ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 52 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-29T14:37:56Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/52-1?feed=yes&xn_auth=noबड़ी सुन्दर
बड़ी अच्छी
हुई गज़ले…tag:openbooksonline.com,2015-04-25:5170231:Comment:6455792015-04-25T22:42:01.435Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>बड़ी सुन्दर</p>
<p>बड़ी अच्छी</p>
<p>हुई गज़लें</p>
<p>दिवाली में ... </p>
<p>बड़ी सुन्दर</p>
<p>बड़ी अच्छी</p>
<p>हुई गज़लें</p>
<p>दिवाली में ... </p> मार्ग दर्शन के लिए सादर धन्यव…tag:openbooksonline.com,2014-11-10:5170231:Comment:5865892014-11-10T06:01:38.182Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>मार्ग दर्शन के लिए सादर धन्यवाद इसमें कुछ बदलाव करने की सोचूँगी.---दमकते दीप औ लड़ियाँ ----या-- दमकती सेंकडों लड़ियाँ दोनों में से कौन सा अच्छा रहेगा? </p>
<p>मार्ग दर्शन के लिए सादर धन्यवाद इसमें कुछ बदलाव करने की सोचूँगी.---दमकते दीप औ लड़ियाँ ----या-- दमकती सेंकडों लड़ियाँ दोनों में से कौन सा अच्छा रहेगा? </p> आ. राणा प्रताप जी सादर ,
…tag:openbooksonline.com,2014-11-08:5170231:Comment:5862452014-11-08T05:10:43.001ZSatyanarayan Singhhttp://openbooksonline.com/profile/satyanarayanShivramSingh
<p>आ. राणा प्रताप जी सादर ,</p>
<p></p>
<p> मार्गदर्शन हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय, ग़ज़लगोई के मूलभूत नियमों को समझकर उसे आत्मसात करने का प्रयास मैं कर रहा हूँ. अपनी समझ के अनुसार मैंने मिसरे में निम्नवत संशोधन करने का प्रयास किया है</p>
<p><span style="font-size: 13px;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 13px;"> बढ़ी आमद न लोगों की सुनो लेकिन बढ़ी मांगें </span></p>
<p><span style="font-size: 13px;"><span> सभी की जेब ढीली ये कराती हैं दिवाली…</span></span></p>
<p>आ. राणा प्रताप जी सादर ,</p>
<p></p>
<p> मार्गदर्शन हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय, ग़ज़लगोई के मूलभूत नियमों को समझकर उसे आत्मसात करने का प्रयास मैं कर रहा हूँ. अपनी समझ के अनुसार मैंने मिसरे में निम्नवत संशोधन करने का प्रयास किया है</p>
<p><span style="font-size: 13px;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 13px;"> बढ़ी आमद न लोगों की सुनो लेकिन बढ़ी मांगें </span></p>
<p><span style="font-size: 13px;"><span> सभी की जेब ढीली ये कराती हैं दिवाली में</span></span></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 13px;"><span> सादर </span></span></p> आदरणीया राजेश कुमारी जी
//क…tag:openbooksonline.com,2014-11-06:5170231:Comment:5861132014-11-06T03:10:01.986ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीया राजेश कुमारी जी </p>
<p></p>
<p>//<span>क्या दीपक पुर्लिंग एवं लड़ियाँ को एक साथ लेकर लुभाती जो लिखा है उसमे गलती हुई है या कुछ और//</span></p>
<p></p>
<p>ये कोई गलती नहीं है, मुझे ऐसा लगता है कि लड़ियों के साथ जले शब्द का प्रयोग सही नहीं है, वस्तुतः जले शब्द से जलने अर्थात अग्नि उत्पन्न होने का बोध होता है जो लड़ियों के साथ समुचित नहीं होगा| वैसे हम बल्ब जला दो, टूयूब जला दो आदि बोलचाल में प्रयोग करते हैं, पर मुझे यह व्याकरण संगत नहीं लगता है| मंच पर उपस्थित अन्य विद्वतजनों से भी…</p>
<p>आदरणीया राजेश कुमारी जी </p>
<p></p>
<p>//<span>क्या दीपक पुर्लिंग एवं लड़ियाँ को एक साथ लेकर लुभाती जो लिखा है उसमे गलती हुई है या कुछ और//</span></p>
<p></p>
<p>ये कोई गलती नहीं है, मुझे ऐसा लगता है कि लड़ियों के साथ जले शब्द का प्रयोग सही नहीं है, वस्तुतः जले शब्द से जलने अर्थात अग्नि उत्पन्न होने का बोध होता है जो लड़ियों के साथ समुचित नहीं होगा| वैसे हम बल्ब जला दो, टूयूब जला दो आदि बोलचाल में प्रयोग करते हैं, पर मुझे यह व्याकरण संगत नहीं लगता है| मंच पर उपस्थित अन्य विद्वतजनों से भी मार्गदर्शन की आवश्यकता है|</p>
<p></p>
<p>सादर </p> संशोधन कर दिया है|tag:openbooksonline.com,2014-11-06:5170231:Comment:5860222014-11-06T03:05:02.351ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>संशोधन कर दिया है|</p>
<p>संशोधन कर दिया है|</p> आदरणीय सत्यनारायण जी
"बढ़ी न…tag:openbooksonline.com,2014-11-06:5170231:Comment:5861092014-11-06T03:03:55.590ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय सत्यनारायण जी </p>
<p></p>
<p><span>"बढ़ी ना आय जनता की सुनो लेकिन बढ़ी मांगे" ..इस मिसरे में आया 'ना' जो कि २ के वजन में है उसे 'न' अर्थात 1 के वजन में कर लें, तत्पश्चात संशोधित ग़ज़ल मैं लगा दूंगा|</span></p>
<p></p>
<p>धन्यवाद|</p>
<p>आदरणीय सत्यनारायण जी </p>
<p></p>
<p><span>"बढ़ी ना आय जनता की सुनो लेकिन बढ़ी मांगे" ..इस मिसरे में आया 'ना' जो कि २ के वजन में है उसे 'न' अर्थात 1 के वजन में कर लें, तत्पश्चात संशोधित ग़ज़ल मैं लगा दूंगा|</span></p>
<p></p>
<p>धन्यवाद|</p> आ० राणाप्रताप जी ,संकलन तथा त…tag:openbooksonline.com,2014-11-05:5170231:Comment:5858562014-11-05T14:13:49.911Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>आ० राणाप्रताप जी ,संकलन तथा त्रुटियाँ बताने हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुक्रिया |मेरी ग़ज़ल का ये मिसरा नीला देखकर सोच रही हूँ कहाँ गलती हुई -----<span>जले दीपक जली लड़ियाँ लुभाती हैं दिवाली में---क्या दीपक पुर्लिंग एवं लड़ियाँ को एक साथ लेकर लुभाती जो लिखा है उसमे गलती हुई है या कुछ और प्लीज बताइये ताकि इसे दुरुस्त कर सकूँ |</span></p>
<p>आ० राणाप्रताप जी ,संकलन तथा त्रुटियाँ बताने हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुक्रिया |मेरी ग़ज़ल का ये मिसरा नीला देखकर सोच रही हूँ कहाँ गलती हुई -----<span>जले दीपक जली लड़ियाँ लुभाती हैं दिवाली में---क्या दीपक पुर्लिंग एवं लड़ियाँ को एक साथ लेकर लुभाती जो लिखा है उसमे गलती हुई है या कुछ और प्लीज बताइये ताकि इसे दुरुस्त कर सकूँ |</span></p> आदरणीय राणा साहब, इस त्वरित स…tag:openbooksonline.com,2014-11-05:5170231:Comment:5858472014-11-05T11:11:12.260Zभुवन निस्तेजhttp://openbooksonline.com/profile/BHUWANNISTEJ
<p>आदरणीय राणा साहब, इस त्वरित संकलन के लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है. इस बार मई रदीफ़ के मामले में कई एनी मित्रों की तरह ही धोखा खा गया .जिस्सेगाज़ल काफी रंग बिरंगी होगई है. मेरा आपसे सदरानुरोध है के उसे कुछ यूँ कर दें.....</p>
<p><b> </b></p>
<p>ये खुशियाँ हो गयी महँगी सताती है दिवाली में</p>
<p>बजट से पाई पाई छीन जाती है दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>किसी को गाँव की यादें जो आती हैं दिवाली में</p>
<p>घुटी रूहें शहर में कसमसाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>तेरे बच्चों की उम्मीदों का…</p>
<p>आदरणीय राणा साहब, इस त्वरित संकलन के लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है. इस बार मई रदीफ़ के मामले में कई एनी मित्रों की तरह ही धोखा खा गया .जिस्सेगाज़ल काफी रंग बिरंगी होगई है. मेरा आपसे सदरानुरोध है के उसे कुछ यूँ कर दें.....</p>
<p><b> </b></p>
<p>ये खुशियाँ हो गयी महँगी सताती है दिवाली में</p>
<p>बजट से पाई पाई छीन जाती है दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>किसी को गाँव की यादें जो आती हैं दिवाली में</p>
<p>घुटी रूहें शहर में कसमसाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>तेरे बच्चों की उम्मीदों का सूरज कल भी निकलेगा</p>
<p>कई लौएँ ये कहकर फड़फड़ाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>जो मेरा बोझ ढहकर भी ख़ुशी से झूल जाती थी</p>
<p>वो बूढ़े पेड़ की शाखें बुलाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>कतारों में जले दीपक, पटाखे और फुलझड़ियाँ</p>
<p>किसी ‘रमुआ’ के बच्चे को लुभाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>गुबारो-गर्द सारा धुल शरद यौवन पे आया है</p>
<p>फिज़ाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>जहाँ देखो वहाँ पाया है बस बाज़ार सा मंजर</p>
<p>पसीने की ये बूंदे बिक न पाती हैं दिवाली में</p>
<p> </p>
<p>जो लाया एक कतरा रोशनी कुछ रोटियों को छोड़</p>
<p>उसे तारीकियाँ कितना सताती हैं दिवाली में </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p> बहुत २ आभार आदरणीय.... तकाबुल…tag:openbooksonline.com,2014-11-03:5170231:Comment:5857172014-11-03T15:27:42.383Zvandanahttp://openbooksonline.com/profile/vandana956
<p>बहुत २ आभार आदरणीय.... <span>तकाबुले रदीफ़ की तरफ मेरा ध्यान मेरे बहुत सोचने के बाद भी नहीं गया यह मेरी गलती है और <span>शमअ वाली बात अब ध्यान में रहेगी </span></span></p>
<p>बहुत २ आभार आदरणीय.... <span>तकाबुले रदीफ़ की तरफ मेरा ध्यान मेरे बहुत सोचने के बाद भी नहीं गया यह मेरी गलती है और <span>शमअ वाली बात अब ध्यान में रहेगी </span></span></p> आदरणीया वन्दना जी पहले मिसरे…tag:openbooksonline.com,2014-11-03:5170231:Comment:5853012014-11-03T09:38:45.606ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीया वन्दना जी पहले मिसरे में तकाबुले रदीफ़ का ऐब है और दूसरा मिसरा शमअ को गलत वजन में बाँधने से बेबहर हो गया है |</p>
<p>आदरणीया वन्दना जी पहले मिसरे में तकाबुले रदीफ़ का ऐब है और दूसरा मिसरा शमअ को गलत वजन में बाँधने से बेबहर हो गया है |</p>