"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-89 - Open Books Online2024-03-28T18:52:33Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:917745?feed=yes&xn_auth=noओबीओ लाइव महाउत्सव अंक-89 को…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9190142018-03-10T18:26:14.530ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>ओबीओ लाइव महाउत्सव अंक-89 को सफ़ल बनाने के लिए सभी रचनाकारों और पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद ।</p>
<p>ओबीओ लाइव महाउत्सव अंक-89 को सफ़ल बनाने के लिए सभी रचनाकारों और पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद ।</p> वाह। इस महाउत्सव के समापन पर…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9189212018-03-10T18:25:56.485ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>वाह। इस महाउत्सव के समापन पर बढ़िया दिलचस्प ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर जी।</p>
<p>वाह। इस महाउत्सव के समापन पर बढ़िया दिलचस्प ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर जी।</p> बहुत-बहुत आभार आदरणीय मनन कुम…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9188262018-03-10T18:21:23.899ZMohammed Arifhttp://openbooksonline.com/profile/MohammedArif
<p>बहुत-बहुत आभार आदरणीय मनन कुमार जी ।</p>
<p>बहुत-बहुत आभार आदरणीय मनन कुमार जी ।</p> नवीन निश्चल की सस्पेंस फ़िल्म…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9190122018-03-10T17:48:22.838ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>नवीन निश्चल की सस्पेंस फ़िल्म है "वो मैं नहीं"</p>
<p>नवीन निश्चल की सस्पेंस फ़िल्म है "वो मैं नहीं"</p> अरे भाई,
ऐसी बेमतलब रचना की त…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9188252018-03-10T17:36:24.443ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>अरे भाई,</p>
<p>ऐसी बेमतलब रचना की तारीफ़ न करें।</p>
<p>मैं, मैं हूँ वो नहीं।</p>
<p>सादर</p>
<p>अरे भाई,</p>
<p>ऐसी बेमतलब रचना की तारीफ़ न करें।</p>
<p>मैं, मैं हूँ वो नहीं।</p>
<p>सादर</p> बढिया हास्य ग़ज़ल कही आपने नीले…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9190112018-03-10T17:31:07.321Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>बढिया हास्य ग़ज़ल कही आपने नीलेश जी, बधाई</p>
<p>बढिया हास्य ग़ज़ल कही आपने नीलेश जी, बधाई</p> आ. सलीम साहब,आपकी टिप्पणी का…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9188232018-03-10T17:09:50.745ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. सलीम साहब,<br></br>आपकी टिप्पणी का इशारा मेरी ओर है इसलिए मुझे आना पड़ा वरना मैं अपनी बात पूरी कर चुका था..<br></br><strong>//कहने को तो लोग दस ऐब बता देते हैं इसमे क्या, पर उसे सही निभा के भी बताएं//</strong> यानी आप कहना चाहते हैं कि वो पाठक जो ग़ज़ल नहीं कहते वो सर वाह वाह कर के निकल जायं और कोई सवाल न करें क्यूँ कि वो बेचारे ग़ज़ल को निभा नहीं सकते??<br></br>साहित्यिक चर्चा को और तन्कीद को हमला करार देना उस अधिनायकवादी वृत्ति का परिचायक है जो सिर्फ जयजयकार सुनना पसंद करती है .. और जब ऐसा होता है तो…</p>
<p>आ. सलीम साहब,<br/>आपकी टिप्पणी का इशारा मेरी ओर है इसलिए मुझे आना पड़ा वरना मैं अपनी बात पूरी कर चुका था..<br/><strong>//कहने को तो लोग दस ऐब बता देते हैं इसमे क्या, पर उसे सही निभा के भी बताएं//</strong> यानी आप कहना चाहते हैं कि वो पाठक जो ग़ज़ल नहीं कहते वो सर वाह वाह कर के निकल जायं और कोई सवाल न करें क्यूँ कि वो बेचारे ग़ज़ल को निभा नहीं सकते??<br/>साहित्यिक चर्चा को और तन्कीद को हमला करार देना उस अधिनायकवादी वृत्ति का परिचायक है जो सिर्फ जयजयकार सुनना पसंद करती है .. और जब ऐसा होता है तो सीखने की , समझने की क्षमता और विवेक नष्ट हो जाता है और फिर यही अनावश्यक लाड-प्यार कथित <strong>औलादों</strong> को बिगाड़ भी देता है.<br/><span><strong>और वो कहें जिनकी ग़ज़लें .......</strong> इस वाक्य को पूरा करते तो बेहतर होता... लेकिन शायद आपमें बात खुलकर कहने का हौसला नहीं है...</span> खैर...<br/>कोई हज़ार ग़ज़लें कह चुका हो या लाख. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.. इस विधा में संख्या नहीं क्वालिटी मायने रखती है... काश आप यह साधारण बात समझते तो ऐसा न कहते..<br/>अस्तु;<br/><br/></p> बहुत खूबtag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9190102018-03-10T17:05:03.060Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>बहुत खूब</p>
<p>बहुत खूब</p> आदरणीया प्रतिभा जी उम्दा दोहे…tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9188222018-03-10T16:56:51.006Zनादिर ख़ानhttp://openbooksonline.com/profile/Nadir
<p>आदरणीया प्रतिभा जी उम्दा दोहे कहे आपने बहुत मुबारकबाद ...<br/>पाँचवे दोहे में और बेहतर की गुंजाइस दिख रही है बाकि गुनिजन अपनी राय दे तो मुझे भी कुछ सीखने को मिले....</p>
<p>आदरणीया प्रतिभा जी उम्दा दोहे कहे आपने बहुत मुबारकबाद ...<br/>पाँचवे दोहे में और बेहतर की गुंजाइस दिख रही है बाकि गुनिजन अपनी राय दे तो मुझे भी कुछ सीखने को मिले....</p> हा हा हा...tag:openbooksonline.com,2018-03-10:5170231:Comment:9188212018-03-10T16:48:54.586ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>हा हा हा...</p>
<p>हा हा हा...</p>