ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-126 - Open Books Online2024-03-29T15:57:12Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/126?commentId=5170231%3AComment%3A1071711&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noनमन है किसानो सदा आपको।तुम्हा…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10718462021-10-24T18:28:07.764ZDeepanjali Dubeyhttp://openbooksonline.com/profile/DeepanjaliDubey
<p>नमन है किसानो सदा आपको।<br></br>तुम्हारे भले काम के जाप को।।<br></br>सदा खेत खलिहान में रात हो।<br></br>न परिवार से चैन से बात हो।।</p>
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<p>प्रशासन खड़ा ठानता रार है।<br></br>हमारी कहाँ देख तकरार है।।<br></br>मदद की इसे आस सरकार से।<br></br>छला ही गया है इसे प्यार से।।</p>
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<p>हलों को चलाके सदा जोतते।<br></br>वही बीज डालें वही खोदते।।<br></br>उन्हीं के सतत त्याग से हम पले।<br></br>हमे रोज रोटी उन्हीं से मिले।।</p>
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<p>सदा खोदता वो रहा खेत को।<br></br>खड़ा रात में वो पकड़ बेंत को।।<br></br>न गर्मी न सर्दी न बरसात…</p>
<p>नमन है किसानो सदा आपको।<br/>तुम्हारे भले काम के जाप को।।<br/>सदा खेत खलिहान में रात हो।<br/>न परिवार से चैन से बात हो।।</p>
<p></p>
<p>प्रशासन खड़ा ठानता रार है।<br/>हमारी कहाँ देख तकरार है।।<br/>मदद की इसे आस सरकार से।<br/>छला ही गया है इसे प्यार से।।</p>
<p></p>
<p>हलों को चलाके सदा जोतते।<br/>वही बीज डालें वही खोदते।।<br/>उन्हीं के सतत त्याग से हम पले।<br/>हमे रोज रोटी उन्हीं से मिले।।</p>
<p></p>
<p>सदा खोदता वो रहा खेत को।<br/>खड़ा रात में वो पकड़ बेंत को।।<br/>न गर्मी न सर्दी न बरसात ही।<br/>कृषक दिन कहाँ देखता रात ही।।</p>
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<p>हरी है प्रकृति और वातावरण।</p>
<p>हमारा यही आसरा आचरण।।<br/>कुटी को बना के यहां हूं पड़ा।<br/>किसानी भुला के सड़क पे अड़ा।।</p>
<p></p>
<p>पले गोद में माँ हमे पालती।<br/>हमारा कहा वो कहांँ टालती।।<br/>कृषक तो हमारा विधाता बना।<br/>खिला अन्न सबका प्रदाता बना।।</p>
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<p>स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित</p> नमन, आदरणीय सौरभ साहब, आपने प…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10716492021-10-24T18:26:34.419ZChetan Prakashhttp://openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
नमन, आदरणीय सौरभ साहब, आपने प्रस्तुति को समय देकर मुझे कृतार्थ किया! विमर्श से निखार आएगा, आप की बात सही है ! साभार !
नमन, आदरणीय सौरभ साहब, आपने प्रस्तुति को समय देकर मुझे कृतार्थ किया! विमर्श से निखार आएगा, आप की बात सही है ! साभार ! आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10719432021-10-24T18:21:52.085ZDeepanjali Dubeyhttp://openbooksonline.com/profile/DeepanjaliDubey
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम। मैं जानती हूं बहुत कमियां है अभी मेरे लेखन में इसलिए आप सभी से सीखने का प्रयास कर रही हूँ। आदरणीय आप की हर बात का आगे ध्यान रख कर छंद में सुधार करूंगी किसानों में टंकण त्रुटि है। अवश्य सुधार करती हूँ।आप मेरा मार्गदर्शन करते रहें आदरणीय।</p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम। मैं जानती हूं बहुत कमियां है अभी मेरे लेखन में इसलिए आप सभी से सीखने का प्रयास कर रही हूँ। आदरणीय आप की हर बात का आगे ध्यान रख कर छंद में सुधार करूंगी किसानों में टंकण त्रुटि है। अवश्य सुधार करती हूँ।आप मेरा मार्गदर्शन करते रहें आदरणीय।</p> आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10719422021-10-24T18:11:30.325ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी पुनर्सहभागिता का अशेष आभार. </p>
<p>आपकी प्रस्तुति जिस तरह से संभव हो पायी होगी, इसे समझ पा रहा हूँ. </p>
<p></p>
<p>आपका प्रयास हालाँकि तनिक संप्रेषणीयता चाहता है, किंतु, यह सतत प्रयास से स्वयं सहज हो जाएगा. </p>
<p></p>
<p>वही खेत भरता तभी ज़िन्दगी है</p>
<p>न कहना भला है यही बन्दगी है! .. इन दोनों पंकितियों में 'है' अधिक वर्ण है.</p>
<p></p>
<p>बहरहाल, आपके सारस्वत-प्रयास पर पुनर्बधाइयाँ.. </p>
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<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी पुनर्सहभागिता का अशेष आभार. </p>
<p>आपकी प्रस्तुति जिस तरह से संभव हो पायी होगी, इसे समझ पा रहा हूँ. </p>
<p></p>
<p>आपका प्रयास हालाँकि तनिक संप्रेषणीयता चाहता है, किंतु, यह सतत प्रयास से स्वयं सहज हो जाएगा. </p>
<p></p>
<p>वही खेत भरता तभी ज़िन्दगी है</p>
<p>न कहना भला है यही बन्दगी है! .. इन दोनों पंकितियों में 'है' अधिक वर्ण है.</p>
<p></p>
<p>बहरहाल, आपके सारस्वत-प्रयास पर पुनर्बधाइयाँ.. </p>
<p></p> आदपणीय अनिल जी, आपने मात्र दो…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10718452021-10-24T18:02:17.397ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदपणीय अनिल जी, आपने मात्र दो छंदों के माध्यम से जिसतह से निर्मल हास्य पैदा किया है वह वस्तुत: रोचक है. मेरी ओर से अशेष बधाइयाँ. </p>
<p></p>
<p><span>सुरक्षित हमारी फसल थी बहुत</span><br/><span>टिकी भी हमारी नज़र थी बहुत .. बस इन्हीं दो पंक्तियों की तुकांतता में वैैधानिक चूक है. जो अनायास हो गया प्रतीत होता है. </span></p>
<p></p>
<p><span>आपकी सहभागिता के लिए आभार</span></p>
<p><span>जय-जय</span></p>
<p>आदपणीय अनिल जी, आपने मात्र दो छंदों के माध्यम से जिसतह से निर्मल हास्य पैदा किया है वह वस्तुत: रोचक है. मेरी ओर से अशेष बधाइयाँ. </p>
<p></p>
<p><span>सुरक्षित हमारी फसल थी बहुत</span><br/><span>टिकी भी हमारी नज़र थी बहुत .. बस इन्हीं दो पंक्तियों की तुकांतता में वैैधानिक चूक है. जो अनायास हो गया प्रतीत होता है. </span></p>
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<p><span>आपकी सहभागिता के लिए आभार</span></p>
<p><span>जय-जय</span></p> आदरणीय दीपांजलि जी,
आपकी संल…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10719412021-10-24T17:56:06.512ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय दीपांजलि जी, </p>
<p>आपकी संलग्नता श्लाघनीय है. मैं आपकी रचनाओं के विन्यास से मुग्ध रहता हूँ. इस हेतु हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, तनिक प्रयास करें तो भाषा की महीनी भी तीक्ष्ण हो जाएगी. </p>
<p></p>
<p style="text-align: left;">किसानों एक गलत संबोधन है. शुद्ध संबोधन होगा, किसानो. </p>
<p style="text-align: left;">संबोधन कारक में अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता. </p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">फिर, आप तो ग़ज़लों की अभ्यासी रही हैं. अरूज भाषा…</p>
<p>आदरणीय दीपांजलि जी, </p>
<p>आपकी संलग्नता श्लाघनीय है. मैं आपकी रचनाओं के विन्यास से मुग्ध रहता हूँ. इस हेतु हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, तनिक प्रयास करें तो भाषा की महीनी भी तीक्ष्ण हो जाएगी. </p>
<p></p>
<p style="text-align: left;">किसानों एक गलत संबोधन है. शुद्ध संबोधन होगा, किसानो. </p>
<p style="text-align: left;">संबोधन कारक में अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता. </p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">फिर, आप तो ग़ज़लों की अभ्यासी रही हैं. अरूज भाषा नहीं सँवारता, विधान और व्याकरण के प्रति सचेत करता है. इस आलोक में प्रथम दो पंक्तियों में सर्वनाम के प्रयोग के प्रति सचेत रहना था. </p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;">बाकी, प्रदत्त चित्र से निस्सृत होती व्यंजना पर ध्यान लगाना था.</p>
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<p style="text-align: left;">बहरहाल, आपके सारस्वत प्रयास तथा रचना-कर्म हेतु बधाइयाँ. ..</p>
<p style="text-align: left;"></p> जी, सही कहा आपने, आदरणीय.
tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10717532021-10-24T17:45:42.991ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>जी, सही कहा आपने, आदरणीय. </p>
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<p>जी, सही कहा आपने, आदरणीय. </p>
<p></p> शुभातिशुभ
tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10718442021-10-24T17:45:04.539ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>शुभातिशुभ </p>
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<p>शुभातिशुभ </p>
<p></p> सचेत रहने की बाध्यता है, निर्…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10716482021-10-24T17:44:28.436ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>सचेत रहने की बाध्यता है, निर्वहन करना होगा, आदरणीय. </p>
<p>जय-जय</p>
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<p>सचेत रहने की बाध्यता है, निर्वहन करना होगा, आदरणीय. </p>
<p>जय-जय</p>
<p></p> आपकी स्पष्टोक्ति एवं मुखर स्व…tag:openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:Comment:10716472021-10-24T17:42:51.436ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपकी स्पष्टोक्ति एवं मुखर स्वीकारोक्ति का सादर धन्यवाद, आदरणीय</p>
<p></p>
<p>आपकी स्पष्टोक्ति एवं मुखर स्वीकारोक्ति का सादर धन्यवाद, आदरणीय</p>
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