"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 132 - Open Books Online2024-03-29T11:28:35Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/132?groupUrl=pop&id=5170231%3ATopic%3A1082514&feed=yes&xn_auth=noनिशा स्वस्ति
शुभातिशुभ
tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10826002022-04-24T18:40:11.393ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>निशा स्वस्ति</p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p>निशा स्वस्ति</p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10825992022-04-24T17:58:18.937Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी। छंदों पर आपकी उपस्तिथि की प्रतीक्षा रहती है।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी। छंदों पर आपकी उपस्तिथि की प्रतीक्षा रहती है।</p> वाह !
आदरणीय अशोक भाईजी, आपक…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10827922022-04-24T17:10:32.360ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह ! </p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुति का अर्थबोध तुष्ट कर देता है. यह अनुकरणीय है. </p>
<p></p>
<p><span>सूरज दादा ने भी आकर, कोरी चादर तानी .. कोरी चादर तानी से आशय स्पष्ट नहीं हो रहा, आदरणीय. </span></p>
<p><span>सूरज दादा ने भी आकर .. इसे सूरज नेभी सर पर आकर किया जा सकता है. सूरज दादा का प्रयोग प्रस्तुति की गहनता को कमतर कर रहा है. </span></p>
<p></p>
<p><span>इस लघु किं</span><span>तु सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>वाह ! </p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुति का अर्थबोध तुष्ट कर देता है. यह अनुकरणीय है. </p>
<p></p>
<p><span>सूरज दादा ने भी आकर, कोरी चादर तानी .. कोरी चादर तानी से आशय स्पष्ट नहीं हो रहा, आदरणीय. </span></p>
<p><span>सूरज दादा ने भी आकर .. इसे सूरज नेभी सर पर आकर किया जा सकता है. सूरज दादा का प्रयोग प्रस्तुति की गहनता को कमतर कर रहा है. </span></p>
<p></p>
<p><span>इस लघु किं</span><span>तु सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. </span></p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
सुनसान है सकल वातायन, गर्…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10827912022-04-24T17:00:40.688ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p> </p>
<p>सुनसान है सकल वातायन, गर्म - गर्म लू बहती । .... सुनसान जैसे शब्द का सार्थक निर्वहन नहीं पाया है अतः लयभंग की दशा बन रही. </p>
<p>खून सोखती काया का वो, सांस धोंकनी चलती ।।... शुद्ध शब्द साँस </p>
<p> </p>
<p>एकाकी परिवेश सुखाता, रक्त बूँद की नाहक । ... एकाकी परिवेश का प्रयोग कुछ स्पष्ट नहीं हुआ आदरणीय. गर्मी का परिवेश सुखाता किसी तौर पर अर्थ-सार्थकता को सशक्त करता है. </p>
<p>कृषकाया जुटी रही खेतों, बन जंगल की शासक ।। ... कृषकायाएँ खटती खेतों .. किंतु ’बन जंगल की शासक’…</p>
<p> </p>
<p>सुनसान है सकल वातायन, गर्म - गर्म लू बहती । .... सुनसान जैसे शब्द का सार्थक निर्वहन नहीं पाया है अतः लयभंग की दशा बन रही. </p>
<p>खून सोखती काया का वो, सांस धोंकनी चलती ।।... शुद्ध शब्द साँस </p>
<p> </p>
<p>एकाकी परिवेश सुखाता, रक्त बूँद की नाहक । ... एकाकी परिवेश का प्रयोग कुछ स्पष्ट नहीं हुआ आदरणीय. गर्मी का परिवेश सुखाता किसी तौर पर अर्थ-सार्थकता को सशक्त करता है. </p>
<p>कृषकाया जुटी रही खेतों, बन जंगल की शासक ।। ... कृषकायाएँ खटती खेतों .. किंतु ’बन जंगल की शासक’ का तात्पर्य पुन्ः मुझे स्पष्ट नहीं हो पारहा, आदरणीय. </p>
<p></p>
<p>फसल पकी है बढ़ते गरमी, बाली गेहूँ की दमकी ।</p>
<p>स्वर्ण बालियाँ पहने बाला, खेतों ज्यौं आ धमकी।। ...... खेतों ंमें आ धमकी... किंतु ’आ धमकना’ का प्रयोग ऐसे में नेष्ट प्रतीत हो रहा है. </p>
<p></p>
<p>कृषक-गृहणी व्यस्त दोपहरी, फसल काटती अपनी । ... कृषक त्रिकल शब्द है आदरणीय. इसके बाद किसी त्रिकल को ही आना उचित है. </p>
<p>सूर्य.. सिर्फ.. धैर्य आजमाता, मटकी शेष न पानी ।। .....</p>
<p></p>
<p>संघर्षों से सीखती लड़ना, भारत की वह नारी। ....... सीखती जैसे शब्द का सार्थक निर्वहन अपेक्षित है. </p>
<p>जान लगा दे तन की सारी, कभी नहीं है हारी ।।</p>
<p></p>
<p>मर्द पड़ा है महुआ पीकर, फिर पत्नि खानदानी। </p>
<p>जिम्मेदारी घर-बच्चों की, वह कृषक - महारानी ।। .. जय-जय </p>
<p></p>
<p>जिजीविषा भरपूर मिली है, संकल्प दृश्य माथे पर ।</p>
<p>ग्रीष्म - गंग ज्यौं हो तन्वंगी, लिखती लेख शिला झर।। ... वाह, सुन्दर भाव ... लेकिन शिला पर है या शिला झर ?</p>
<p></p>
<p>आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना-धर्मिता श्लाघ्य है. यह अवश्य है कि संप्रेषणीयता तथा विधान के अनुरूप वाक्य विन्यास को तुष्ट किया जाना भी रचना-कर्म के अन्योन्याश्रय भाग हैं. इसके प्रति सचेत रहना आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>आयोजन हेतु प्रतिभागिता हेतु सादर बधाइयाँ </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी, …tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10825972022-04-24T16:44:33.367ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी, आपकी प्रतिभागिता से यह आयोजन न केवल तुष्ट हो गया है, मेरे सादर निवेदन का भी मान रह गया है. </p>
<p>आप जैसे समृद्ध छंदकारों की निरंतरता आयोजनों को सुगढ़ करेगी, इसमें कोई संशय नहीं. एक अरसे बाद इस पटल पर आपकी उपस्थिति सुखकर है. स्वागतम् </p>
<p></p>
<p>क्या ही सुन्दर और सार्थक छंद-रचना हुई है. बहुत-बहुत बधाई. </p>
<p>यह अवश्य है कि आपकी प्रस्तुति प्रदत्त चित्र के सौजन्य से किसानों की दशा के बखान का अवसर निकाल ले रही है. किंतु, यह भी आवश्यक है कि जल, ग्रीष्म ऋतु, पके…</p>
<p>आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी, आपकी प्रतिभागिता से यह आयोजन न केवल तुष्ट हो गया है, मेरे सादर निवेदन का भी मान रह गया है. </p>
<p>आप जैसे समृद्ध छंदकारों की निरंतरता आयोजनों को सुगढ़ करेगी, इसमें कोई संशय नहीं. एक अरसे बाद इस पटल पर आपकी उपस्थिति सुखकर है. स्वागतम् </p>
<p></p>
<p>क्या ही सुन्दर और सार्थक छंद-रचना हुई है. बहुत-बहुत बधाई. </p>
<p>यह अवश्य है कि आपकी प्रस्तुति प्रदत्त चित्र के सौजन्य से किसानों की दशा के बखान का अवसर निकाल ले रही है. किंतु, यह भी आवश्यक है कि जल, ग्रीष्म ऋतु, पके खेत और तृषित महिला, इन सब का समुच्चय पूरा बखान पाता. वैसे यह एक सुगढ़ रचनाकर्म का सुन्दर उदाहरण है. </p>
<p></p>
<p><span>पारा पेंतालीस हो रहा, उम्र साठ से ज्यादा ... ,,, वाह वाह वाह .. </span></p>
<p><span>लेकिन, दृढ़ संकल्प इरादा .. इरादा तो है ही दृढ़ संकल्प आदरणीय. </span></p>
<p></p>
<p><span>कृषि नीतियाँ रहीं हैं दोषी .. इस चरण का वाक्य-विन्यास आपसे और-और की अपेक्षा करता है. </span></p>
<p></p>
<p><span>फाँके .... यह शब्द फाके है. जो हिन्दी में अरबी भाषा से आया है और मूलतः फाकः है. तो फिर फाँके या फाँका क्या है ?</span></p>
<p><span>वस्तुतः यह फाँकने की क्रिया का क्रियापद है. :-))))) </span></p>
<p>वैसे देसज स्वरूप में फाँका जैसा शब्द है, जो कहावत में फाँका काटना की तरह प्रयुक्त होता है. किंतु है यह फाका ही. </p>
<p></p>
<p><span>खड़ी हुई मुँह खोले .. खड़ी हुईं मुँह खोलें .. क्योंकि विपदाएँ बहुवचन है, आदरणीय. </span></p>
<p></p>
<p><span>कभी भी ........ कभी की बुनावट वस्तुतः कब+ही है. और, भाषा व्याकरण के अनुसार ही तथा भी एक साथ प्रयुक्त नहीं हो सकते. अतः आम बोलचाल में जो ’कभी भी’ का विपुल प्रयोग किया जाता है, वह सर्वथा अशुद्ध है. अतः नेष्ट है, त्याज्य है.</span></p>
<p></p>
<p><span>कृषक अन्नदाता कहलाकर, सबको पाले पोसे।<br/>किंतु कर्ज़ के बोझ तले अब, है वह रामभरोसे।।,,, वाह वाह वाह .. सार्थक भाव शब्द पा गये हैं </span></p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति पर आपका हार्दिक धन्यवाद तथा हार्दिक बधाइयाँ </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
आदरणीय दयाराम जी, आपके सौजन…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10826812022-04-24T16:14:24.447ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p> </p>
<p>आदरणीय दयाराम जी, आपके सौजन्य से मैं सुधीजनों के साथ सार छंद को लेकर एक आवश्यक तथ्य साझा करना चाहता हूँ. </p>
<p></p>
<p>वस्तुतः सभी छंद दो श्रेणियों के होते हैं, वैदिक और अवैदिक या देसी.</p>
<p>देसी यानी जिनका विकास वैदिक काल में न हो कर इस भूभाग की भाषा जब अवहट्ट या अप्रभंश हो गयी थी तब इनका विकास हुआ है. जैसे दोहा, सोरठा, रोला, सवैया, घनाक्षरी आदिक. ऐसा ही छंद सार छंद है. इन छंदों की मूल भाषा अवश्य ही देसज हुआ करती थी. देसज अर्थात हिन्दी में प्रयुक्त हो रहे शब्दों के पहले के…</p>
<p> </p>
<p>आदरणीय दयाराम जी, आपके सौजन्य से मैं सुधीजनों के साथ सार छंद को लेकर एक आवश्यक तथ्य साझा करना चाहता हूँ. </p>
<p></p>
<p>वस्तुतः सभी छंद दो श्रेणियों के होते हैं, वैदिक और अवैदिक या देसी.</p>
<p>देसी यानी जिनका विकास वैदिक काल में न हो कर इस भूभाग की भाषा जब अवहट्ट या अप्रभंश हो गयी थी तब इनका विकास हुआ है. जैसे दोहा, सोरठा, रोला, सवैया, घनाक्षरी आदिक. ऐसा ही छंद सार छंद है. इन छंदों की मूल भाषा अवश्य ही देसज हुआ करती थी. देसज अर्थात हिन्दी में प्रयुक्त हो रहे शब्दों के पहले के प्रचलित शब्द. यही कारण है कि सवैया आदि छंदों में वर्तमान की हिन्दी के शब्दों का प्रयोग कर रचना-कर्म करना दुष्कर होता है. सार छंद का मूलभूत आचरण देसज ही होता है. ऐसे में कोई रचनाकार चाहे तो अपनी रचना का पूरा स्वर देसज रख सकता है. ऐसे में अमृत जैसे शब्द अमरित की तरह प्रयुक्त हो सकते हैं. परन्तु यह अवश्य ध्यान रहे कि रचना का शाब्दिक स्वर देसज हो. </p>
<p></p>
<p>ऐसे में, इस छंद को देखिए कैसे हो जाएगा --</p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, अनुपम धन है पानी,<br/>सरदी गरमी हर मौसम में, जीवन मांगे पानी।</span></p>
<p></p>
<p>आपकी प्रतिभागिता तथा रचनाकर्म के लिए हार्दिक धन्यवाद और बधाइयाँ </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> क्या बात है, क्या बात है !
आ…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10826802022-04-24T15:57:18.970ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>क्या बात है, क्या बात है ! </p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी, आपका रचना-कर्म प्रभावी ही नहीं, प्रेरक भी है. आपने प्रदत्त चित्र के सौजन्य से भारतीय कृषक-नारियों और श्रमजीवियों की दशा का सार्थक बखान कर दिया है. यह गीत अपनी प्रच्छन्न इकाई रखता है. </p>
<p></p>
<p><span>देख तली भर पानी मटकी, हुई शर्म से पानी .. इस पंक्ति के विन्यास पर मुझे एक पुराने अति प्रसिद्ध गीत का स्मरण हो आया. जल जो न होता तो ये जग जाता जल.. </span></p>
<p><span>बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया है आपने. </span></p>
<p></p>
<p>ऐसे ही हर…</p>
<p>क्या बात है, क्या बात है ! </p>
<p>आदरणीया प्रतिभाजी, आपका रचना-कर्म प्रभावी ही नहीं, प्रेरक भी है. आपने प्रदत्त चित्र के सौजन्य से भारतीय कृषक-नारियों और श्रमजीवियों की दशा का सार्थक बखान कर दिया है. यह गीत अपनी प्रच्छन्न इकाई रखता है. </p>
<p></p>
<p><span>देख तली भर पानी मटकी, हुई शर्म से पानी .. इस पंक्ति के विन्यास पर मुझे एक पुराने अति प्रसिद्ध गीत का स्मरण हो आया. जल जो न होता तो ये जग जाता जल.. </span></p>
<p><span>बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया है आपने. </span></p>
<p></p>
<p>ऐसे ही हर दिन उछलेगा।</p>
<p>गर्मी का ये पारा।।</p>
<p>पेड़ कटाई और प्रदूषण।</p>
<p>ने धरती को मारा।।</p>
<p>अभी जाग जाओ कहते हैं, ज्ञानी और विज्ञानी .. .. इस अंतरे ने इस रचना को ऊँचाइयाँ दी हैं. और को औ’ की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है ताकि द्विकल की आवश्यकता पूर्ण हो सके.</p>
<p></p>
<p>सुगढ़ रचना-कर्म का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर आपने आयोजन को सार्थकता दी है. </p>
<p></p>
<p>हार्दिक धन्यवाद तथा बधाइयाँ </p>
<p>शुभ-शुभ</p> छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम क…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10825962022-04-24T15:48:08.426ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम की है माया|</span></p>
<p><span>वैशाख जेठ की गर्मी में, झुलस रही है काया || ... चैत-जेठ की गर्मी मेंं अब.. आगे, आपके निवेदन के अनुसार चौथा चरण ’झुलस रही है काया’ कर दिया गया. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, निर्धन की लाचारी|</span></p>
<p><span>घर बाहर दिन भर खटती है, गरीब घर की नारी|| .. गरीब जैसे जगणात्मक शब्द का सार्थक निर्वहन नहीं हो पाया है. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, सूर्य आग…</span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम की है माया|</span></p>
<p><span>वैशाख जेठ की गर्मी में, झुलस रही है काया || ... चैत-जेठ की गर्मी मेंं अब.. आगे, आपके निवेदन के अनुसार चौथा चरण ’झुलस रही है काया’ कर दिया गया. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, निर्धन की लाचारी|</span></p>
<p><span>घर बाहर दिन भर खटती है, गरीब घर की नारी|| .. गरीब जैसे जगणात्मक शब्द का सार्थक निर्वहन नहीं हो पाया है. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, सूर्य आग बरसाया|</span></p>
<p><span>भाग्य में नहीं लस्सी शरबत, पानी प्यास बुझाया||.. पुनः, तृतीय चरण में त्रिकल के बाद त्रिकल के मूलभूत नियम का निर्वहन नहीं हो पाया है. दूसरे, बरसाया और बुझाया की तुकान्तता को बरसाता, बुझाता कर दिया जाता. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, श्रम का फल खुशहाली|</span></p>
<p><span>खेत खलिहान घर में दिनभर, जूझ रही घरवाली|| ... खेतों खलिहानों ंमें दिनभर .. </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, छाई है हरियाली|</span></p>
<p><span>पशुओं से बचाने के लिये, आठ पहर रखवाली|| ... पशुओं से बचाने के लिये .. ये क्याऽऽऽऽ है ? </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>छन्न पकैया छन्न पकैया, बड़ी चीज है मटकी|</span></p>
<p><span>गगरी जग मग डोंगा बाल्टी, और फ्रीज है मटकी|| .. बाल्टी को बल्टी कर लें. बाल्टी के लिए यह देसज शब्द पद्यों में मान्य हो जाएगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपके पद्य-प्रयास के लिए बधाइयाँ. आयोजन के लिए रचनाएं तीन-चार दिन पूर्व समाप्त कर इसे दुहरा-तिहरा लें. ऐसी कई अशुद्धियों का स्वतः निराकरण हो जाएगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>शुभातिशुभ</span></p>
<p><span> </span></p> आदरणीय अशोक भाईजी
छोटी किन्त…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10828682022-04-24T14:23:46.555Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अशोक भाईजी </p>
<p>छोटी किन्तु बड़ी ही सुन्दर और सार्थक रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार कीजिए |</p>
<p>आदरणीय अशोक भाईजी </p>
<p>छोटी किन्तु बड़ी ही सुन्दर और सार्थक रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार कीजिए |</p> आदरणीय लक्ष्मण भाई
प्रशंसा के…tag:openbooksonline.com,2022-04-24:5170231:Comment:10826792022-04-24T14:16:06.910Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई</p>
<p><span>प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार | </span></p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई</p>
<p><span>प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार | </span></p>