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सुझाव एवं शिकायत

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Discussion Forum

प्रशनोत्तर 1 Reply

महोदय, विधाता लिखकर सेव एस ड्राफ्ट पर क्लिक करके सेव करते हैं तो इसे द्वारा देखने के लिए किस जगह मिलेगी, यह किस जगह सेव होती हैं. कृपया करके बताईयेगा. बबीता गुप्ता Continue

Tags: प्रशनोततर

Started by babitagupta. Last reply by योगराज प्रभाकर Apr 30, 2018.

एडमिन के लिए 5 Replies

O.B.O एक अच्छा मंच  है अपनी रचनाओं को प्रदर्शित करने के लिए किन्तु किसी भी रचना में कोई keyword  ना होने से रचनायें केवल इसी मंच तक सीमित हैं। और मंच से तो कहने को तीन हजार  से अधिक सदस्य हैं किंतु लगभग कुछ ही  लोग नियमित हैं बाकी तो दिखने की भीड़ हैंContinue

Started by रोहित डोबरियाल "मल्हार". Last reply by Samar kabeer Apr 5, 2018.

Response to Discussions 4 Replies

Dear friends:As many of us have noticed, usually there is not much response to the discussions at various Groups. This is true with English poems, as well, and one feels like a loner walking at night in the darkness in a big city with no street…Continue

Started by vijay nikore. Last reply by KALPANA BHATT ('रौनक़') Oct 13, 2017.

ग़ज़ल प्रकाशित नही होने के सम्बन्ध में 1 Reply

महोदय मैंने अभी अपनी एक ग़ज़ल को तीन बार पोस्ट किया परंतु प्रकाशित नही की गयीं है 3 दिन बीत गए । यदि कोई समस्या हो तो बताने का कष्ट करें ।

Started by Naveen Mani Tripathi. Last reply by योगराज प्रभाकर Oct 17, 2016.

ओबीओ का रंग 1 Reply

आदरणीय प्रधान  सम्पादक  जी ,                            नमस्कारमेरा  मानना है  कि हमारा  ओबीओ मंच साहित्य के  विविध  रंगों से  सरोबार  है। इसको  इतना फीका , उदास -सा  रंग यानी  रंगहीन-सा  बिलकुल नहीं  होना  चाहिए। मेंबर  होने  के  नाते ये  सिर्फ…Continue

Started by kanta roy. Last reply by Er. Ganesh Jee "Bagi" Jun 8, 2016.

कोई प्रदीप नील को बताएगा क्या ? 1 Reply

आदरणीय OBO टीम के वरिष्ठ सदस्य्गण ,मैं समझता हूँ कि यह उचित मंच है जहाँ मानकों के  आधार पर किसी चुटकुले को  लघुकथा , या लघुकथा को  चुटकुला घोषित किया जाता है।  अभी लघुकथा महा उत्सव ख़त्म हुआ है ,  थके होंगे तथा वहां शामिल रचनाओं के संकलन में व्यस्त…Continue

Started by प्रदीप नील वसिष्ठ. Last reply by योगराज प्रभाकर Dec 2, 2015.

थोड़ी हैरान हूं । 2 Replies

आदरणीय वरिष्ठ जन,सादर नमस्कार, मुझे शिकायत नहीं हैरानी है कि रचनाओं को जितने पाठक मिल रहे है उसकी तुलना में आधी मात्रा में भी प्रतिक्रिया नहीं मिलती।जबकि इस ग्रुप में काफ़ी सदस्य है । तो थोड़ी हताशा होती है । यूं लगता है जैसे लिखना व्यर्थ गया । सादर…Continue

Started by Rahila. Last reply by Sheikh Shahzad Usmani Nov 10, 2015.

छंद विधान के साथ संबंधित छंद का मानक/आदर्श वाचन का आडियो भी दिया जाये 1 Reply

एक निवेदनभरतीय छंद विधा में विभिन्न छंदों के मात्रिकता आंतरिक संरचना पर जानकारी उपलब्ध है । जिसके आधार पर मैं रचनाकर्म का अभ्यास करता हूॅ किंतु मुझे बार बार गेयता पर ध्यान देने का सुझाव दिया जाता है जो स्वागतेय  है इस परिप्रेक्ष्य में एक आग्रह है…Continue

Started by रमेश कुमार चौहान. Last reply by Prakash Chandra Baranwal Oct 6, 2015.

List of latest postings in various GroupsI 1 Reply

Just like OBO posts a list of the latest blogs on the right side of the screen, I suggest that OBO also post a list of latest additions to the various groups. This will serve the same significance as is presently offered to the 'blog posts'.…Continue

Started by vijay nikore. Last reply by Saurabh Pandey Jul 23, 2015.

क्या यह मेरा भ्रम है ? 17 Replies

व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं व विवशताओं के कारण पूर्व की भाँति न तो लिख पा रहा हूँ और न ही प्रतिक्रिया ही प्रकट कर पा रहा हूँ किन्तु ओबीओ पर पोस्ट रचनायें प्रतिदिन नियमित तौर पर पढ़ रहा हूँ. हाँ ! मासिक आयोजनों में सक्रिय रहने की यथा शक्ति कोशिश…Continue

Tags: है, ?, भ्रम, मेरा, यह

Started by अरुण कुमार निगम. Last reply by मिथिलेश वामनकर Jul 2, 2015.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 17, 2011 at 7:34pm

परम आदरणीय आज़र साहब 

साष्टांग दंडवत

मैंने भी इस बाबत कई वरिष्ठ फनकारों से बात की है और उन्होंने मुझे आश्वस्त किया है कि ग़ज़ल के विधान में इस प्रकार का कोई ऐब नहीं होता है| अपने भी जो उत्तर दिए हैं वह भी दिग्भ्रमित करने वाले है, न तो अपने इस दोष का नाम ही बताया और न ही कोई सन्दर्भ दिया| अलबत्ता मै सन्दर्भ के साथ चंद अशआर पेश कर रहा हूँ  |

१. "ग़ालिब"-ए-ख़स्ता  के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं 
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों

 

दाग देहलवी

१. न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर- ग़ैर होता कोई यार- यार होता

२. आती है बात बात मुझे याद बार बार
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..

 

मीर तकी 'मीर'

१. याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया


२. पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है

 

शुक्रिया 

 

Comment by वीनस केसरी on January 17, 2011 at 7:30pm
आज़र जी
मैंने सारे पाठ ध्यान पूर्वक पढ़े कुछ जगह कुछ बात खटकी तो जरूर है मगर वो ग़ज़ल के भाव को ले कर हैं या फिर अशुद्धि को लेकर हैं अगर आप आदेश करें तो मैं इस सन्दर्भ  में आपसे कुछ बात पूछूंगा 
जहाँ तक बात है व्यक्तिगत आक्षेप की तो, मुझे कहीं नहीं दिखा की किसी ने गलत भावना से "किसी पर भी" कोई आरोप लगाया हो या किसी की भावना को ठेस पहुचने की कोशिश की हो 
और अब यह बात "एडमिन" नवीन जी के कमेन्ट से भी पता चल रही है फिर मैं तो कल आज ही इस मंच से जुड़ा हूँ
बस आपसे निवेदन है की चीजों को सकारात्मक पहलू से लें, मैं आज मंच से नया जुडा और एक प्रश्न पूछ लिया की क्या अब नई पोस्ट नहीं लिख रहे हैं ?
और आप मुझसे कह रहे हैं जा कर "एडमिन"  से पूछो मुझसे क्या पूछते हो ?
आपना यह नजरिया थोड़ा हैरान करता हैं 
Comment by Admin on January 17, 2011 at 6:49pm

आदरणीय आज़र साहिब,

सादर अभिवादन ,

श्रीमान venus keshari जी ने यही सवाल गज़लशाला मे भी उठाई है , यदि आप इनके सवाल का जबाब वहा ही दे तो सभी को ज्ञात होगा कि आप द्वारा अगला पाठ क्यू नहीं लगाया जा रहा है , बकौल आपका पहला अंक आपने लिखा है कि आपने एडमिन OBO के अनुरोध पर गज़लशाला शुरू कर रहे है , आपकी बातों से ऐसा लगता है कि कुछ गलतफहमियां है , यदि ऐसा है तो आपको एडमिन से कहना चाहिये, आपके कहे अनुसार मैने पूरा गज़लशाला पुनः पढ़ा किन्तु मुझे कुछ खास समझ मे नहीं आया कि आप का इशारा किधर है , OBO आप का अपना परिवार है जो कुछ कहना है खुल कर कहे | परिवार मे नोक झोक चलता रहता है , आपके अगले पाठ का इन्तजार हम सब को आज भी है , मैं आज तक यह समझ रहा था कि किसी खास व्यस्तता के कारण नया पाठ नहीं आ रहा है |

कृपया नविन पाठ शुरू करे | 

आप का अपना ही

एडमिन

Comment by वीनस केसरी on January 17, 2011 at 5:30pm
आज़र जी नमस्ते,
मैंने ग़ज़ल की पाठशाला पर एक प्रश्न पूछा था फिर देखा की आप यहाँ उपस्थित हैं तो उस प्रश्n को यहाँ दोहरा रहा हूँ

ग़ज़ल की पाठशाला में आज़र जी का अंतिम पाठ (अंक ९) दिनांक October 29, २०१० को प्रकाशित हुआ है और उसके बाद पाठ प्रकाशित न होने पाने की कोई सूचना नहीं दी गई है
मैं ये जानना चाहता हूँ की क्या आज़र जी ने यहाँ लिखना बंद कर दिया है ?

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 17, 2011 at 4:41pm
आदरणीय आज़र साहिब,
सादर नमस्कार !

आपने मेरी दरख्वास्त कबूल फरमा कर जवाब दिया, आपका दिल से मशकूर हूँ ! यह हाईफन वाली बात अभी भी मुझे परेशान कर रही है ! वजाहत के लिए मैं अज़ीम शु'अरा के चाँद आशार बतौर हवाला पेश करना चाहूँगा जहाँ दो से ज्यादा दफा  हाईफन इस्तेमाल किए गए हैं :

//जनाब फ़िराक गोरखपुरी//

निगाहे-चश्मे-सियह कर रहा है शरहे-गुनाह
न छेड़ ऐसे में बहसे-जवाज़ो-गै़रे-जवाज़

//जनाब दाग देहलवी साहिब 

हुस्न-ए-अदा भी खूबी-ए-सीरत में चाहिए,
यह बढ़ती दौलत, ऐसी ही दौलत में चाहिए।

//मिर्ज़ा असदुल्ला ग़ालिब साहिब//


शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
तमाशा-ए बयक-कफ़ बुरदन-ए-सद दिल पसंद आया

हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बेमिहरी-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-ब -ग़लतीदन-ए-बिस्मिल पसंद आया

रवानियाँ -ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है
कि लुतफ़-ए बे-तहाशा-रफ़तन-ए क़ातिल पसंद आया

वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां
वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां

दर्से-उन्वाने-तमाशा बा-तग़ाफ़ुल ख़ुशतर
है निगहे- रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गाँ

असरे-आब्ला से है जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ
सूरते-रिश्ता-ए-गोहर है चराग़ाँ मुझसे

निगह-ए-गर्म से इक आग टपकती है ‘असद’
है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाके-गुलिस्ताँ मुझसे

//हजरत मोमिन खान मोमिन साहिब//

दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा
वो वलवला, वो जोश, वो तुग़याँ नहीं रहा

मोमिन ये लाफ़-ए-उलफ़त-ए-तक़वा है क्यों अबस
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा


जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में|
शौक़-ए-सवाब ने मुझे डाला अज़ाब में|

रहते हैं जमा कूचा-ए-जानाँ में ख़ास-ओ-आम,
आबाद एक घर है जहान-ए-ख़राब में|

//मीर तक़ी मीर साहिब //

आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ
मोहलत बसाँ-ए-बर्क़-ओ-शरार कम बहुत है याँ

बक्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल
ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ

//अल्लामा इकबाल साहिब//

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुन्तज़र! नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
के हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं तेरी जबीन-ए-नियाज़ में

तरब आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरूद क्या के छिपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ओ-साज़में

तू बचा बचा के न रख इसे तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अज़ीज़तर है निगाह-ए-आईना-साज़ में !

क्या इन आशार को पुरऐब माना जाएगा ? बराए मेहरबानी वजाहत फरमाएं !  

सादर !
योगराज प्रभाकर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 17, 2011 at 4:10pm

परम आदरणीय आजर साहब 

आपको और आपकी सोच को 

साष्टांग दंडवत 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 17, 2011 at 3:12pm

परम आदरणीय आजर sahab 

साष्टांग dandavat

आपको मिसरों में कोमा(,) तो दिख गया पर उसका मकसद नहीं दिखाई दिया| जनाब अगर आप गौर से देखें तो मूलतः जो मिसरा दिया गया है वहां पर कोई भी panctuation का निशान है ही नहीं और  उसके बाद जो मिसरे में कोमे का निशान है वह अरकान के बीच में स्पेस देने के लिए रखा गया है जिससे की कोई नया व्यक्ति भी  अरकान को समझ सके, ठीक उसके नीचे अरकान को लिख कर बात को और भी स्पष्ट किया गया है|

मै अदब की university तो गया नहीं हूँ पर हां इतना अवश्य जानता हूँ कि महफ़िल में किससे किस तरह से पेश आना चाहिए|

बहुत बहुत dhanyavaad

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 17, 2011 at 12:37pm
आदरणीय आज़र साहिब,
सादर नमस्कार !

मैं आपकी बात से इत्तफाक रखता हूँ कि उर्दू अदबी दुनिया में तरही मुशायरे के दौरान मिसरा किसी जाने माने शायर के कलाम से ही उठाने की परम्परा रही है ! लेकिन श्री राणा प्रताप जी द्वारा दिया गया मिसरा क्योंकि बिना किसी Mala fide Intensions के सहवन ही दिया गया है तो मेरे निजी विचार में यह हर प्रकार से दोषमुक्त माना जाना चाहिए ! श्री राणा प्रताप सिंह जी एक बहुत ही प्रतिभावान युवा शायर हैं जो कि महफ़िल के अदब-ओ-आदाब से बखूबी वाकिफ हैं, मैं नहीं मान सकता कि खुद अपना रचित मिसरा देने के पीछे उनका कोई निजी स्वार्थ निहित रहा होगा !

अब रही बात परम्परा की, तो अगर कोई नवीनता किसी असूल का उल्लंघन नहीं करती तो उसको अपनाने में क्या हर्ज़ है ? क्या आज अदब की हर बानगी में नये नये प्रयोग नहीं किए जा रहे हैं ?  यहाँ ओबीओ में हम खुद ऐसी नवीनता के हक में हैं ! और क्या मालूम कि कुछ अरसे के बाद श्री राणा प्रताप सिंह जी भी उस मुकाम पर पहुँच जाएँ जहाँ कि उनके कलाम से दुनिया तरही मिसरा उठाने लग जाए !

आप ने आगे फ़रमाया है कि किसी एक मिसरे में दो बार हाइफ़न प्रयोग उचित नहीं माना जाता है, मेरी अदना सी जानकारी से मुताबिक इल्म-ए-अरूज़ में कलाम के हरेक ऐब को एक ख़ास नाम से याद किया गया है ! यदि आप उस नाम के हवाले से मौजूदा तरही मिसरे में दो से ज्यादा हाइफ़न होने के ऐब का खुलासा कर सकें तो फन-ए-ग़ज़ल से तालिबिल्मों का बहुत ही भला होगा !

सादर !
योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on January 15, 2011 at 8:01pm

आदरणीय आज़र साहब

प्रणाम

बताना चाहता हूँ कि मिसरा ए तरह मेरी ही सोच की उपज है | मुशायरे के लिए समसामयिक विषय का चुनाव करते वक्त मुझे यह मिसरा ठीक लगा| अब आप साहित्य के साथ खिलवाड़ की  बात शीघ्राति शीघ्र स्पष्ट कर दें|

धन्यवाद|

Comment by Admin on January 15, 2011 at 1:56pm

आदरणीय आज़र साहिब , सादर अभिवादन,

आपने कहा कि "बहुत दुख: होता है जब इस प्रकार से साहित्य व खास तौर से जब ग़ज़ल के साथ फ़नकार खिलवाड़ करते हैं"

कृपया अपने कथ्य का खुलासा करना चाहेंगे |

धन्यवाद सहित,

एडमिन

OBO

 
 
 

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