ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 87 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-28T21:11:37Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/87-1?commentId=5170231%3AComment%3A886874&x=1&feed=yes&xn_auth=noमेरे कहे को मान देने के लिए ध…tag:openbooksonline.com,2017-10-04:5170231:Comment:8868742017-10-04T17:04:49.068ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।
मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद । आदरणीय समर साहब क़ुव्वत सही शब…tag:openbooksonline.com,2017-10-04:5170231:Comment:8866672017-10-04T13:36:47.555ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय समर साहब क़ुव्वत सही शब्द है इसलिए मैंने संशोधन कर दिया है| </p>
<p>आदरणीय समर साहब क़ुव्वत सही शब्द है इसलिए मैंने संशोधन कर दिया है| </p> आदरणीय समर साहब आपने सही फरमा…tag:openbooksonline.com,2017-10-04:5170231:Comment:8867922017-10-04T13:19:18.744ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय समर साहब आपने सही फरमाया है ..मिसरा लाल रंग में कर दिया है| बहुत बहुत शुक्रिया|</p>
<p>आदरणीय समर साहब आपने सही फरमाया है ..मिसरा लाल रंग में कर दिया है| बहुत बहुत शुक्रिया|</p> शुक्रिया आ. राणा प्रताप जी,सं…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8841002017-09-26T05:41:16.783ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. राणा प्रताप जी,<br></br>संकलन का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है अब.<br></br>आयोजन में कुछ ग़ज़लों पर नेटवर्क के आभाव के चलते टिप्पणियाँ रह गयी थीं ..उस कमी को अब पूरी करने का प्रयास कर रहा हूँ.. <br></br>.<br></br>आ.लक्ष्मण धामी जीयास अच्छा है ..आपसे और अच्छे अशआर की उम्मीद है ..<br></br>आ. राजेश दीदी की ग़ज़ल हमेशा की तरह ख़ूब है ..<br></br>.<br></br><span>चैन खोया है मेरा आज खतों ने तेरे </span><br></br><span>मैं जिन्हें रख न सकूँ पास जला भी न सकूँ ..इस शेर को बदलकर <br></br>.<br></br><span>चैन…</span></span></p>
<p>शुक्रिया आ. राणा प्रताप जी,<br/>संकलन का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है अब.<br/>आयोजन में कुछ ग़ज़लों पर नेटवर्क के आभाव के चलते टिप्पणियाँ रह गयी थीं ..उस कमी को अब पूरी करने का प्रयास कर रहा हूँ.. <br/>.<br/>आ.लक्ष्मण धामी जीयास अच्छा है ..आपसे और अच्छे अशआर की उम्मीद है ..<br/>आ. राजेश दीदी की ग़ज़ल हमेशा की तरह ख़ूब है ..<br/>.<br/><span>चैन खोया है मेरा आज खतों ने तेरे </span><br/><span>मैं जिन्हें रख न सकूँ पास जला भी न सकूँ ..इस शेर को बदलकर <br/>.<br/><span>चैन <strong>लूटा</strong> है मेरा <strong>फिर से</strong> खतों ने <strong>उनके</strong> </span><br/><strong>पास रख भी न सकूँ और जला भी न सकूँ</strong> ..ऐसा करने से शेर और रवां लगेगा ..<br/><br/></span>...<br/>आ. दिनेश कुमार जी की ग़ज़ल भी उम्दा है ..<br/>.<br/><br/><span>वो मेरी रूह की गहराइयों में रहता है... ये मिसरा <strong>यों</strong> गिराने के चलते अटक रहा है <br/>...<br/>आ. शिज्जू भाई की ग़ज़ल भी उनके रँग में रँगी हुई है ..<br/></span>.<br/><br/><span>जब तलक साँसें ठहर जाए न, जीना होगा,,ये मिसरा थोडा खटक रहा है ... कर्म के नकार का स्वर अंत में आने से वाक्य गड़बड़ा रहा है ..<br/></span>.<br/><strong>जब तलक साँसें चलेंगी मुझे जीना होगा </strong>ऐसा करने से शायद बात बनें...<br/>...<br/>आ. राजीव कुमार जी का मंच पर स्वागत है ..आशा है आप आगे भी नियमित आते रहेंगे..<br/>..<br/>आ. गजेन्द्र श्रोत्रिय जी को पहली बार पढकर अच्छा लगा <br/>.<br/><br/><br/><span>दिल में बैठा <strong>है वो ये</strong> बात छुपा भी न सकूँ..इस मिसरे में है वो ये साथ आने से गैय्यता घट रही है..आशा है आप चिन्तन करेंगे <br/></span>.<br/><span>कशमकश क्या है किसी को ये बता भी न सकूँ</span><br/><span>उसको पा भी न सकूँ और भुला भी न सकूँ.. इस शेर पर ढेरों दाद क़ुबूल करें <br/></span>...<br/>आ. मुसीश जी,<br/><span>चाक सीना <strong>देखे कोई</strong> तो समझ आए उसे.. को ....<span>चाक सीना <strong>कोई देखे</strong> तो समझ आए उसे करने से लाल रंग से पीछा छुड़ाया जा सकता है..<br/></span></span>अच्छी ग़ज़ल है ..बधाई <br/>साथ ही मेरी ग़ज़ल पर की गयी सभी टिप्पणियों के लिए सबका आभार ..<br/>सीखने सिखाने का सिलसिला यूँ ही चलता रहे ..<br/><br/></p> आ. राणा प्रताप सर, तरही मुशाय…tag:openbooksonline.com,2017-09-25:5170231:Comment:8840232017-09-25T07:31:35.141ZMahendra Kumarhttp://openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p><span>आ. राणा प्रताप सर, तरही मुशायरा अंक 87 के सफल सञ्चालन एवं त्वरित संकलन हेतु बधाई स्वीकार करें। सादर.</span></p>
<p><span>आ. राणा प्रताप सर, तरही मुशायरा अंक 87 के सफल सञ्चालन एवं त्वरित संकलन हेतु बधाई स्वीकार करें। सादर.</span></p> जनाब राम अवध जी की ग़ज़ल के मतल…tag:openbooksonline.com,2017-09-25:5170231:Comment:8838792017-09-25T05:03:47.873ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब राम अवध जी की ग़ज़ल के मतले के सानी मिसरे को भी हरा होना चाहिए,क्योंकि 'मामला'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "मुआमला"
जनाब राम अवध जी की ग़ज़ल के मतले के सानी मिसरे को भी हरा होना चाहिए,क्योंकि 'मामला'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "मुआमला" जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2017-09-24:5170231:Comment:8836732017-09-24T17:34:36.417ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,तरही मुशायरा अंक87के त्वरित संक्लन के लिए बधाई स्वीकार करें ।<br />
जनाब गजेन्द्र साहिब की ग़ज़ल के नवें शैर के ऊला मिसरे को हरा रंगना चाहिए क्योंकि उसमें 'क़ूवत'शब्द ग़लत इस्तेमाल किया गया है,सही शब्द है "क़ुव्वत"देखियेगा ।
जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,तरही मुशायरा अंक87के त्वरित संक्लन के लिए बधाई स्वीकार करें ।<br />
जनाब गजेन्द्र साहिब की ग़ज़ल के नवें शैर के ऊला मिसरे को हरा रंगना चाहिए क्योंकि उसमें 'क़ूवत'शब्द ग़लत इस्तेमाल किया गया है,सही शब्द है "क़ुव्वत"देखियेगा । आदरणीय राणा प्रताप जी ख़ूबसूर…tag:openbooksonline.com,2017-09-24:5170231:Comment:8838402017-09-24T11:17:15.230ZAfroz 'sahr'http://openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
आदरणीय राणा प्रताप जी ख़ूबसूरत निज़ामत के लिए आपको ह्रदय तल से बहुत बहुत बधाई । सादर,,
आदरणीय राणा प्रताप जी ख़ूबसूरत निज़ामत के लिए आपको ह्रदय तल से बहुत बहुत बधाई । सादर,, मुहतरम जनाब राणा साहिब ,ओ बी…tag:openbooksonline.com,2017-09-24:5170231:Comment:8837672017-09-24T10:40:47.521ZTasdiq Ahmed Khanhttp://openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
मुहतरम जनाब राणा साहिब ,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक-87के त्वरित संकलन और कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मुहतरम जनाब राणा साहिब ,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक-87के त्वरित संकलन और कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,
आ…tag:openbooksonline.com,2017-09-24:5170231:Comment:8839342017-09-24T09:41:04.514ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,<br />
आपका संचालन हमेशा से ही अच्छा रहा है,<br />
इस बार ख़ूबसूरत तरह में बहुत सारी ख़ूबसूरत ग़ज़लें पढ़ने को मिली,<br />
आपने अपना अनमोल वक़्त देकर इसे का़मयाब बनाया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया, तमाम ओ बी ओ परिवार को मुशाइरे के<br />
का़मयाबी के लिए मुबारक़बाद,,
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,<br />
आपका संचालन हमेशा से ही अच्छा रहा है,<br />
इस बार ख़ूबसूरत तरह में बहुत सारी ख़ूबसूरत ग़ज़लें पढ़ने को मिली,<br />
आपने अपना अनमोल वक़्त देकर इसे का़मयाब बनाया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया, तमाम ओ बी ओ परिवार को मुशाइरे के<br />
का़मयाबी के लिए मुबारक़बाद,,