For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 70 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 18 फ़रवरी 2017 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 70 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे उल्लाला छन्द और रोला छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

**********************************************

१. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
रोला छंद
पशु पक्षी इंसान, सभी में ममता न्यारी।
सुखी रहे संतान, लुटाती खुशियाँ सारी॥
त्याग नींद सुख चैन, पालती दूध पिलाती।
प्रभु का यह वरदान, जगत में माँ कहलाती॥

दूध पिलाती मातु, मेमना है अति प्यारा।
छोटा बालक मस्त, मगन है देख नजारा॥
सब जीवों में प्यार, तभी तो टिका जगत है।
क्या बकरी इंसान, नेह सब में शास्वत है॥

उल्लाला छंद

ध्यान सदा सब का रखे, सिवा मातु के कौन है।

दुग्ध पिलाती मुग्ध माँ, नयन मूँदकर मौन है॥   .....  (संशोधित)


देख गौर से सोचता, माँ ही शिशु को पालती।
हर माँ में छबि देव की, दिन भर हमें दुलारती॥
*******************
२. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
गीत [ रोला छंद आधारित ]
निकला घुटनों चाल, देखने जग ये सारा I
श्यामल तन गोपाल ,गदबदा प्यारा प्यारा II

पहुँच गया है आज ,यहाँ पर नजर बचाकर I
डरता है ना गोद, उठा ले कोई आकर II
आजादी से सैर, कभी ना ये कर पाता I
कुछ पल के ही बाद, पकड़ ले जाती माता II

बच्चे का संसार ,जगत से होता न्यारा I
श्यामल तन गोपाल ,गदबदा प्यारा प्यारा II

बकरी का शिशु देख ,जागती उत्सुकता है I
है ये नीचे कौन , वहाँ पर क्या करता है II
माँ तन लगकर दूध ,रोज मै पीता जैसे I
क्या ये भी कुछ काम ,कर रहा बिल्कुल वैसे II

मेरे मुख आ जाय ,दूध की इक तो धारा I
श्यामल तन गोपाल, गदबदा प्यारा प्यारा II

जाना चाहे पास ,झिझक पग रोक खड़ी है I
बालक मन की थाह, पहेली एक बड़ी है II
जिज्ञासा तलवार , समझ लो है दोधारी I
ये विकास की शर्त ,कभी पड़ जाती भारी II

इक माँ दो हैं लाल ,अनोखा अजब नजारा I
श्यामल तन गोपाल ,गदबदा प्यारा प्यारा II
*********************
३. आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी

मन वाणी मस्तिष्क
जहाँ विकसन को पाये ...
जीवन का वह काल, सखा ! शैशव कहलाये !

जीवन का अध्याय, शुरू शैशव से होता
जिज्ञासा के बीज, मनस शिशु शैशव बोता
खान पान व्यवहार, भाव औ बातें सारी
मानव का परिवेश, सिखाये बारी बारी

रूचि अन्वेषक बाल,
जहाँ पर देखी जाये....
जीवन का वह काल, सखा! शैशव कहलाये!

बालक बन जिज्ञासु, देख मन सोचे ऐसे
करे मेमना दुग्ध, पान बकरी का कैसे?
बाल पेट बल लेट, गड़ाकर आँखें देखे
निज क्षमता अनुसार, सभी तथ्यों को लेखे

जिज्ञासा बस बाल,
जहाँ खोजी बन जाये...
जीवन का वह काल, सखा! शैशव कहलाये !

बकरी खैरी किन्तु, मेमना क्यूँ है भूरा
डूबा मन आकंठ, बाल विस्मय में पूरा
मन में लिए सवाल, बाल उलझन में जीता
सारा शैशव काल, जिसे सुलझाते बीता
रंग भेद का ज्ञान,
जहाँ बालक को आये....
जीवन का वह काल, सखा! शैशव कहलाये !
(संशोधित)


*************
४. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
(अ ) उल्लाला छन्द
(१ ) कच्चा एक मकान है,कौन यहाँ महमान है
बकरी कब अंजान है ,बच्चे पर ही ध्यान है
(२ ) लगी सामने आस है ,बच्चा कहाँ उदास है
बकरी को विश्वास है ,बच्चा उसके पास है
(३ ) मंज़र लगे अजीब है ,बकरी खड़ी क़रीब है
सब का जुदा नसीब है ,बच्चा दिखे ग़रीब है
(४ ) किस का भला क़ुसूर है ,माँ शायद मज़दूर है
बकरी खड़ी ज़रूर है ,बच्चा माँ से दूर है
(५ ) बच्चा कहाँ शरीर है ,किए हुए वो धीर है
बकरी का जो शीर है ,कब उसकी जागीर है
(६ ) देख दूध की धार है ,बच्चा भी तैयार है
किसे भला इनकार है ,बकरी करती प्यार है

(ब) रोला छन्द
(१ ) छोटा बच्चा एक ,पड़ा धरती के ऊपर
मगर रहा है देख ,आँख से सुंदर मंज़र
माता है जब पास ,भला बच्चे को क्या डर
पिला रही है दूध ,एक बकरी खुश हो कर
(२ ) बच्चे को तो देख ,पैर अपने फैलाए
बकरी पर चुप चाप ,नज़र है सिर्फ़ जमाए
बकरी है खामोश ,खड़ी बच्चा लिपटाए
धीरे धीरे दूध , पिलाती अपना जाए
(३ ) कैसा मिला नसीब ,नहीं है पास सहारा
कोई नहीं क़रीब , पड़ा तन्हा बेचारा
देखे मगर ग़रीब ,सामने ख़ास नज़ारा
बच्चा पीता शीर ,देख बकरी का प्यारा
(४ ) आए कौन क़रीब ,उसे जो गोद उठाए
बेचारे की भूक ,भला अब कौन मिटाए
बकरी की ही सिम्त ,आस की नज़र लगाए
कैसे बकरी दूध ,उसे अपना पिलवाए
*************************
५. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
गयी कमाने मात , मुझे है भूख सताये
देख मेमना आज , जला मन मेरा जाये
कोई करे उपाय , खबर माँ तक भिजवाये
देखूँ जब उस ओर, भूख भी बढ़ती जाये

वो ही है खुशहाल , साथ माँ रहती जिसके
बिन माँ के अरमान , सभी रह जाये पिस के
लगी भूख है नाम , पुकारूँ मै किस किस के
बिन माँ करे गुहार, आज बच्चा जिस तिस के

चूल्हा ठंडा देख , मुझे है चिंता भारी
मेरे छोटे हाथ , करूँ मै क्या तैयारी
खायेगी जब मात , तभी तो दूध बनेगा
तभी न पी कर दूध, लाल का पेट तनेगा

अरे ! मेमना दूध, सभी तू पी मत जाना
लगी मुझे भी भूख, यार का साथ निभाना
वरना तेरे साथ , नहीं खेलूँगा कल से
भूख लगे तो, भूख, बुझाऊँ चाहे जल से
***************************************
६. आदरणीया राजेश कुमारी जी
कैसा अद्दभुत जाल,बुना रिश्तों का दाता|
पशु पक्षी इंसान,सभी को पाले माता||

मात दुग्ध संजीवनी ,कुदरत का वरदान है|
माँ बच्चे का देखिये ,कैसा चित्र महान है||
घुटनों के बल झाँकता ,लल्ला भी हैरान है|
चप-चप करके मेमना,करता दूद्दू पान है||

पुलकित होवे देख ,नजारा दिव्य विधाता|
पशु पक्षी इंसान,सभी को पाले माता||

कच्चे घर में गर्व से , भूरी बकरी है खड़ी|
स्वप्निल सी आँखें किये ,ममता की लेकर छड़ी||
भूख मिटे संतान की, बेशकीमती ये घड़ी|
कौतुकता में बाल की ,नजरें उस पर ही गड़ी||

माँ बच्चे से ठोस,नहीं कोई भी नाता|
पशु पक्षी इंसान ,सभी को पाले माता||

गोबर से लीपी जगह,लक-दक स्वच्छ उजास में|
उलट पतीली भी धरी, है चूल्हे के पास में||
लल्ला भी अब दिख रहा, निज मैया की आस में|
लार टपकती जीभ से ,अब दूद्दू की प्यास में||

शिशु जननी के बीच,नहीं व्यवधान सुहाता|
पशु पक्षी इंसान,सभी को पाले माता||
**************************
७. आदरणीया सीमा मिश्रा जी
उल्लाला छंद
जिज्ञासा
मुझको सब कुछ देखना, मुझको सब कुछ जानना

जब भी व्याकुल मैं रहा, क्षुधा मिटाती मात है
वात्सल्य की यह विधा, हर माता को ज्ञात है
इस ममता की छाँव की, रहती हर क्षण कामना

उजला आँगन ऊँघता, नन्हा भूख मिटाता है
उकडूँ बैठा देखता, अब न बैठा जाता है
जल्दी कर अब आजा ना, हाथ जोड़कर याचना

तेरी अम्मा बहुत भली, गुस्सा कभी न होती है
जो मैं मिट्टी खाऊँ माँ, जल्दी आपा खोती है
खेलें हम दिल खोल के, गूँजे ये घर आँगना

देहरी को लाँघ चलें, बाहर सुन्दर संसार है
फूल खिले तितली उड़े, कैसा ये चमत्कार है
तारे सिर तक ओढ़ना, चिड़ियों के संग जागना

सूर्य सिंदूरी गेंद सा, क्यों डूबे है ताल में
चन्दा खीर कटोरी सा, दिखता नभ के थाल में
चारों ओर सवाल हैं, उत्तर चाहूँ माँगना

बचपन कौतूहल भरा, नयना करे सवाल क्यों
खो जाता रोमांच सब, बढ़ते-चढ़ते साल ज्यों
काश उम्र भर बनी रहे, हम सब में ये भावना
************************************
८. आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल जी
उल्लाला छंद
पिला रही माँ दुग्ध है, भूखा प्यासा वंशधर
मानव बालक झाँकता, तिरछी है उसकी नज़र|

परिस्थिति हो यह गाँव का, या हो कोई भी शहर
मातृ दूध होता अमृत, दुग्ध पान है रोगहर |

उत्सुक बालक चाहता, उसको भी मौक़ा मिले
बकरी थन के दूध से, दूर भूख का हो गिले |

कहते अज का दूध है, सबसे अच्छा और से
माँ के बाद अमृत पयस, पीओ बकरी गाय से |

स्याना हो या वत्स हो, सबको लगती भूख है
बेजान सभी छोड़कर, भूखे पीड़ित जीव है |

दूसरी प्रस्तुति
(रोला छंद )
शावक पीता पयस, पिलाती सुख से माता
बच्चा भूखा तृषित, ममता से भरी माता |
मानव बालक क्षुदित, तांक-झांक कर रहा है
पीने की है चाह, इसलिए तड़प रहा है |

कहना मेरा तू मान, तनिक दूध तो बचाना
हमको रहना साथ, याराना तुम निभाना |
पिता गया है खेत, बाज़ार में है माता
मुझे लगी है भूख, कौन मुझे अब खिलाता |

हम दोनों हैं दोस्त, दोस्ती हमें निभाना
गरीबी दुःख दर्द, मिलकर हमको भगाना |
तुम्हारी बुझी प्यास, मुझको भी बुझाने दो
मुख गला गए सूख, इन्हें गीला करने दो |

कितना छोड़ा दूध, यही वह देख रहा है
उत्सुकता से तंग, आग्रह औ’र लालसा है |
पौष्टिक इसका दूध, औरों से बहुत अच्छा
करते सबको लाभ, बड़े पीये या बच्चा |
********************************
९. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' 

रोला छंद (बाल-हृदय)
भेदभाव से दूर, बाल-मन जल सा निर्मल।
रहे सदा अलमस्त, द्वन्द्व से होकर निश्चल।।
बालक बालक मध्य, नेह शाश्वत है प्रतिपल।
देख बाल को बाल, हृदय का खिलता उत्पल।।

दो बालक अनजान, प्रीत से झट बँध जाते।
नर, पशु, पक्षी भेद, नहीं कुछ आड़े आते।।
है यह कथा प्रसिद्ध, भरत नृप बालक जब था।
सिंह शावकों संग, खेलता वन में तब था।।

नई चीज को देख, प्रबल उत्कंठा जागे।
जग के सारे भेद, जानने पीछे भागे।।
चंचल बाल अधीर, शांत नहिं हो जिज्ञासा।
हर वह करे प्रयत्न, ज्ञान का जब तक प्यासा।।

बहुत बड़ा आश्चर्य, जगत में जीवन आना।
मातृ-शक्ति की थाह, बड़ी मुश्किल है पाना।।
नवजीवन को देख, जीव सब हर्षित होते।
बालक नहिं अपवाद, चाव में वे भी खोते।। 

(संशोधित) 

****************************
१०. आदरणीय अरुण कुमार निगम जी
रोला छन्द
चुकुर-चुकुर यह कौन, दूध पीता है छुपकर
हो जिज्ञासा शांत, जरा देखूँ तो झुककर
नन्हा-सा यह जीव, लग रहा मुझ-सा सच्चा
समझा ! माँ के पास, चला आया है बच्चा |

सुनकर मेरी बात, खड़े हो क्यों गुमसुम-से
पूर्व जन्म का ज्ञान, मुझे है ज्यादा तुमसे
मैं तो समझूँ भाव, अन्य भाषा ना जानूँ
मानव पशु या जंतु, सभी को अपना मानूँ |

ममता सबकी एक, सभी में प्रेम समाया
उसके ही सब अंश, कहो फिर कौन पराया
धो लो मन का मैल, बात बच्चे की मानों
राग-द्वेष सब छोड़, सभी को अपना जानों |
*********************
११. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
रोला
कितना सुन्दर दृश्य नेत्र का उत्सव है यह
भावों का अभ्युदय राग का उद्भव है यह
वत्सलता है मूर्त्त अजा अति तोषमना है
ममता अंचल स्फूर्त्त शान्ति उद्घोष घना है

अजा मौन अक्लांत मेमना दिखता तन्मय
है दोनों ही शांत सुधारस माता का पय
देख रहा उद्भ्रांत एक शिशु कौतुक सारा
यह अनुभव है कांत कलित कविता की धारा

उल्लाला (13,13)
स्वच्छ दीखता है सदन अतिशय यह आंगन सुखद
अजा खडी है सुभग तन वत्सल मानस सौख्यप्रद
क्या करता है मेमना ? बैठा है इस भाँति क्यों ?
क्यों ममत्व में है सना शांत अजा का भाव यों

क्यों कौतूहल का विषय हुआ वत्स का खेल यह
पीता है वह मुग्ध पय रागायित है मेल यह
यह व्यवहारिक जीव गति निरख रहा शिशु ध्यान से
बूझेगा जग की प्रकृति निज अनुभव के ज्ञान से

उल्लाला (15,13)
यह पयस्विनी माता सदा पान कराती अमिय पय
इस तपस्विनी का सुधारस पीता है जातक अभय
यों मनस्विनी निर्भ्रान्त हो पान कराती है पयस
है यशस्विनी जग में जननि वत्सल सरसाती सरस

उल्लाला (13,13) विषम सम चरण तुकांत
सृजन कर रहा काम है दृश्य बड़ा अभिराम है
माता सुख की धाम है जीवन गति अविराम है

जानु टेक कर ताकता मन में गुनता आंकता
हाथों के बल झांकता हर अनुभव को टाँकता

शिशु आतुर है दंग है इसका अद्भुत ढंग है
जीवन एक उमंग है अपना भी इक रंग है
************************
१२. आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण'
रोला छंद
अपना अपना वास,सभी को लगता प्यारा।
निर्धन गोबर संग,लीप घर करे गुजारा।
पड़ी पतीली पास,कुटी का हाल सुनाए।
नहीं दाल ना भात,भूख ये बढ़ती जाए।

भूल भूख निज जान,पूत की भूख बड़ी है।
भूरी बकरी मूंद,नयन पग थाम खड़ी है।
तकता बच्चा मात,किसे है दूध पिलावे।
एक घूँट से काश,मात मम मन भर जावे।

जिन्दा होती आज,मात मम गले लगाती।
निचोड़ अपना वक्ष,मुझे भी दूध पिलाती।
मोर पंख सिर बांध, कभी वह कृष्ण बनाती।
लेकर अपनी गोद,प्यार से लाड़ लड़ाती।
**********************

१३. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताळे जी 

उल्लाला छंद

छुप दूध पी रहा मेमना,  मुन्ना बैठा पास है |
यह माता शिशु के प्रेम का, दृश्य बहुत ही ख़ास है ||

यह आँगन है या कोठरी , या कोई दालान है |
हैं बकरी बच्चे शांत सब, जगह बहुत सुनसान है ||

इस बच्चे की माता कहीं, किसी काम में व्यस्त है |  
पर बच्चा यह निर्भीक है , खेल रहा है मस्त है ||

शिशु अचरज से है देखता, यह दृश्य दुग्धपान का |
संकेत दे रहा शांत वह , चुप-चुप रह तूफान का ||

अब शीघ्र मिला ना दूध तो, रोयेगा शिशु जोर से |
फिर माँ तो क्या सब लोग ही, घबराएंगे शोर से ||

***********************************

Views: 2883

Replies to This Discussion

श्रद्धेय सौरभ पांडेय जी सादर नमन!'ओ.बी.ओ. चित्र से काव्य तक'छंदोत्सव अंक-70 के सफल आयोजन एवं त्वरित संकलन के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुरेश कल्याण जी. 

शुअ-शुभ

आदरणीय अशोक रक्ताले जी का नाम एवं उल्लाला छंद दिखाई दे रहा है किन्तु  रचना दिखाई नहीं दे रही है सादर 

जी इसका भान हमें भी है आदरणीय सत्यनारायण जी. कि, आदरणीय अशोक भाई की रचना दीख नहीं है. लेकिन यह इस पेज की तकनीकी समस्या के कारण ही हुआ है. आप मेरी मानें आदरणीय सत्यनारायण जी, कि आ० अशोक जी की रचना वहीं है. 

सादर

आदरणीय सौरभ जी, 'चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 70 के सफल आयोजन एवं त्वरित संकलन प्रस्तुति हेतु सादर आभार एवं बधाई।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी

सफल आयोजन व् त्वरित संकलन के लिए  हार्दिक  बधाई आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ...चित्र बहुत ही प्यारा था 

आपकी प्रतिक्रिया अत्यंत उत्साहित कर रही है आदरणीया प्रतिभा जी. 

इस बार का चित्र भाई गणेश जीके सौजन्य से प्राप्त हुआ था. 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 70 की सफलता और  समस्त  चिह्नित रचनाओं का  संकलन आपने व्यस्तताओं के बाद भी इतनी शीघ्र करने पर आपको हार्दिक बधाई.जिसतरह से मेरी रचना देरी से आयी है उसीतरह संकलन में  भी मात्र रचना छंद के नाम को ही स्थान मिल पाया  है.  :)  :) क्षमा चाहता हूँ  व्यस्तताओं के कारण मैं समय से रचना तैयार नहीं  कर पाया था.सादर.

आदरणीय अशोक भाई जी, आपकी पूरी रचना पोस्ट हुई है। लेकिन जैसाकि ओबीओ के पटल पर कई बार हो चुका है, वही हुआ है। रचना दिख नहीं रही है। अभी प्लेटफॉर्म पर मोबाइल से टिप्पणी कर रहा हूँ। स्थिर होते ही पुनः रचना को डिलीट कर पोस्ट करता हूँ। संभवतः आअपकी रचना दिखने लगे। हम सभी को आजतक समझ नहीं आया है कि ऐसा होता क्यों है।

सादर

जी ! सादर प्रणाम, ओ बी ओ पर कम ही होता अन्य वेब साइट्स पर तो कई समस्याएँ और भी देखी गईं हैं. सादर.

आदरनीय सौरभ भाई , त्वरित संकलन प्रस्तुति के लिये आपका हार्दिक आभार , एक और सफल आयोजन के लिये सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाइयाँ ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service