ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 76 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-29T13:55:24Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/76-3?feed=yes&xn_auth=noआ. राणा प्रताप सर, "मयक़दे" म…tag:openbooksonline.com,2017-10-06:5170231:Comment:8869962017-10-06T15:05:37.657ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आ. राणा प्रताप सर, <span> "</span>मयक़दे" में मैंने "दे" की मात्रा शब्द के अन्तिम अक्षर होने की वजह से गिरायी थी. यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो क्या इसी शब्द (मयक़दे) के साथ ऐसा है या अन्य शब्दों के साथ भी. कृपया उचित मार्गदर्शन करें जिससे भविष्य में इन त्रुटियों से बचा जा सके. </p>
<p></p>
<p>मैं संशोधित अशआर प्रस्तुत कर रहा हूँ. कृपया इन्हें प्रतिस्थापित कर दें. </p>
<p></p>
<p>न जाने क्यूँ मुझे अब आइने से लगता है डर </p>
<p>मिलूँ मैं ख़ुद से भी हरदम नक़ाब पहने हुए</p>
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<p>गया मैं जब…</p>
<p>आ. राणा प्रताप सर, <span> "</span>मयक़दे" में मैंने "दे" की मात्रा शब्द के अन्तिम अक्षर होने की वजह से गिरायी थी. यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो क्या इसी शब्द (मयक़दे) के साथ ऐसा है या अन्य शब्दों के साथ भी. कृपया उचित मार्गदर्शन करें जिससे भविष्य में इन त्रुटियों से बचा जा सके. </p>
<p></p>
<p>मैं संशोधित अशआर प्रस्तुत कर रहा हूँ. कृपया इन्हें प्रतिस्थापित कर दें. </p>
<p></p>
<p>न जाने क्यूँ मुझे अब आइने से लगता है डर </p>
<p>मिलूँ मैं ख़ुद से भी हरदम नक़ाब पहने हुए</p>
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<p>गया मैं जब भी किसी मयक़दे में देखा यही</p>
<p>जो जितने होश में उतनी शराब पहने हुए</p>
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<p>आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</p> आदरणीय महेंद्र जी पहले मिसरे…tag:openbooksonline.com,2017-10-04:5170231:Comment:8868572017-10-04T13:23:08.451ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय महेंद्र जी पहले मिसरे में मयकदे की मात्रा को गिराकर बांधा गया है जो जायज़ नहीं है इसलिए मिसरा बेबहर हुआ जाता है और दुसरे मिसरे में ताक़बुले रदीफ़ का ऐब है|</p>
<p>आदरणीय महेंद्र जी पहले मिसरे में मयकदे की मात्रा को गिराकर बांधा गया है जो जायज़ नहीं है इसलिए मिसरा बेबहर हुआ जाता है और दुसरे मिसरे में ताक़बुले रदीफ़ का ऐब है|</p> जनाब राणा साहिब , ओ बी ओ लाइव…tag:openbooksonline.com,2017-09-25:5170231:Comment:8840742017-09-25T16:37:54.914ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>जनाब राणा साहिब , ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक -76 के संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ </p>
<p>जनाब राणा साहिब , ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक -76 के संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ </p> आ. राणा प्रताप सर, तरही मुशाय…tag:openbooksonline.com,2017-09-25:5170231:Comment:8840202017-09-25T07:29:20.199ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आ. राणा प्रताप सर, <span>तरही मुशायरा अंक76 के संकलन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आदरणीय सर, कृपया यह स्पष्ट करने का कष्ट करें कि यह मिसरा "सबक ये सीखा है साक़ी से मैंने मयक़दे में" बेबह्र </span>कैसे है और साथ ही इस मिसरे में "न जाने क्यूँ मुझे अब आइने से डर सा लगे" क्या ऐब है ताकि वांछित सुधार किया जा सकते. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर आभार.</p>
<p>आ. राणा प्रताप सर, <span>तरही मुशायरा अंक76 के संकलन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आदरणीय सर, कृपया यह स्पष्ट करने का कष्ट करें कि यह मिसरा "सबक ये सीखा है साक़ी से मैंने मयक़दे में" बेबह्र </span>कैसे है और साथ ही इस मिसरे में "न जाने क्यूँ मुझे अब आइने से डर सा लगे" क्या ऐब है ताकि वांछित सुधार किया जा सकते. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर आभार.</p> जनाब राणा प्रताप सिंह साहिब आ…tag:openbooksonline.com,2017-09-24:5170231:Comment:8836762017-09-24T17:37:30.864ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब राणा प्रताप सिंह साहिब आदाब,तरही मुशायरा अंक76 के संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।
जनाब राणा प्रताप सिंह साहिब आदाब,तरही मुशायरा अंक76 के संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।