बलात्कार पर बलात्कार, कहाँ है सरकार - Open Books Online2024-03-29T07:43:53Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:797476?groupUrl=sarokaar&feed=yes&xn_auth=noआज सरकार ही नहीं सामाजिक संगठ…tag:openbooksonline.com,2016-09-04:5170231:Comment:7977962016-09-04T10:48:26.410Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>आज सरकार ही नहीं सामाजिक संगठनों, संस्थाओं तक में ऐसी घटनाओं के प्रति बेतुखी देखी जा सकती है | जो सामाजिक संगठन मानव जाति के हित में ही बनाएं जाते है उनमे भी ऐसी घटनाओं पर आक्रोश की कमी खलती है | आलेख के लिए बधाई आपको आदरनीया डॉ. ह्रदयेश चौधरी जी </p>
<p>आज सरकार ही नहीं सामाजिक संगठनों, संस्थाओं तक में ऐसी घटनाओं के प्रति बेतुखी देखी जा सकती है | जो सामाजिक संगठन मानव जाति के हित में ही बनाएं जाते है उनमे भी ऐसी घटनाओं पर आक्रोश की कमी खलती है | आलेख के लिए बधाई आपको आदरनीया डॉ. ह्रदयेश चौधरी जी </p> आपका क्रोध जायज़ है आदरणीया हि…tag:openbooksonline.com,2016-09-03:5170231:Comment:7975062016-09-03T19:30:48.181ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपका क्रोध जायज़ है आदरणीया हिरदेश जी. आपका क्रोध शाब्दिक हुआ यह और अच्छी बात है. <br></br>ऐसी घटनाओं पर देश में कोई उबाल नहीं आया, अबतक सार्थक चर्चा न हुई यह सबसे बड़ी तक़लीफ़ का कारण है. हालत ये है कि लोगों की आँखों की शर्म मर गयी है. मैं अपना एक शेर उद्धृत कर रहा हूँ, उम्मीद है बात कुछ अधिक साफ़ हो सके --</p>
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<p>मोमबत्ती लिए लोगों के जुलूसों में भी<br></br>दानवी चाह कई आँखों में घर करती है</p>
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<p>एक अपेक्षा है, आप किसी मुद्दे को उठयें तो उस विन्दु के अलावा किसी और तथ्य को अन्यथा न…</p>
<p>आपका क्रोध जायज़ है आदरणीया हिरदेश जी. आपका क्रोध शाब्दिक हुआ यह और अच्छी बात है. <br/>ऐसी घटनाओं पर देश में कोई उबाल नहीं आया, अबतक सार्थक चर्चा न हुई यह सबसे बड़ी तक़लीफ़ का कारण है. हालत ये है कि लोगों की आँखों की शर्म मर गयी है. मैं अपना एक शेर उद्धृत कर रहा हूँ, उम्मीद है बात कुछ अधिक साफ़ हो सके --</p>
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<p>मोमबत्ती लिए लोगों के जुलूसों में भी<br/>दानवी चाह कई आँखों में घर करती है</p>
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<p>एक अपेक्षा है, आप किसी मुद्दे को उठयें तो उस विन्दु के अलावा किसी और तथ्य को अन्यथा न स्थान या विस्तार न दें. वर्ना मूल मुद्दे की सान्द्रता में कमी आने काख़तरा हुआ करता है. आपने लिखा है --</p>
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<p>//<span>अफ़सोस तो तब हुआ जब न्याय में देरी की मुख्य वजह के दर्द को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर को भी बताते समय रोना आ गया जब उन्होंने बताया कि न्याय में देरी की ख़ास वजह जजों की कमी का होना है. वही सरकार के इस तर्क पर हैरानी है कि धन के अभाव में न्यायालय में पर्याप्त जजों की नियुक्त नहीं हो पा रही है. //</span></p>
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<p><span>उपर्युक्त संदर्भ राजनीतिक अधिक है जिसमें सीजेआइ स्वयं इन्वाल्व हैं. ऐसे विन्दु आपकी चैतन्य सोच को अनावश्यक उलझाव देते हुए-से है. इस विन्दु पर अलग से चर्चा कराई जा सकती है. <br/><br/>आपकी संवेदना और तदनुरूप चर्चा-विन्दु के लिए हार्दिक धन्यवाद..</span></p>
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