"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-111 - Open Books Online2024-03-29T11:23:34Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/111?commentId=5170231%3AComment%3A1012537&feed=yes&xn_auth=noशुभ समापन
tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10126382020-07-19T18:31:05.273ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>शुभ समापन</p>
<p></p>
<p>शुभ समापन</p>
<p></p> आदरणीय दिनेश कुमार जी,
आपक…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10126372020-07-19T18:30:42.800ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p><span>आदरणीय दिनेश कुमार जी, </span></p>
<p></p>
<p>आपकी हर तरह से श्लाघनीय है. यह अवश्य है कि आपने विधा का अध्ययन किया होगा तो इसकी जानकारी मिली होगी कि इस वीर या आल्हा छंद के लिए अतिशयोक्ति अलंकार यानी बढ़ा-चढ़ा कर चर्चा करना वाकई आभूषण की तरह होता है. </p>
<p>इसका तनिक प्रयोग रचना में चार चाँद लगा देता. </p>
<p>लेकिन, यह अवश्य है कि आपने बेहतर प्रयास किया है. बधाइयाँ </p>
<p>सादर</p>
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<p><span>आदरणीय दिनेश कुमार जी, </span></p>
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<p>आपकी हर तरह से श्लाघनीय है. यह अवश्य है कि आपने विधा का अध्ययन किया होगा तो इसकी जानकारी मिली होगी कि इस वीर या आल्हा छंद के लिए अतिशयोक्ति अलंकार यानी बढ़ा-चढ़ा कर चर्चा करना वाकई आभूषण की तरह होता है. </p>
<p>इसका तनिक प्रयोग रचना में चार चाँद लगा देता. </p>
<p>लेकिन, यह अवश्य है कि आपने बेहतर प्रयास किया है. बधाइयाँ </p>
<p>सादर</p>
<p></p> वाह वाह वाह !
आदरणीय लक्ष्म…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125602020-07-19T18:25:08.758ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह वाह वाह ! </p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सार छंद में निबद्ध आपकी रचना ने मोह लिया. अशेष बधाइयाँ </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p>सादर </p>
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<p>वाह वाह वाह ! </p>
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<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सार छंद में निबद्ध आपकी रचना ने मोह लिया. अशेष बधाइयाँ </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p>सादर </p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभा जी,
सार छं…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125592020-07-19T18:22:21.731ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p><span>आदरणीया प्रतिभा जी, </span></p>
<p></p>
<p><span>सार छंद में प्रस्तुत हुए गीत के लिए हार्दिक बधाई. मुखड़े का दूसरा चरण मात्रिक रूप से सधा हुआ होने के बावज़ूद लयता पर आबद्ध नहीं हो पा रहा. कारण कलों की व्यवस्था है. इस ओर तनिक ध्यान दीजिएगा. </span></p>
<p><span>बाकी, अंंतरा की पंक्तियाँ सार्थक रूप से सधी हुई हैं. </span></p>
<p></p>
<p><span>एक निवेदन है, हालातों जैसे शब्दों का प्रयोग न किया करें. हालात वस्तुतः हालत का बहुवचन है. तो बहुवचन का बहुवचन क्या होगा ? जो होगा वह अशुद्ध…</span></p>
<p></p>
<p><span>आदरणीया प्रतिभा जी, </span></p>
<p></p>
<p><span>सार छंद में प्रस्तुत हुए गीत के लिए हार्दिक बधाई. मुखड़े का दूसरा चरण मात्रिक रूप से सधा हुआ होने के बावज़ूद लयता पर आबद्ध नहीं हो पा रहा. कारण कलों की व्यवस्था है. इस ओर तनिक ध्यान दीजिएगा. </span></p>
<p><span>बाकी, अंंतरा की पंक्तियाँ सार्थक रूप से सधी हुई हैं. </span></p>
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<p><span>एक निवेदन है, हालातों जैसे शब्दों का प्रयोग न किया करें. हालात वस्तुतः हालत का बहुवचन है. तो बहुवचन का बहुवचन क्या होगा ? जो होगा वह अशुद्ध ही होगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>सादर बधाइयाँ </span></p>
<p></p> आदरणीय सतविन्द्र भाई, एक संतु…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125582020-07-19T18:13:54.780ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><span>आदरणीय सतविन्द्र भाई, एक संतुलित तथा सधी हुई रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद.</span></p>
<p>आपने सैनिकों के सम्मान में बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ लिखी हैं. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, पहली पंक्ति के प्रथम चरण में दो मात्रा भूलवश बढ़ गयी है. सुधार लीजिएगा. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p>सादर</p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय सतविन्द्र भाई, एक संतुलित तथा सधी हुई रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद.</span></p>
<p>आपने सैनिकों के सम्मान में बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ लिखी हैं. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, पहली पंक्ति के प्रथम चरण में दो मात्रा भूलवश बढ़ गयी है. सुधार लीजिएगा. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p>सादर</p>
<p></p> आदरणीय बासुदेव शरण अग्रवाल ज…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10126362020-07-19T18:08:06.902ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय बासुदेव शरण अग्रवाल जी, </p>
<p>आपके प्रयास पर मन मुग्ध है. रचनाकर्म तथा अभ्यास बना रहे. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p>सादर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आदरणीय बासुदेव शरण अग्रवाल जी, </p>
<p>आपके प्रयास पर मन मुग्ध है. रचनाकर्म तथा अभ्यास बना रहे. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p>सादर</p>
<p></p> आदरणीय अशोक भाईजी,
एक श्रेष…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125572020-07-19T18:06:05.704ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, </p>
<p>एक श्रेष्ठ और संतुलित रचना अनुकरणीय होती है. पूरे विश्वास से कहूँ, तो यह आल्हा या वीर छंद की एक अनुकरणीय रचना है. अतिशयोक्ति अलंकार इस छंद का गहना है.</p>
<p>जैसे, </p>
<p>थर्राती हैं सभी दिशाएँ, बढ़ते जब वीरों के पुंग ।</p>
<p>शूल फूल बन बिछ जाते हैं, घबराते बर्फीले तुंग ।</p>
<p>शौर्य देखकर यम भी इनका, सदा झुकाता अपना भाल ।</p>
<p>इन्हें नमन करने को आतुर, रहता हर पल गगन विशाल<span> </span></p>
<p></p>
<p><span>वाह वाह वाह.…</span></p>
<p></p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, </p>
<p>एक श्रेष्ठ और संतुलित रचना अनुकरणीय होती है. पूरे विश्वास से कहूँ, तो यह आल्हा या वीर छंद की एक अनुकरणीय रचना है. अतिशयोक्ति अलंकार इस छंद का गहना है.</p>
<p>जैसे, </p>
<p>थर्राती हैं सभी दिशाएँ, बढ़ते जब वीरों के पुंग ।</p>
<p>शूल फूल बन बिछ जाते हैं, घबराते बर्फीले तुंग ।</p>
<p>शौर्य देखकर यम भी इनका, सदा झुकाता अपना भाल ।</p>
<p>इन्हें नमन करने को आतुर, रहता हर पल गगन विशाल<span> </span></p>
<p></p>
<p><span>वाह वाह वाह. शुभ-शुभ.. </span></p>
<p><span>सादर </span></p>
<p></p> आदरणीय योगराज भाईजी, आपका सा…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125552020-07-19T18:02:26.690ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>आदरणीय योगराज भाईजी, आपका सादर स्वागत है. </p>
<p>आपने जो कहा वह अर्थ तो है ही, वस्तुतः, पुंग से पुंगव बनता है जिसका अर्थ है सम्माननीय श्रेष्ठ. वीरों के पुंग से श्रेष्ठ वीरों से आशय भी हो तो समीचीन अर्थबोध होता है.</p>
<p>सादर</p>
<p> </p>
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<p>आदरणीय योगराज भाईजी, आपका सादर स्वागत है. </p>
<p>आपने जो कहा वह अर्थ तो है ही, वस्तुतः, पुंग से पुंगव बनता है जिसका अर्थ है सम्माननीय श्रेष्ठ. वीरों के पुंग से श्रेष्ठ वीरों से आशय भी हो तो समीचीन अर्थबोध होता है.</p>
<p>सादर</p>
<p> </p> आदरणीय अखिलेश भाई,
आपकी प्रस…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10125542020-07-19T17:57:03.723ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेश भाई, </p>
<p>आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p>आपने चित्रानुरूप भाव तो दिए हैं किन्तु शिल्प का सार्थक निर्वहन नहीं हो पाया है. कृपया कई पंक्तियों खो एक बार फिर से देखना उचित होगा. </p>
<p>न मानें लातों के भूत हैं, कुत्ते जैसे करते शोर।<br></br>स्ट्राइक सर्जिकल बारम्बार, पूँछ कटाया पाक सियार।<br></br>प्रलय की तरह मचे तबाही, अंतिम युद्ध आर या पार।</p>
<p></p>
<p>इसी के साथ, एक अलिखित नियम यह भी होता है कि प्रथम चरण का अंत चौकल से हो. इससे गेयता संतुलित रहती…</p>
<p>आदरणीय अखिलेश भाई, </p>
<p>आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p>आपने चित्रानुरूप भाव तो दिए हैं किन्तु शिल्प का सार्थक निर्वहन नहीं हो पाया है. कृपया कई पंक्तियों खो एक बार फिर से देखना उचित होगा. </p>
<p>न मानें लातों के भूत हैं, कुत्ते जैसे करते शोर।<br/>स्ट्राइक सर्जिकल बारम्बार, पूँछ कटाया पाक सियार।<br/>प्रलय की तरह मचे तबाही, अंतिम युद्ध आर या पार।</p>
<p></p>
<p>इसी के साथ, एक अलिखित नियम यह भी होता है कि प्रथम चरण का अंत चौकल से हो. इससे गेयता संतुलित रहती है.</p>
<p>विश्वास है, इस तथ्य पर ध्यान देंगे. </p>
<p>अगली बार भी प्रयास रहेगा कि इस छंद की पुनरावृति हो. ताकि बेहतर अभ्यास हो सके. </p>
<p>सादर</p>
<p></p> आल्हा छंद में चित्र को सजीव क…tag:openbooksonline.com,2020-07-19:5170231:Comment:10126352020-07-19T17:21:37.257Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>आल्हा छंद में चित्र को सजीव करती छंद रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय अखिलेश जी</p>
<p>आल्हा छंद में चित्र को सजीव करती छंद रचना।हार्दिक बधाई आदरणीय अखिलेश जी</p>