"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 124 - Open Books Online2024-03-29T10:43:56Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/124?feed=yes&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10669532021-08-22T18:36:41.591Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति के लिए धन्यवाद। गलती समझ आ गयी । अगली रचना में सभी को संतुष्ट करने का प्रयास रहेगा।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति के लिए धन्यवाद। गलती समझ आ गयी । अगली रचना में सभी को संतुष्ट करने का प्रयास रहेगा।</p> आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10669522021-08-22T18:22:17.528Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सम्भवतया इस छंद को समझने में भूल हुई है । पुनः समझने का प्रयास कर कोशिश करूँगा । सादर..</p>
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सम्भवतया इस छंद को समझने में भूल हुई है । पुनः समझने का प्रयास कर कोशिश करूँगा । सादर..</p> आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10666752021-08-22T18:09:15.829Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<dl class="discussion clear i1 xg_lightborder">
<dd><div class="description" id="desc_5170231Comment1066859"><div class="xg_user_generated"><p>आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को सार्थक करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें।</p>
</div>
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</dd>
</dl>
<dl class="discussion clear i1 xg_lightborder">
<dd><div class="description" id="desc_5170231Comment1066859"><div class="xg_user_generated"><p>आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को सार्थक करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें।</p>
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</dl> भाई लक्ष्मण जी, आयोजन में सहभ…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10668742021-08-22T18:08:29.842ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>भाई लक्ष्मण जी, आयोजन में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।</p>
<p>शेष जनाब सौरभ साहिब कह चुके हैं ।</p>
<p>भाई लक्ष्मण जी, आयोजन में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।</p>
<p>शेष जनाब सौरभ साहिब कह चुके हैं ।</p> जनाब लक्ष्मण धामी जी, रचना की…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10666742021-08-22T18:04:59.872ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी जी, रचना की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।</p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी जी, रचना की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।</p> छपते-छपते मुहावरे को आपने सिद…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10667672021-08-22T18:04:06.304ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>छपते-छपते मुहावरे को आपने सिद्ध किया है, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>चित्रानुरूप प्रस्तुति हेतु धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>वस्तुत: आपकी प्रस्तुति भुजंगप्रयात छंद नहीं है. बल्कि, फऊलुन की चार आवृतियाँ हैं, जो वाचिक भुजंगप्रयात के समकक्ष होता है.</p>
<p></p>
<p>सादर</p>
<p>छपते-छपते मुहावरे को आपने सिद्ध किया है, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी.</p>
<p>चित्रानुरूप प्रस्तुति हेतु धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>वस्तुत: आपकी प्रस्तुति भुजंगप्रयात छंद नहीं है. बल्कि, फऊलुन की चार आवृतियाँ हैं, जो वाचिक भुजंगप्रयात के समकक्ष होता है.</p>
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<p>सादर</p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10667662021-08-22T18:02:05.649Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार बेहतरीन छन्द हुए हैं । हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार बेहतरीन छन्द हुए हैं । हार्दिक बधाई।</p> यहाँ माँ सभी को सदा पालती है…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10666712021-08-22T17:49:51.615Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p></p>
<p>यहाँ माँ सभी को सदा पालती है<br></br>समझ ले जमाना उसे ढालती है।।<br></br>सबक जिन्दगी का उसे है सिखाती<br></br>पकड़ हाथ उसको जहाँ में चलाती।।<br></br>*<br></br>यहाँ मोरनी जो लिए बाल अपने<br></br>चली है खुले में तनिक वो विचरने।।<br></br>मगर चाहती है उन्हें वो सिखाना<br></br>बिछा जाल बैठा शिकारी जमाना।।<br></br>*<br></br>सँभलकर जगत में चलो बालकों तुम<br></br>न फँसकर किसी जाल होना यहाँ गुम।।<br></br>उछल कूँद अच्छी मगर ध्यान रखना<br></br>नजर से न मेरी कभी दूर रहना।<br></br>*<br></br>यही राष्ट्र पक्षी देश का है हमारे<br></br>करे चाल से लीडरों को…</p>
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<p>यहाँ माँ सभी को सदा पालती है<br/>समझ ले जमाना उसे ढालती है।।<br/>सबक जिन्दगी का उसे है सिखाती<br/>पकड़ हाथ उसको जहाँ में चलाती।।<br/>*<br/>यहाँ मोरनी जो लिए बाल अपने<br/>चली है खुले में तनिक वो विचरने।।<br/>मगर चाहती है उन्हें वो सिखाना<br/>बिछा जाल बैठा शिकारी जमाना।।<br/>*<br/>सँभलकर जगत में चलो बालकों तुम<br/>न फँसकर किसी जाल होना यहाँ गुम।।<br/>उछल कूँद अच्छी मगर ध्यान रखना<br/>नजर से न मेरी कभी दूर रहना।<br/>*<br/>यही राष्ट्र पक्षी देश का है हमारे<br/>करे चाल से लीडरों को इशारे।।<br/>नहीं स्वार्थ अपने सदा देखना तुम<br/>मुझी सा जतन से प्रजा पालना तुम।।</p>
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<p>मौलिक अप्रकाशित</p> जय-जय ..
tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10668732021-08-22T17:40:31.332ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>जय-जय .. </p>
<p></p>
<p>जय-जय .. </p>
<p></p> बहुत शुक्रिय: भाई, अगली बार आ…tag:openbooksonline.com,2021-08-22:5170231:Comment:10666702021-08-22T17:35:18.275ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>बहुत शुक्रिय: भाई, अगली बार आपकी भरपूर दाद अवश्य लूँगा, इंशा अल्लाह:-)))</p>
<p>बहुत शुक्रिय: भाई, अगली बार आपकी भरपूर दाद अवश्य लूँगा, इंशा अल्लाह:-)))</p>