानकारी हेतु ....</p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी <br/>गहन सुस्पस्ट विस्तृत जानकारी पढकर बहुत अच्छा लगा |लगा जैसे क्लास में हूँ |</p>
<p>सादर नमन आदरणीय विस्तृत जानकारी हेतु ....</p> आदरणीय विजयजी
आपके इस दुलार क…tag:openbooksonline.com,2014-09-22:5170231:Comment:5770202014-09-22T06:30:33.028Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय विजयजी</p>
<p>आपके इस दुलार का अभारी हूँ i</p>
<p>आदरणीय विजयजी</p>
<p>आपके इस दुलार का अभारी हूँ i</p> कहते सुनते तो सभी हैं, पर इस…tag:openbooksonline.com,2014-09-21:5170231:Comment:5767062014-09-21T18:01:26.785ZDr.Vijay Prakash Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/VijayPrakashSharma
<p>कहते सुनते तो सभी हैं, पर इस आलेख में गुणने की आपकी क्षमता का मैं कायल हूँ आदरणीय, बधाई भी स्वीकारें..</p>
<p>कहते सुनते तो सभी हैं, पर इस आलेख में गुणने की आपकी क्षमता का मैं कायल हूँ आदरणीय, बधाई भी स्वीकारें..</p> आदरणीय विजय प्रकाश जी
सर्व प्…tag:openbooksonline.com,2014-06-17:5170231:Comment:5497652014-06-17T15:18:19.224Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय विजय प्रकाश जी</p>
<p>सर्व प्रथम आपको आभार की आपको रचना पसंद आई i जहा तक पढा और समझा, मैंने यही जाना कि साहित्य की अभिरुचि जन्मजात होती है i मेरी एक कविता है - </p>
<p> शब्द व्यायाम से गीत बनते नहीं</p>
<p> वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है i</p>
<p> गीत तो आंसुओ में ढले है सदा</p>
<p> यदि हृदय में प्रबल आग ही आग…</p>
<p>आदरणीय विजय प्रकाश जी</p>
<p>सर्व प्रथम आपको आभार की आपको रचना पसंद आई i जहा तक पढा और समझा, मैंने यही जाना कि साहित्य की अभिरुचि जन्मजात होती है i मेरी एक कविता है - </p>
<p> शब्द व्यायाम से गीत बनते नहीं</p>
<p> वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है i</p>
<p> गीत तो आंसुओ में ढले है सदा</p>
<p> यदि हृदय में प्रबल आग ही आग है i</p>
<p>और वह आग तो आप में है फिर पछतावा कैसा ?</p>
<p> </p> डॉ गोपाल नारायन जी, वैसे तो म…tag:openbooksonline.com,2014-06-17:5170231:Comment:5497502014-06-17T12:55:41.977ZDr.Vijay Prakash Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/VijayPrakashSharma
<p>डॉ गोपाल नारायन जी,<br></br> वैसे तो मैं हिंदी केवल अ. भा . भाषा के रूप में ही पढ़ पाया क्योंकि अंगरेजी माध्यम था मेरी पढाई का.<br></br> लेकिन मेरे बहुत से मित्र हिंदी छात्र थे और वे बड़ी -बड़ी ,सुन्दर कवितायें लिखा करते थे और एक झोंपड़पति के चाय दूकान में हम सब शाम को जमा होकर कविताये सुनते और एक दूसरे की खिचाई किया करते. बाद में उनमे अधिकांश मित्र हिंदी के प्रोफेसर,प्रिंसिपल,हो गए.कुच्छ ने कवि सम्मेलनों में धूम मचाई.बाकी रही मेरी सचाई- जुम्मन मिआं के पिता की रकाबी मलते- मलते अलगू भी चौधुरी हो…</p>
<p>डॉ गोपाल नारायन जी,<br/> वैसे तो मैं हिंदी केवल अ. भा . भाषा के रूप में ही पढ़ पाया क्योंकि अंगरेजी माध्यम था मेरी पढाई का.<br/> लेकिन मेरे बहुत से मित्र हिंदी छात्र थे और वे बड़ी -बड़ी ,सुन्दर कवितायें लिखा करते थे और एक झोंपड़पति के चाय दूकान में हम सब शाम को जमा होकर कविताये सुनते और एक दूसरे की खिचाई किया करते. बाद में उनमे अधिकांश मित्र हिंदी के प्रोफेसर,प्रिंसिपल,हो गए.कुच्छ ने कवि सम्मेलनों में धूम मचाई.बाकी रही मेरी सचाई- जुम्मन मिआं के पिता की रकाबी मलते- मलते अलगू भी चौधुरी हो गया.<br/> अपने मित्रों से अभिधा , व्यंजना , लक्षणा सुनता था पर समझ नहीं पाता था.आपके इस आलेख ने तो "गागर में सागर" की तरह सब स्पष्ट कर दिया.हार्दिक आभार स्वीकारें.</p> आदरणीय भ्रमर जी
आपने रचना हे…tag:openbooksonline.com,2014-06-14:5170231:Comment:5483932014-06-14T08:33:34.618Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय भ्रमर जी</p>
<p>आपने रचना हेतु समय दिया i पसंद किया i आपका शत-शत आभार i </p>
<p>आदरणीय भ्रमर जी</p>
<p>आपने रचना हेतु समय दिया i पसंद किया i आपका शत-शत आभार i </p> आदरणीय डॉ गोपाल जी बहुत उपयोग…tag:openbooksonline.com,2014-06-14:5170231:Comment:5485392014-06-14T04:58:54.506ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttp://openbooksonline.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p>आदरणीय डॉ गोपाल जी बहुत उपयोगी ,ज्ञानवर्धक आलेख सीखने समझने लायक आपका बहुत बहुत आभार कि आपने यह उपयोगी जानकारी यहाँ साझा की आजकल समयाभाव और लोगों की रूचि की कमी होने से इससे हम वंचित रह जाते हैं माह की सर्व श्रेष्ट रचना से सम्मानित इस रचना के लिए बधाई <br/>भ्रमर ५</p>
<p>आदरणीय डॉ गोपाल जी बहुत उपयोगी ,ज्ञानवर्धक आलेख सीखने समझने लायक आपका बहुत बहुत आभार कि आपने यह उपयोगी जानकारी यहाँ साझा की आजकल समयाभाव और लोगों की रूचि की कमी होने से इससे हम वंचित रह जाते हैं माह की सर्व श्रेष्ट रचना से सम्मानित इस रचना के लिए बधाई <br/>भ्रमर ५</p>