"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-65 (विषय: "उम्मीद का दामन") - Open Books Online2024-03-28T09:07:42Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/65-3?commentId=5170231%3AComment%3A1016551&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noकथा तत्व से तात्पर्य नायिका क…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10165542020-08-31T16:43:33.688Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>कथा तत्व से तात्पर्य नायिका के जीवन की वो घटना/ वो हादसा / वो कहानी जिसने नायिका का नज़रिया इस तरह का बनाया।</p>
<p>कथा तत्व से तात्पर्य नायिका के जीवन की वो घटना/ वो हादसा / वो कहानी जिसने नायिका का नज़रिया इस तरह का बनाया।</p> जी सर,मैं ध्यान दूंगी।अंत में…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10165532020-08-31T16:30:03.509ZDivya Rakesh Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/DivyaRakeshSharma
<p>जी सर,मैं ध्यान दूंगी।अंत में कसावट लाने का प्रयास करूंगी।</p>
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<p>जी सर,मैं ध्यान दूंगी।अंत में कसावट लाने का प्रयास करूंगी।</p>
<p></p> कैंसर एक ऐसा रोग है जो लगातार…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10166112020-08-31T16:27:00.918ZDivya Rakesh Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/DivyaRakeshSharma
<p>कैंसर एक ऐसा रोग है जो लगातार फैलता जा रहा है।हमने खुद इसकी विभिषिका देखी है अपने परिवार में एक सदस्य को खोकर।लघुकथा को विस्तार देने से बचना चाहिए।कथानक के चुनाव के बाद इसके शिल्प और कथ्य पर विचार करना चाहिए।महक जी इस लघुकथा में जो जरूरी तथ्य हैं उन पर पुर्नविचार करें।क्योंकि यह एक बीमारी को केंद्र में रख कर लिखी गई है।लघुकथा का कथानक अच्छा है आपको शुभकामनाएं।</p>
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<p>कैंसर एक ऐसा रोग है जो लगातार फैलता जा रहा है।हमने खुद इसकी विभिषिका देखी है अपने परिवार में एक सदस्य को खोकर।लघुकथा को विस्तार देने से बचना चाहिए।कथानक के चुनाव के बाद इसके शिल्प और कथ्य पर विचार करना चाहिए।महक जी इस लघुकथा में जो जरूरी तथ्य हैं उन पर पुर्नविचार करें।क्योंकि यह एक बीमारी को केंद्र में रख कर लिखी गई है।लघुकथा का कथानक अच्छा है आपको शुभकामनाएं।</p>
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<p></p> सादर नमस्कार आदरणीय सर योगराज…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10166102020-08-31T16:22:48.224ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>सादर नमस्कार आदरणीय सर योगराज जी। आपके अनुमोदन से रचना अभ्यास सफल होने की पुष्टि हो जाती है। आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरी इस हौसला अफ़ज़ाई हेतु।</p>
<p>सादर नमस्कार आदरणीय सर योगराज जी। आपके अनुमोदन से रचना अभ्यास सफल होने की पुष्टि हो जाती है। आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरी इस हौसला अफ़ज़ाई हेतु।</p> आदरणीय विनय सर नमस्कार,
आपकी…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10165522020-08-31T16:20:18.084ZDivya Rakesh Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/DivyaRakeshSharma
<p>आदरणीय विनय सर नमस्कार,</p>
<p>आपकी यह बात सत्य है सर कि कुछ.पुरुष भी जीवन में अच्छे बुरे अनुभवों से गुजरते हैं।लेकिन यह भी सच है कि बुरे अनुभवों के कारण वह सम्पूर्ण स्त्री जाति से नफरत करने लगते हैं।यह कई स्त्रियों के प्रति अपराधों में भी साबित हुई है।मेरे विचारों में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूजा रह ही नहीं सकता।कथा पर विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार सर।</p>
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<p>आदरणीय विनय सर नमस्कार,</p>
<p>आपकी यह बात सत्य है सर कि कुछ.पुरुष भी जीवन में अच्छे बुरे अनुभवों से गुजरते हैं।लेकिन यह भी सच है कि बुरे अनुभवों के कारण वह सम्पूर्ण स्त्री जाति से नफरत करने लगते हैं।यह कई स्त्रियों के प्रति अपराधों में भी साबित हुई है।मेरे विचारों में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं एक के बिना दूजा रह ही नहीं सकता।कथा पर विस्तृत टिप्पणी के लिए आभार सर।</p>
<p></p> अच्छा किया ख़ुद फाड़-फाड़कर फेंक…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10166092020-08-31T16:16:17.992Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>अच्छा किया ख़ुद फाड़-फाड़कर फेंकती रहीं, यही काम कोई दूसरा करता तो बुरा लगता न? सुधार की गुंजाइश हर वक़्त रहती है. इसलिए रचना में जितनी बार सुधार करना पड़े, करें. इसके अंत पर थोड़ी-सी मेहनत और की जा सकती है. लेकिन यह भी सच है कि जो आपने कहना चाहा, वह बहुत ही अच्छे तरीक़े से संप्रेषित हो पाया है.</p>
<p>अच्छा किया ख़ुद फाड़-फाड़कर फेंकती रहीं, यही काम कोई दूसरा करता तो बुरा लगता न? सुधार की गुंजाइश हर वक़्त रहती है. इसलिए रचना में जितनी बार सुधार करना पड़े, करें. इसके अंत पर थोड़ी-सी मेहनत और की जा सकती है. लेकिन यह भी सच है कि जो आपने कहना चाहा, वह बहुत ही अच्छे तरीक़े से संप्रेषित हो पाया है.</p> आदरणीय उस्मानी सर नमस्कार, आप…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10166082020-08-31T16:08:07.048ZDivya Rakesh Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/DivyaRakeshSharma
<p>आदरणीय उस्मानी सर नमस्कार, आपकी विस्तृत टिप्पणी व सुझाव के लिए आभार।</p>
<p>आदरणीय उस्मानी सर नमस्कार, आपकी विस्तृत टिप्पणी व सुझाव के लिए आभार।</p> आदरणीय सर सादर नमस्कार, यकीन…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10165512020-08-31T16:07:03.100ZDivya Rakesh Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/DivyaRakeshSharma
<p>आदरणीय सर सादर नमस्कार, यकीन मानिए सर कल इस लघुकथा को मैने पाँच बार लिखकर फाड़ा।मैं पहली बार किसी रचना पर संतुष्ट नहीं हो पा रही थी।रात में जब लघुकथा को फाइनल किया तो भी मन में डर था कि क्या मैं इस कथा में निहित मर्म को समझा पाई।आपकी टिप्पणी ने सारे डर सारी दुविधा को मिटा दिया।आभार सर।</p>
<p>आदरणीय सर सादर नमस्कार, यकीन मानिए सर कल इस लघुकथा को मैने पाँच बार लिखकर फाड़ा।मैं पहली बार किसी रचना पर संतुष्ट नहीं हो पा रही थी।रात में जब लघुकथा को फाइनल किया तो भी मन में डर था कि क्या मैं इस कथा में निहित मर्म को समझा पाई।आपकी टिप्पणी ने सारे डर सारी दुविधा को मिटा दिया।आभार सर।</p> इस लघुकथा की जितनी तारीफ़ की ज…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10166072020-08-31T15:58:33.696Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>इस लघुकथा की जितनी तारीफ़ की जाए, कम होगी. इस लघुकथा के माध्यम से आपने एक स्टीरियोटाइप मानसिकता पर ज़बरदस्त प्रहार किया है. इस लघुकथा में एक तरफ़ तो एकपक्षीय सोच वाली अपेक्षा है तो दूसरी तरफ़ संतुलित सोच वाली श्रुति. एकपक्षीय सोच के लिए अपेक्षा का भी कोई क़ुसूर नहीं. क्योंकि ज़ेहन में पुरुष की एक नकारात्मक छवि बना दी गई है. उसका क़ुसूर केवल ये है कि उसकी यह सोच तर्क की सान पर कभी चढ़ी ही नहीं. यह काम करने का प्रयास श्रुति ने किया, और वह सफल भी रही. कथानक में नयापन है, उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है…</p>
<p>इस लघुकथा की जितनी तारीफ़ की जाए, कम होगी. इस लघुकथा के माध्यम से आपने एक स्टीरियोटाइप मानसिकता पर ज़बरदस्त प्रहार किया है. इस लघुकथा में एक तरफ़ तो एकपक्षीय सोच वाली अपेक्षा है तो दूसरी तरफ़ संतुलित सोच वाली श्रुति. एकपक्षीय सोच के लिए अपेक्षा का भी कोई क़ुसूर नहीं. क्योंकि ज़ेहन में पुरुष की एक नकारात्मक छवि बना दी गई है. उसका क़ुसूर केवल ये है कि उसकी यह सोच तर्क की सान पर कभी चढ़ी ही नहीं. यह काम करने का प्रयास श्रुति ने किया, और वह सफल भी रही. कथानक में नयापन है, उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कथानक की ट्रीटमेंट बहुत ही कुशलता से की गई है. रचना की बुनावट भी बहुत कसी हुई है, जिस कारण लघुकथा प्रभावशाली बन सकी. इस उत्कृष्ट लघुकथा हेतु मेरी ढेरों-ढेर बधाई दिव्या शर्मा जी.</p> प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने क…tag:openbooksonline.com,2020-08-31:5170231:Comment:10165502020-08-31T15:45:09.375Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का बहुत ही अच्छा प्रयास किया है मधु पासी 'महक' जी. इस विधा में आपकी प्रगति काफी संतोषजनक है. अभ्यासरत व प्रयासरत रहें, दिल्ली कोई ज्यादा दूर नहीं. सुधि साथियों की सलाह का गंभीरता से संज्ञान ले और इस सद्प्रयास के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.</p>
<p>प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का बहुत ही अच्छा प्रयास किया है मधु पासी 'महक' जी. इस विधा में आपकी प्रगति काफी संतोषजनक है. अभ्यासरत व प्रयासरत रहें, दिल्ली कोई ज्यादा दूर नहीं. सुधि साथियों की सलाह का गंभीरता से संज्ञान ले और इस सद्प्रयास के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.</p>