"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-२ में स्वीकृत सभी लघुकथाएँ - Open Books Online2024-03-28T15:29:21Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:661103?feed=yes&xn_auth=noएक से बढ़कर एक कथा संकलन में श…tag:openbooksonline.com,2017-08-24:5170231:Comment:8756612017-08-24T13:11:52.574ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>एक से बढ़कर एक कथा संकलन में शामिल हुई है आदरणीय सर ,साधुवाद आपकी इस मेहनत के लिए | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई |</p>
<p>एक से बढ़कर एक कथा संकलन में शामिल हुई है आदरणीय सर ,साधुवाद आपकी इस मेहनत के लिए | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई |</p> सादर धन्यवाद सर |tag:openbooksonline.com,2017-08-18:5170231:Comment:8745162017-08-18T14:58:52.782ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>सादर धन्यवाद सर |</p>
<p>सादर धन्यवाद सर |</p> "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक…tag:openbooksonline.com,2017-08-17:5170231:Comment:8739982017-08-17T06:15:21.380Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-1 में शामिल लघुकथाओं का संकलन:</p>
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<p><a href="http://openbooksonline.com/forum/topics/1-1" target="_blank">http://openbooksonline.com/forum/topics/1-1</a></p>
<p>"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-1 में शामिल लघुकथाओं का संकलन:</p>
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<p><a href="http://openbooksonline.com/forum/topics/1-1" target="_blank">http://openbooksonline.com/forum/topics/1-1</a></p> आज इन कथाओं को पढ़कर अच्छा लगा…tag:openbooksonline.com,2017-08-16:5170231:Comment:8741342017-08-16T11:43:40.940ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>आज इन कथाओं को पढ़कर अच्छा लगा | पहले संकलन में शामिल रचनाये मिल नहीं रही है पर कुछ कथाये पढ़ी उसकी भी सर पहला विषय दीवार , दूसरा पहचान | एक से बढ़कर एक नयी चीज़ पढने को मिली है | एक ही विषय पर अलग अलग ख्याल और उसको अपने शब्दों में पिरोना और आपका यह त्वरित का संकलन | नमन है आपको और इस मंच को सब की पुरानी रचनाओं को भी संजो के रखा हुआ है | </p>
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<p>जय ओ बी ओ |</p>
<p>आज इन कथाओं को पढ़कर अच्छा लगा | पहले संकलन में शामिल रचनाये मिल नहीं रही है पर कुछ कथाये पढ़ी उसकी भी सर पहला विषय दीवार , दूसरा पहचान | एक से बढ़कर एक नयी चीज़ पढने को मिली है | एक ही विषय पर अलग अलग ख्याल और उसको अपने शब्दों में पिरोना और आपका यह त्वरित का संकलन | नमन है आपको और इस मंच को सब की पुरानी रचनाओं को भी संजो के रखा हुआ है | </p>
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<p>जय ओ बी ओ |</p> आंचलिक भाषा में होने के कारण…tag:openbooksonline.com,2015-07-01:5170231:Comment:6715562015-07-01T07:57:45.649Zsavitamishrahttp://openbooksonline.com/profile/savitamisra
<p><font class="text_exposed_show">आंचलिक भाषा में</font> होने के कारण शायद इसे अस्वीकार कर दिया गया जबकि कमेन्ट में हमने हिंदी में भी लिख दिया था पर वह मान्य न हुआ बहुत अफ़सोस हैं हमे हम हिस्सा न बन सकें इस संकलन का ...सादर नमस्ते प्रभाकर भैया <br></br><br></br><br></br>~~अविश्वास ~~</p>
<p>शादी समारोह में चाचा-ताऊ की सभी भाई-बहन इक्कठे हुए | तभी रुक्मी चिल्लाती सी बोली "ये पगली बहिन तोहके बाबू बोलावत हयेन |"</p>
<p>"बिट्टी, ये नाम नहीं लिया करो |सब कहेंगे पागल थी क्या जो ये नाम हैं |"</p>
<p>"अरे बहिन, अब…</p>
<p><font class="text_exposed_show">आंचलिक भाषा में</font> होने के कारण शायद इसे अस्वीकार कर दिया गया जबकि कमेन्ट में हमने हिंदी में भी लिख दिया था पर वह मान्य न हुआ बहुत अफ़सोस हैं हमे हम हिस्सा न बन सकें इस संकलन का ...सादर नमस्ते प्रभाकर भैया <br/><br/><br/>~~अविश्वास ~~</p>
<p>शादी समारोह में चाचा-ताऊ की सभी भाई-बहन इक्कठे हुए | तभी रुक्मी चिल्लाती सी बोली "ये पगली बहिन तोहके बाबू बोलावत हयेन |"</p>
<p>"बिट्टी, ये नाम नहीं लिया करो |सब कहेंगे पागल थी क्या जो ये नाम हैं |"</p>
<p>"अरे बहिन, अब क्या करे ? जुबान पर यही नाम रटा हैं | बाबा क्यों रखे ऐसा नाम ?"</p>
<p>"क्या मालुम ? नाम न लें फिर, सीधे बहिन बोल , नाम नहीं याद तो |<font class="text_exposed_show"><br/> ''दस बहिन हो ,. कैसे पता किसे बुला रहें | नाम भी सबका एक जैसा ही 'पगली' 'सगली' | जिसका नाम लो वही नाराज |"<br/> ''क्या करें बिट्टी ?नाराजगी की बात हैं न ,ससुराल वाले सुन लेंगे तो 'पहचान' जो बनी हैं मिटटी हो जाएँगी | सावित्री बहिन बोला करो , मेरी प्यारी छुटकी |" विनती (चिरौरी) करती हई बोली<br/> ''तीस-पैंतीस साल हो गये ससुराल में , जीजा तो समझेंगे न |"<br/> ''क्या पता बिट्टी !!" कथन में अविश्वास आसमान छू रहा था |<br/><br/>आंचलिक भाषा में ..:) पहले इसी में लिखे थे पर किसी को समझ न आने पर खड़ी हिंदी में लिखना पड़ा ...<br/><br/></font></p>
<p>~~अविश्वास ~~</p>
<p>शादी समारोह में चाचा-ताऊ की सभी भाई-बहन इक्कठे हुए | तभी रुक्मी चिल्लाती सी बोली "ये पगली बहिन तोहके बाबू बोलावत हयेन |"</p>
<p>" ये बिट्टी, इ नाम न लि<font class="text_exposed_show">हा कर | सब कहिही की पागल बाटय का | "<br/> "अरे बहिन, अब का करी , तोर इही नाम बचपन से जुबनवा पर बा |बबा काहे रखेंन तोर इ नाम |"<br/> "का जानि बिट्टी, पर अब छोड़ी दा बोलब इ नाम सिधय बहिन बोलावा , ना नाम याद रहेय ता |" गुस्से में प्यार जताती चचेरी बहन बोली <br/> "दस बहिन हऊ , कैसे पता चले कौने बहिनी के बोलावत हई हम | नामव सब का पगली सगली | तोहरेन की नाही सब गुस्सा करथिन |"<br/> " का करी बिट्टी ससुराल वाले सुनही ता बनी बनायी हमार पहचान हेराय जाये | 'सावित्री बहिन' बोला करा मोर बिट्टी|" चिरौरी करती हई बोली <br/> "तीस पैंतीस साल से रहत हए संगे, जीजा ता ना समझिही न पागल |" <br/> "का पता बिट्टी !!" कथन में अविश्वास आसमान छू रहा था| सविता मिश्रा</font></p>
<p></p> योगराज सर प्रणाम... मेरी हालत…tag:openbooksonline.com,2015-06-01:5170231:Comment:6615662015-06-01T22:46:21.480ZEr Nohar Singh Dhruv 'Narendra'http://openbooksonline.com/profile/NoharSinghDhruvNarendra
योगराज सर प्रणाम... मेरी हालत उस विद्यार्थी की तरह थी जो दूसरे शहर परीक्षा दिलाने गया हो पहली बार.... कहाँ परीक्षा केंद्र है? कहा हाल है ? वग़ैरह वग़ैरह.... इस मंच में ये मेरी दूसरी प्रस्तुति थी... कथा पोस्ट करने के बाद मुझे समझ ही नही आया की अब कहा टिपण्णी करूँ ? दूसरे तीसरे दिन देखा तो मुझे मेरी -कथा ही नज़मेंरमें नही आया... मन उदास हो गया की शायद मेरी रचना स्तरहींन रही होगी इस लिए हटा दिया गया होगा... पर आज अपनी कथा को सूची में शामिल देख अत्यंत हर्ष हो रहा है... बहुत बहुत धन्यवाद सर... मैं अपनी…
योगराज सर प्रणाम... मेरी हालत उस विद्यार्थी की तरह थी जो दूसरे शहर परीक्षा दिलाने गया हो पहली बार.... कहाँ परीक्षा केंद्र है? कहा हाल है ? वग़ैरह वग़ैरह.... इस मंच में ये मेरी दूसरी प्रस्तुति थी... कथा पोस्ट करने के बाद मुझे समझ ही नही आया की अब कहा टिपण्णी करूँ ? दूसरे तीसरे दिन देखा तो मुझे मेरी -कथा ही नज़मेंरमें नही आया... मन उदास हो गया की शायद मेरी रचना स्तरहींन रही होगी इस लिए हटा दिया गया होगा... पर आज अपनी कथा को सूची में शामिल देख अत्यंत हर्ष हो रहा है... बहुत बहुत धन्यवाद सर... मैं अपनी कथा पर सबके प्रतिक्रिया देखना चाहता हूँ पर अभी तक देख नही पाया... कृपया बताएं की वहां तक मैं कैसे पहुँचूँ ? लम्बे अंतराल के बाद विदेश से…tag:openbooksonline.com,2015-06-01:5170231:Comment:6616302015-06-01T16:58:34.969ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>लम्बे अंतराल के बाद विदेश से देश लौटना, अपनों में अपनी पहचान खोजना, सारी व्यवस्थाएं फिर से जुटाना , बीमार पड़ना , स्वस्थ लाभ के लिए संघर्ष करना, इंटरनेट से फिर से जुड़ने के लम्बे प्रयास करना। हफ्ता दो हफ्ता बीत जाना, स्वदेश आना। नीले आकाश का खो जाना, धुंधले आकाश में सब कुछ धुंधला धुंधला नज़र आना, अपनी पहचान ढूंढना, अपनी पहचान बताना , चिरपरिचित माहौल में समाने की कोशिश करना, एक एक काम के लिए दस दस बार प्रयास करना. , मौसम की मार, पर्यावरण की त्रासदी झेलना. घर की सफाई में दिनों का लग जाना, कार की…</p>
<p>लम्बे अंतराल के बाद विदेश से देश लौटना, अपनों में अपनी पहचान खोजना, सारी व्यवस्थाएं फिर से जुटाना , बीमार पड़ना , स्वस्थ लाभ के लिए संघर्ष करना, इंटरनेट से फिर से जुड़ने के लम्बे प्रयास करना। हफ्ता दो हफ्ता बीत जाना, स्वदेश आना। नीले आकाश का खो जाना, धुंधले आकाश में सब कुछ धुंधला धुंधला नज़र आना, अपनी पहचान ढूंढना, अपनी पहचान बताना , चिरपरिचित माहौल में समाने की कोशिश करना, एक एक काम के लिए दस दस बार प्रयास करना. , मौसम की मार, पर्यावरण की त्रासदी झेलना. घर की सफाई में दिनों का लग जाना, कार की बैट्री का बैठ जाना, अच्छा है ,अच्छा लगता है घर आना. <br/>उस पहचान को भी क्या कहना जिसे खुद ही पड़े बताना. आज ही कुछ कहानियां पढ़ ली हैं , पता नहीं हम अपनी पहचान, बनाते हैं, ढूंढते हैं, या दूसरों को बताते हैं. देखो हम भी हैं , हम हैं. <br/>हीरा भी क्या चीज़ है. <br/>पारखी न हो तो क्या चीज़ है.<br/>रेत और कोयले में लोग क्या से क्या हो गए , हीरे विदेशी हो गये. किस पहचान की बात करें. पहचान है , हम पहचानना नहीं चाहते, या हम पहचान देना नहीं चाहते. हमें पहचानो, हमारो को पहचानों , बस यही काफी है, <br/>लघु - कथा का शीर्षक बहुत प्रभावशाली था, कम से कम हमारे लिए, कुछ लिखना भी चाहा था, पर समय ने साथ नहीं दिया. .... फिर कभी.</p>
<p>आदरणीय योगराज प्रभाकर जी को इस सफल , प्रभावी आयोजन के लिए बहुत बहुत बधाई. <br/>सभी प्रतिभागियों को भी बहुत बहुत बधाई.</p> आ० योगराज सर! आपके अथक परिश्र…tag:openbooksonline.com,2015-06-01:5170231:Comment:6616262015-06-01T16:48:50.724ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० योगराज सर! आपके अथक परिश्रम को नमन!इतनी जल्दी गोष्ठी का संकलन तैयार हो जाना अपने आप में कीर्तिमान है!हार्दिक बधाई व् अभिनन्दन गुरुवर!</p>
<p>आ० योगराज सर! आपके अथक परिश्रम को नमन!इतनी जल्दी गोष्ठी का संकलन तैयार हो जाना अपने आप में कीर्तिमान है!हार्दिक बधाई व् अभिनन्दन गुरुवर!</p> वाह संकलन देखकर मन खुश हो गया…tag:openbooksonline.com,2015-06-01:5170231:Comment:6613932015-06-01T16:24:30.581Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>वाह संकलन देखकर मन खुश हो गया आ० योगराज जी, इस बार का आयोजन भी बहुत सफल रहा नए नए रचनाकार जुड़ रहे हैं ये देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है ओबिओ की सम्रद्धि में इजाफ़ा हो रहा है दिनोदिन इससे अच्छी और क्या बात होगी |आपको इस त्वरित संकलन के लिए दिल से बधाई तथा आयोजन में भाग लेने वाले सभी रचनाकारों को बधाई |</p>
<p>वाह संकलन देखकर मन खुश हो गया आ० योगराज जी, इस बार का आयोजन भी बहुत सफल रहा नए नए रचनाकार जुड़ रहे हैं ये देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है ओबिओ की सम्रद्धि में इजाफ़ा हो रहा है दिनोदिन इससे अच्छी और क्या बात होगी |आपको इस त्वरित संकलन के लिए दिल से बधाई तथा आयोजन में भाग लेने वाले सभी रचनाकारों को बधाई |</p> आदरणीय योगराज सर, लघुकथा में…tag:openbooksonline.com,2015-06-01:5170231:Comment:6616192015-06-01T15:53:04.241Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय योगराज सर, लघुकथा में मार्गदर्शन अनुसार संशोधन किया है. संशोधित लघुकथा को मूल लघुकथा के स्थान पर निम्नानुसार प्रतिस्थापित करने की कृपा करें-</p>
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<p>प्लेटफॉर्म पर एक चबूतरे के पास बैठने वाला भिखारी.... बाबा, यही उसकी असली पहचान थी। </p>
<p>सुबह-सुबह झाड़ू लगाती लक्ष्मी को भरी-पूरी नज़रों से ताड़ते हुए बोला-“ए लछमी, तू इस काम को थोड़े ही बनी है।”</p>
<p>“ई तो किस्मत है बाबा।” कहकर लक्ष्मी चुप रह गई। वैसे लक्ष्मी को ऐसी नज़रों की खूब…</p>
<p>आदरणीय योगराज सर, लघुकथा में मार्गदर्शन अनुसार संशोधन किया है. संशोधित लघुकथा को मूल लघुकथा के स्थान पर निम्नानुसार प्रतिस्थापित करने की कृपा करें-</p>
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<p>प्लेटफॉर्म पर एक चबूतरे के पास बैठने वाला भिखारी.... बाबा, यही उसकी असली पहचान थी। </p>
<p>सुबह-सुबह झाड़ू लगाती लक्ष्मी को भरी-पूरी नज़रों से ताड़ते हुए बोला-“ए लछमी, तू इस काम को थोड़े ही बनी है।”</p>
<p>“ई तो किस्मत है बाबा।” कहकर लक्ष्मी चुप रह गई। वैसे लक्ष्मी को ऐसी नज़रों की खूब पहचान थी। मगर रोज की तरह उसकी इस आदत को टालते हुए, चुपचाप अपना काम करती रही।</p>
<p>भिखारी अपने मैले से कम्बल में, कड़ाके की ठण्ड को मात देता हुआ, अपना पाव-भाजी का पैकेट संभाले बैठा रहा, जो देर रात की ट्रेन के किसी रहमदिल यात्री से उसने पाया था। </p>
<p>लक्ष्मी झाड़-पोछ कर प्लेटफॉर्म चमका रही थी और भिखारी अपनी आँखे। बाबानुमा मुंह से टपक रही लार, कम-से-कम, उस पाव-भाजी के कारण नहीं है; ये लक्ष्मी बखूबी पहचान चुकी थी। </p>
<p>अचानक भिखारी ने कम्बल कांधे से गिराया और टॉयलेट चला गया। </p>
<p>लक्ष्मी सफाई करते-करते चबूतरे तक पहुँच गई और सफाई के पहले उसने पाँव-भाजी का पैकेट उठाकर चबूतरे पर रखा ही था कि भिखारी की जोरदार चीख उसके कानों में पड़ी- "हे भगवान! इसने मेरा धरम भ्रस्ट कर दिया।" </p>
<p>अचानक एक और पहचान उभर आई थी- भिखारी की भी और लक्ष्मी की भी।</p>