"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-113 - Open Books Online2024-03-29T09:23:35Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/113?commentId=5170231%3AComment%3A1017938&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय अशोक जी, आपकी रचनाएँ भ…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179892020-09-20T18:37:12.064ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक जी, आपकी रचनाएँ भले विलंब से आयीं, किंतु, सार्थक समापन का कारण बन रही हैं. </p>
<p></p>
<p>इस काल का इतिहास पढ़कर, पीढ़ियों को भान हो ।</p>
<p>जब तक रहे यह सृष्टि तब तक, नारियों का मान हो ।।</p>
<p>वाह !!</p>
<p></p>
<p>सहभागिता हेतु हार्दिक धन्यवाद.</p>
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<p>आदरणीय अशोक जी, आपकी रचनाएँ भले विलंब से आयीं, किंतु, सार्थक समापन का कारण बन रही हैं. </p>
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<p>इस काल का इतिहास पढ़कर, पीढ़ियों को भान हो ।</p>
<p>जब तक रहे यह सृष्टि तब तक, नारियों का मान हो ।।</p>
<p>वाह !!</p>
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<p>सहभागिता हेतु हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p></p> आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्त…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179882020-09-20T17:56:41.244ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत छन्दों को सराह कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हृदय से आभार. सादर </p>
<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत छन्दों को सराह कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हृदय से आभार. सादर </p> आदरणीय मुकुल कुमार लीम्बड जी…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178732020-09-20T17:54:57.017ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय मुकुल कुमार लीम्बड जी सादर, प्रदत्त चित्र को बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी 'हाँ' को 'हा' लिखना फ़ुर्सत को 'फूरसद' लिखना वर्तनी दोष हैं.सादर </p>
<p>आदरणीय मुकुल कुमार लीम्बड जी सादर, प्रदत्त चित्र को बहुत सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी 'हाँ' को 'हा' लिखना फ़ुर्सत को 'फूरसद' लिखना वर्तनी दोष हैं.सादर </p> आदरणीया डॉ. वन्दना मिश्रा जी…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178722020-09-20T17:46:19.903ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीया डॉ. वन्दना मिश्रा जी आपका "ओबीओ चित्र से काव्य तक छ्न्दोत्सव अंक-113" में स्वागत है. सादर. </p>
<p>आदरणीया डॉ. वन्दना मिश्रा जी आपका "ओबीओ चित्र से काव्य तक छ्न्दोत्सव अंक-113" में स्वागत है. सादर. </p> आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रदत्त…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178712020-09-20T17:43:33.175ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रदत्त चित्र पर चारों छंद सुंदर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी तृतीय छंद के प्रथम और द्वितीय पद की गेयता बाधित हो रही है. उसी तरह प्रस्तुति की अंतिम पंक्ति में भी गेयता की समस्या है. इसके अतिरिक्त छंदों में अंतर्यती का सही पालन नहीं हुआ है. सादर </p>
<p>आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रदत्त चित्र पर चारों छंद सुंदर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिरभी तृतीय छंद के प्रथम और द्वितीय पद की गेयता बाधित हो रही है. उसी तरह प्रस्तुति की अंतिम पंक्ति में भी गेयता की समस्या है. इसके अतिरिक्त छंदों में अंतर्यती का सही पालन नहीं हुआ है. सादर </p> आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्त…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178702020-09-20T17:34:30.374ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करते सुंदर हरिगीतिका छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. प्रथम छंद की प्रथम पंक्ति के अतिरिक्त द्वितीय छंद की प्रथम पंक्ति पर भी ध्यान देने की आवश्यता है क्योंकि इस में 'सहेली' नहीं 'सहेलियाँ' शब्द का प्रयोग होगा. किन्तु छंद शिल्प की बाध्यता के कारण सहेलियाँ शब्द का प्रयोग सम्भव नहीं है इसलिए कोई और उचित परिमार्जन किया जाना उचित होगा. सादर. </p>
<p>आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करते सुंदर हरिगीतिका छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. प्रथम छंद की प्रथम पंक्ति के अतिरिक्त द्वितीय छंद की प्रथम पंक्ति पर भी ध्यान देने की आवश्यता है क्योंकि इस में 'सहेली' नहीं 'सहेलियाँ' शब्द का प्रयोग होगा. किन्तु छंद शिल्प की बाध्यता के कारण सहेलियाँ शब्द का प्रयोग सम्भव नहीं है इसलिए कोई और उचित परिमार्जन किया जाना उचित होगा. सादर. </p> आदरणीय अशोक भाईजी
तीनों छंद क…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179872020-09-20T17:33:26.376Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>तीनों छंद की सभी पंक्तियाँ चित्र को साकार करती और नारियों के उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं।</p>
<p>आप देर से आए पर दुरस्त आए ।</p>
<p>हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर</p>
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<p>आदरणीय अशोक भाईजी</p>
<p>तीनों छंद की सभी पंक्तियाँ चित्र को साकार करती और नारियों के उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं।</p>
<p>आप देर से आए पर दुरस्त आए ।</p>
<p>हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर</p>
<p></p> आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10179862020-09-20T17:27:43.599ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर, प्रदत्त चित्र को नारियों की तरक्की के उत्तम भाव देकर आपने सुन्दरता से परिभाषित किया है. दोनों ही छंद बहुत सुंदर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर </p>
<p>आदरणीया प्रतिभा पांडे जी सादर, प्रदत्त चित्र को नारियों की तरक्की के उत्तम भाव देकर आपने सुन्दरता से परिभाषित किया है. दोनों ही छंद बहुत सुंदर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर </p> श्री सौरभ जी, आपकी टिप्पणी ने…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178692020-09-20T17:22:46.061Zअजय गुप्ता 'अजेयhttp://openbooksonline.com/profile/3tuckjroyzywi
<p>श्री सौरभ जी, आपकी टिप्पणी ने मन को उत्साह दे दिया है। शुक्रिया। बहुत बहुत आभार इस विस्तृत विमर्श हेतू</p>
<p>श्री सौरभ जी, आपकी टिप्पणी ने मन को उत्साह दे दिया है। शुक्रिया। बहुत बहुत आभार इस विस्तृत विमर्श हेतू</p> आदरणीय सौरभ भाईजी
मुझे भी लग…tag:openbooksonline.com,2020-09-20:5170231:Comment:10178682020-09-20T17:22:38.493Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय सौरभ भाईजी</p>
<p>मुझे भी लगा कि उसी पँक्ति में संशोधन के स्थान पर पूरी पँक्ति को बदल देना ही उचित था। सच है गेयता की दृष्टि से प्रवाह दो स्थानों पर बाधित है।</p>
<p>उत्साहवर्धन और उचित सलाह के लिए धन्यवाद आभार आपका</p>
<p>सादर</p>
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<p>आदरणीय सौरभ भाईजी</p>
<p>मुझे भी लगा कि उसी पँक्ति में संशोधन के स्थान पर पूरी पँक्ति को बदल देना ही उचित था। सच है गेयता की दृष्टि से प्रवाह दो स्थानों पर बाधित है।</p>
<p>उत्साहवर्धन और उचित सलाह के लिए धन्यवाद आभार आपका</p>
<p>सादर</p>
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