"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-१० (Now Closed) - Open Books Online2024-03-28T20:22:26Zhttp://openbooksonline.com/forum/topics/obo-10-now-closed?feed=yes&xn_auth=no
आदरणीय भाई बागी जी ! आपका स…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:734492011-04-25T18:16:20.684ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
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<p>आदरणीय भाई बागी जी ! आपका स्वागत है ......गज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया .....</p>
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<p>आदरणीय भाई बागी जी ! आपका स्वागत है ......गज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया .....</p> आदरणीय भाई प्रभाकर जी, इस ग…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:732722011-04-25T18:13:27.666ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
आदरणीय भाई प्रभाकर जी, <br/> इस गज़ल के बारे में आपका विश्लेषण लाजवाब है .........कोटि-कोटि आभार ......<br/> <br/>
<p>//कभी ना तुम झुकाना सर झुकाना गर तो उस के दर</p>
<p>जो उस दर ना झुकायें सर तो जुर्माना भी होता था//</p>
<p>आपके सुझाव के अनुसार इस शेर के मिसरों में समन्वय करने का प्रयास किया है......</p>
आदरणीय भाई प्रभाकर जी, <br/> इस गज़ल के बारे में आपका विश्लेषण लाजवाब है .........कोटि-कोटि आभार ......<br/> <br/>
<p>//कभी ना तुम झुकाना सर झुकाना गर तो उस के दर</p>
<p>जो उस दर ना झुकायें सर तो जुर्माना भी होता था//</p>
<p>आपके सुझाव के अनुसार इस शेर के मिसरों में समन्वय करने का प्रयास किया है......</p> सराहना हेतु आभारी हूँ.tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:732712011-04-25T18:10:23.924Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
सराहना हेतु आभारी हूँ.
सराहना हेतु आभारी हूँ. आपका आभार.tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:733602011-04-25T18:09:49.936Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
आपका आभार.
आपका आभार. उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:733592011-04-25T18:09:20.588Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद. आपको रचना रुची तो मेरा सृजन क…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:732702011-04-25T18:08:40.224Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
आपको रचना रुची तो मेरा सृजन कर्म सार्थक हो गया.
आपको रचना रुची तो मेरा सृजन कर्म सार्थक हो गया. आपका तहे दिल से शुक्रिया ....…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:734482011-04-25T17:57:32.942ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
आपका तहे दिल से शुक्रिया ......
आपका तहे दिल से शुक्रिया ...... //जमीं के प्यार में सूरज को न…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:733582011-04-25T17:53:49.722ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
//जमीं के प्यार में सूरज को नित आना भी होता था. <br></br> हटाकर मेघ की चिलमन दरश पाना भी होता था..<br></br> <br></br> उषा के हाथ दे पैगाम कब तक सब्र रवि करता?<br></br> जले दिल की तपिश से भू को तप जाना भी होता था..<br></br> <br></br> हया रंगीन चादर ओढ़, धरती लाज से सिमटी.<br></br> हुआ जो हाले-दिल संध्या से कह जाना भी होता था.. <br></br> <br></br> बराती थे सितारे, चाँद सहबाला बना नाचा. <br></br> पिता बादल को रो-रोकर बरस जाना भी होता था..<br></br> <br></br> हुए साकार सपने गैर अपने हो गए पल में.<br></br> जो पाया था वही अपना, ये समझाना भी होता…
//जमीं के प्यार में सूरज को नित आना भी होता था. <br/> हटाकर मेघ की चिलमन दरश पाना भी होता था..<br/> <br/> उषा के हाथ दे पैगाम कब तक सब्र रवि करता?<br/> जले दिल की तपिश से भू को तप जाना भी होता था..<br/> <br/> हया रंगीन चादर ओढ़, धरती लाज से सिमटी.<br/> हुआ जो हाले-दिल संध्या से कह जाना भी होता था.. <br/> <br/> बराती थे सितारे, चाँद सहबाला बना नाचा. <br/> पिता बादल को रो-रोकर बरस जाना भी होता था..<br/> <br/> हुए साकार सपने गैर अपने हो गए पल में.<br/> जो पाया था वही अपना, ये समझाना भी होता था..<br/> <br/> नहीं जो संग उनके संग को कर याद खुश रहकर. <br/> 'सलिल' नातों के धागों को यूँ सुलझाना भी होता था..<br/> <br/> न यादों से भरे मन उसको भरमाना भी होता था. <br/> छिपाकर आँख के आँसू 'सलिल' गाना भी होता था..<br/> <br/> हरेक आबाद घर में एक वीराना भी होता था. <br/> जहाँ खुद से मिले खुद ही वो अफसाना भी होता था..//<br/> <br/> प्रणाम आदरणीय आचार्य जी! प्रकृति चित्रण करती एक बेमिसाल गज़ल........इसकी तारीफ के लिए मेरे सम्मुख मानो शब्दों का अकाल ही पड़ गया है .....आपको बहुत-बहुत बधाई ........ प्रभाकर जी! उत्साहवर्धन हेतु…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:733572011-04-25T17:35:37.189Zsanjiv verma 'salil'http://openbooksonline.com/profile/sanjivvermasalil
प्रभाकर जी! उत्साहवर्धन हेतु आभार. दोनों जगहों पर टंकण की त्रुटि हो गयी. खेद है कृपया सुधार क कर दें.
प्रभाकर जी! उत्साहवर्धन हेतु आभार. दोनों जगहों पर टंकण की त्रुटि हो गयी. खेद है कृपया सुधार क कर दें. भाई आलोक सीतापुरी जी की ओर से…tag:openbooksonline.com,2011-04-25:5170231:Comment:736212011-04-25T17:35:26.688ZEr. Ambarish Srivastavahttp://openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
भाई आलोक सीतापुरी जी की ओर से इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया देने हेतु आप सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया ........सादर..........
भाई आलोक सीतापुरी जी की ओर से इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया देने हेतु आप सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया ........सादर..........