"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-95 - Open Books Online2024-03-29T08:53:02Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/95?commentId=5170231%3AComment%3A931601&feed=yes&xn_auth=noसमय नहीं है अब ।tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9315062018-05-26T18:29:41.171ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>समय नहीं है अब ।</p>
<p>समय नहीं है अब ।</p> उपर अजय जी की ग़ज़ल पर मेरी ट…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9316712018-05-26T18:28:21.323ZTilak Raj Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>उपर अजय जी की ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी देखें।</p>
<p>उपर अजय जी की ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी देखें।</p> ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक-95…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9315052018-05-26T18:27:51.452ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक-95 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p>
<p>ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक-95 को सफल बनाने के लिये सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।</p> अजय जी, मत्ले के शेर को ही ले…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9317552018-05-26T18:26:42.724ZTilak Raj Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>अजय जी, मत्ले के शेर को ही लें। आप क्या कहना चाह रहे हैं यह स्पष्ट नहीं है। शेर स्वयंपूर्ण अभिव्यक्ति होता है। बहुत प्रयास करने पर आपके शेर से यह ध्वनित होता है कि आप छोटी चीज के स्थान पर बड़ी चीज देखने की बात दोनों मिसरों में कर रहे हैं। <br></br>बह्र के बारे में एक बात अवश्य ध्यान रखें कि शेर से बह्र के अरकान सी लहरें उठनी चाहियें। जैसे इस शेर में फ़ायलातुन् फ़ियलातुन् फ़ियलातुन् फ़यलुन् सी लहर उत्पन्न होना चाहिये जो नहीं हो रही है। <br></br>'रेत के ढेर से बेहतर है कि सहरा देखो' और 'रेत के ढेर से…</p>
<p>अजय जी, मत्ले के शेर को ही लें। आप क्या कहना चाह रहे हैं यह स्पष्ट नहीं है। शेर स्वयंपूर्ण अभिव्यक्ति होता है। बहुत प्रयास करने पर आपके शेर से यह ध्वनित होता है कि आप छोटी चीज के स्थान पर बड़ी चीज देखने की बात दोनों मिसरों में कर रहे हैं। <br/>बह्र के बारे में एक बात अवश्य ध्यान रखें कि शेर से बह्र के अरकान सी लहरें उठनी चाहियें। जैसे इस शेर में फ़ायलातुन् फ़ियलातुन् फ़ियलातुन् फ़यलुन् सी लहर उत्पन्न होना चाहिये जो नहीं हो रही है। <br/>'रेत के ढेर से बेहतर है कि सहरा देखो' और 'रेत के ढेर से उठकर जा के सहरा देखो' को गुनगुनायें, मेरी बात आपको समझ आ जायेगी ऐसा विश्वास है।<br/>ताल तालाब कुआं छोड़ के दरिया देखो बह्र की दृष्टि से ठीक है। गुनगुना कर देखें। <br/>अधिक कुछ न कहूॅंगा।</p> 'ज़ह-ए-नसीब कि ज़र्रे को आफ़ताब…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9318252018-05-26T18:17:16.132ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>'ज़ह-ए-नसीब कि ज़र्रे को आफ़ताब कहा'</p>
<p>सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।</p>
<p>'ज़ह-ए-नसीब कि ज़र्रे को आफ़ताब कहा'</p>
<p>सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।</p> आप तो स्वयं ही उस्ताद शायर है…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9315042018-05-26T18:12:31.582ZTilak Raj Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>आप तो स्वयं ही उस्ताद शायर हैं। कहने को कुछ नहीं सिवाय इसके कि मन आनंदित है।</p>
<p>आप तो स्वयं ही उस्ताद शायर हैं। कहने को कुछ नहीं सिवाय इसके कि मन आनंदित है।</p> जनाब तिलक राज कपूर साहिब,मुशा…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9318242018-05-26T18:11:11.085ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब तिलक राज कपूर साहिब,मुशायरे में आपका स्वागत है,लेकिन:-</p>
<p>'बड़ी देर की मह्रबाँ आते आते'</p>
<p>ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>मतले का सानी मिसरा कुछ कमज़ोर लगा ।</p>
<p>जनाब तिलक राज कपूर साहिब,मुशायरे में आपका स्वागत है,लेकिन:-</p>
<p>'बड़ी देर की मह्रबाँ आते आते'</p>
<p>ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।</p>
<p>मतले का सानी मिसरा कुछ कमज़ोर लगा ।</p> नीलेश भाई मैं तो अरसे बाद लौट…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9315032018-05-26T18:09:11.870ZTilak Raj Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>नीलेश भाई मैं तो अरसे बाद लौटा हॅूं, आपकी उपस्थिति देख कर आनंदित हूॅं। ग़ज़ल तो बहरहाल आपके कद के मुताबिक है ही लेकिन तरही मिसरा अनुपस्थित पा रहा हूॅं, शायद व्यस्तता के कारण।</p>
<p>नीलेश भाई मैं तो अरसे बाद लौटा हॅूं, आपकी उपस्थिति देख कर आनंदित हूॅं। ग़ज़ल तो बहरहाल आपके कद के मुताबिक है ही लेकिन तरही मिसरा अनुपस्थित पा रहा हूॅं, शायद व्यस्तता के कारण।</p> इश्क़ में जान भी देने का ये व…tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9315002018-05-26T18:01:20.837ZTilak Raj Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>इश्क़ में जान भी देने का ये वाद: देखो<br/>शम्अ के रक़्स में आशिक़ को उतरता देखो।</p>
<p></p>
<p>पाक रिश्ते की महक दूर तलक जाती है<br/>सरहदों पार से आया ये लिफ़ाफ़: देखो।</p>
<p></p>
<p>जिस्म दो, जान मगर एक, समझने के लिये<br/>गुल से तितली का कभी कस के लिपटना देखो।</p>
<p></p>
<p>फ़ासिल: का उसे अहसास न होने देना<br/>दोस्त बचपन का अगर वक्त का मारा देखो।</p>
<p></p>
<p>उसकी नेमत ही नुमाया है जहॉं भी देखा<br/>''हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो''।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>इश्क़ में जान भी देने का ये वाद: देखो<br/>शम्अ के रक़्स में आशिक़ को उतरता देखो।</p>
<p></p>
<p>पाक रिश्ते की महक दूर तलक जाती है<br/>सरहदों पार से आया ये लिफ़ाफ़: देखो।</p>
<p></p>
<p>जिस्म दो, जान मगर एक, समझने के लिये<br/>गुल से तितली का कभी कस के लिपटना देखो।</p>
<p></p>
<p>फ़ासिल: का उसे अहसास न होने देना<br/>दोस्त बचपन का अगर वक्त का मारा देखो।</p>
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<p>उसकी नेमत ही नुमाया है जहॉं भी देखा<br/>''हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो''।</p>
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<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p> आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया tag:openbooksonline.com,2018-05-26:5170231:Comment:9317542018-05-26T17:57:33.964ZMohan Begowalhttp://openbooksonline.com/profile/MohanBegowal
<p>आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया </p>
<p>आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया </p>