"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 138 - Open Books Online2024-03-29T07:25:32Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/138?commentId=5170231%3AComment%3A1092438&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय अमीरुद्दीन अमीरजी
हार्…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10921512022-10-23T17:41:17.918Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीरजी</p>
<p>हार्दिक बधाई स्वीकार करें </p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीरजी</p>
<p>हार्दिक बधाई स्वीकार करें </p> सादर धन्यवाद, आदरणीय.
tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10923552022-10-23T17:39:10.160ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>सादर धन्यवाद, आदरणीय.</p>
<p></p>
<p>सादर धन्यवाद, आदरणीय.</p>
<p></p> अवश्य ही पहले वाली पंक्ति विन…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10923542022-10-23T17:37:35.321ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>अवश्य ही पहले वाली पंक्ति विन्यास में थी.</p>
<p>सादर</p>
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<p>अवश्य ही पहले वाली पंक्ति विन्यास में थी.</p>
<p>सादर</p>
<p></p> संशय.. :-)))
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tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10924532022-10-23T17:35:04.454ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p> संशय.. :-))) </p>
<p><span style="text-decoration: underline;">_/\_</span></p>
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<p> संशय.. :-))) </p>
<p><span style="text-decoration: underline;">_/\_</span></p>
<p></p> आदरणीय सौरभ पांडेय जी, अपाकी…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10923532022-10-23T17:34:09.365ZDayaram Methanihttp://openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p></p>
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी, अपाकी प्रशंसा से प्रोत्साहन मिला। इस हेतु हार्दिक आभार। अभ्यास में कमी है इस कमी को दूर करने का प्रयास करूंगा। सादर।</p>
<p></p>
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी, अपाकी प्रशंसा से प्रोत्साहन मिला। इस हेतु हार्दिक आभार। अभ्यास में कमी है इस कमी को दूर करने का प्रयास करूंगा। सादर।</p> आदरणीय सौरभ भाईजी
उत्साहवर्ध…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10924522022-10-23T17:28:38.176Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p>आदरणीय सौरभ भाईजी </p>
<p>उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</p>
<p>महल के उच्चारण का विच्छेद कर समझाने के बाद सब कुछ स्पष्ट हो गया । </p>
<p><span>इस पंक्ति में था का प्रयोग कर पहले लिखा था... <strong> झोपड़ी से था महल तक दीप का ही दायरा॥ ..... </strong>यह सही होता </span></p>
<p><span>पुनः धन्यवाद आपका एवं आदरणीय लक्ष्मण् जी का ।</span></p>
<p><span>सादर </span></p>
<p>आदरणीय सौरभ भाईजी </p>
<p>उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।</p>
<p>महल के उच्चारण का विच्छेद कर समझाने के बाद सब कुछ स्पष्ट हो गया । </p>
<p><span>इस पंक्ति में था का प्रयोग कर पहले लिखा था... <strong> झोपड़ी से था महल तक दीप का ही दायरा॥ ..... </strong>यह सही होता </span></p>
<p><span>पुनः धन्यवाद आपका एवं आदरणीय लक्ष्मण् जी का ।</span></p>
<p><span>सादर </span></p> आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी, आप…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10922672022-10-23T16:42:45.122ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी, आपकी उपस्थिति एवं प्रस्तुति का हार्दिक स्वागत है. </p>
<p>अवश्य ही, बहरे रमल मुसमन महसूस इस छंद की प्रतिकृति है. अत:, बहर की बिना पर रचनाकर्म करने वालों के लिए रचना-प्रयास सरल प्रतीत होगा. </p>
<p>एक तथ्य स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय. आपकी पंक्तियों में कई वर्ण बोल्ड किये गये हैं, इसका आशय क्या है? </p>
<p>आपके प्रयास पर पुन: बधाइयाँ.</p>
<p>जय-जय</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी, आपकी उपस्थिति एवं प्रस्तुति का हार्दिक स्वागत है. </p>
<p>अवश्य ही, बहरे रमल मुसमन महसूस इस छंद की प्रतिकृति है. अत:, बहर की बिना पर रचनाकर्म करने वालों के लिए रचना-प्रयास सरल प्रतीत होगा. </p>
<p>एक तथ्य स्पष्ट नहीं हुआ, आदरणीय. आपकी पंक्तियों में कई वर्ण बोल्ड किये गये हैं, इसका आशय क्या है? </p>
<p>आपके प्रयास पर पुन: बधाइयाँ.</p>
<p>जय-जय</p> आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10924512022-10-23T16:38:28.815Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। </p>
<p>मानसों , मानस का ही बहुवचन है । सादर..</p>
<p>आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। </p>
<p>मानसों , मानस का ही बहुवचन है । सादर..</p> आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10924492022-10-23T16:32:28.990Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। चित्र को सार्थक करते सुनदर छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। चित्र को सार्थक करते सुनदर छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी,…tag:openbooksonline.com,2022-10-23:5170231:Comment:10921492022-10-23T16:31:31.305ZDayaram Methanihttp://openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
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<p>आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी, सुंदर भाव के छंद सृजन हेतु बधाई। नफरतें शब्द को आपने 212 पर लिया है यह मेरे हिसाब से 122 होता है। विशेष जैसा विद्वान यदि टिप्पणी करे तो देखियेगा। सादर।</p>
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<p>आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी, सुंदर भाव के छंद सृजन हेतु बधाई। नफरतें शब्द को आपने 212 पर लिया है यह मेरे हिसाब से 122 होता है। विशेष जैसा विद्वान यदि टिप्पणी करे तो देखियेगा। सादर।</p>
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