"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-71 - Open Books Online2024-03-29T06:24:56Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/71?feed=yes&xn_auth=noआभार tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7703112016-05-28T18:29:25.328Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>आभार </p>
<p>आभार </p> वाह वाह
इधर मालिन भी मिल गई tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701662016-05-28T18:24:06.452Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>वाह वाह </p>
<p>इधर मालिन भी मिल गई </p>
<p>वाह वाह </p>
<p>इधर मालिन भी मिल गई </p> सूझ बूझ से काम लिया जाए तो को…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701652016-05-28T18:24:00.210ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
सूझ बूझ से काम लिया जाए तो कोई और बिंदु प्रभावी नहीं हो पायेगा मोहतरम सौरभ पांडे साहिब,गुस्ताखी के लिये मुआफ़ी चाहता हूँ ।
सूझ बूझ से काम लिया जाए तो कोई और बिंदु प्रभावी नहीं हो पायेगा मोहतरम सौरभ पांडे साहिब,गुस्ताखी के लिये मुआफ़ी चाहता हूँ । निलेश जी, आपके विचारों का हार…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701642016-05-28T18:23:29.049Zअजीत शर्मा 'आकाश'http://openbooksonline.com/profile/AjeetSharmaAakash
<p>निलेश जी, आपके विचारों का हार्दिक स्वागत है.... क्या है कि.... थोड़ा विचारधारा का अन्तर होता है.... सच बताइये, क्या वाक़ई हम आज़ाद हैं आज.... कल गोरों के गुलाम थे, आज कालों के .... प्रगतिशील एवं साम्यवादी विचारधारा ही आदमी को आदमी बताती है..... शेष फिर.... कार्यक्रम का अन्तिम चरण सामने है.... आभार प्रतिक्रिया हेतु.... मगर कहना होगा.... 'इन्क़्लाब ज़िन्दाबाद'.... कहना होगा... 'जय भारत'... न कि 'भारत माता की जय' !!!</p>
<p>निलेश जी, आपके विचारों का हार्दिक स्वागत है.... क्या है कि.... थोड़ा विचारधारा का अन्तर होता है.... सच बताइये, क्या वाक़ई हम आज़ाद हैं आज.... कल गोरों के गुलाम थे, आज कालों के .... प्रगतिशील एवं साम्यवादी विचारधारा ही आदमी को आदमी बताती है..... शेष फिर.... कार्यक्रम का अन्तिम चरण सामने है.... आभार प्रतिक्रिया हेतु.... मगर कहना होगा.... 'इन्क़्लाब ज़िन्दाबाद'.... कहना होगा... 'जय भारत'... न कि 'भारत माता की जय' !!!</p> मतले से मक़्ते तक बेहतरीन गिर…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701632016-05-28T18:19:32.202ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
मतले से मक़्ते तक बेहतरीन गिरह के साथ बेहतरीन सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया वन्दना जी।
मतले से मक़्ते तक बेहतरीन गिरह के साथ बेहतरीन सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया वन्दना जी। आदरणीय समर सर, ये तो बस इस वि…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701622016-05-28T18:19:23.123ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय समर सर, ये तो बस इस विधा को सीखने की ललक में लिख गया। मुझे ये विधा बहुत पसंद आयी। चूँकि इसकी जानकारी पहली दफा आप से मिली, तो गुरु की ग़ज़ल पर ही कोशिश की। आपकी सादर प्रणाम।
आदरणीय समर सर, ये तो बस इस विधा को सीखने की ललक में लिख गया। मुझे ये विधा बहुत पसंद आयी। चूँकि इसकी जानकारी पहली दफा आप से मिली, तो गुरु की ग़ज़ल पर ही कोशिश की। आपकी सादर प्रणाम। अलग अंदाज़ के बढ़िया प्रयास क…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7703092016-05-28T18:16:48.570ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
अलग अंदाज़ के बढ़िया प्रयास के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
अलग अंदाज़ के बढ़िया प्रयास के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। जनाब पंकज कुमार जी आदाब,बहुत…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701612016-05-28T18:16:03.106ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब पंकज कुमार जी आदाब,बहुत सफ़ल प्रयास रहा आपका ,दाद ही दाद क़ुबूल फ़रमाऐं, आपने नाचीज़ की ग़ज़ल को तज़मींन के लिये मुन्तखद किया,इसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।<br />
यह जानकार ख़ुशी हुई कि आपने तज़मींन सिन्फ़ की नब्ज़ पकड़ ली,इस सफ़ल प्रयास पर ढेरों दाद और बधाई स्वीकार करें ।<br />
<br />
"मज़हका देखो उड़ाते हैं वही"<br />
<br />
इस मिसरे पर आपके मिसरों में क़ाफ़िया दोष है,एक बात और कि आपने किसी शैर पर 6 मिसरे कहे, किसी में 5,लेकिन तज़मींन का क़ायदा यह है कि सिर्फ़ तीन मिसरे हों और सटीक हों ।
जनाब पंकज कुमार जी आदाब,बहुत सफ़ल प्रयास रहा आपका ,दाद ही दाद क़ुबूल फ़रमाऐं, आपने नाचीज़ की ग़ज़ल को तज़मींन के लिये मुन्तखद किया,इसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।<br />
यह जानकार ख़ुशी हुई कि आपने तज़मींन सिन्फ़ की नब्ज़ पकड़ ली,इस सफ़ल प्रयास पर ढेरों दाद और बधाई स्वीकार करें ।<br />
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"मज़हका देखो उड़ाते हैं वही"<br />
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इस मिसरे पर आपके मिसरों में क़ाफ़िया दोष है,एक बात और कि आपने किसी शैर पर 6 मिसरे कहे, किसी में 5,लेकिन तज़मींन का क़ायदा यह है कि सिर्फ़ तीन मिसरे हों और सटीक हों । जनाब जहीर कुरैशी जी की हिंदी…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7703082016-05-28T18:11:18.110Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>जनाब जहीर कुरैशी जी की हिंदी ग़ज़लों को भी साथ ही पढ़ा जाना चाहिए </p>
<p>जनाब जहीर कुरैशी जी की हिंदी ग़ज़लों को भी साथ ही पढ़ा जाना चाहिए </p> जी ,अबकी ये भी अच्छी तरह स…tag:openbooksonline.com,2016-05-28:5170231:Comment:7701602016-05-28T18:10:49.444Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
<p>जी ,अबकी ये भी अच्छी तरह से साफ़ हो गया है . सादर .</p>
<p>जी ,अबकी ये भी अच्छी तरह से साफ़ हो गया है . सादर .</p>