आदरणीय मित्रों !
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! इस प्रतियोगिता से सम्बंधित आज के इस चित्र में आधुनिक महानगर के मध्य यह मनभावन प्राकृतिक दृश्य दिखाई दे रहा है जिसमें प्रदर्शित किये गए पक्षियों में खासतौर से मयूर का सौन्दर्य उल्लेखनीय लगता है जिसकी यहाँ पर उपस्थिति मात्र से ही इस स्थान की ख़ूबसूरती कई गुना बढ़ गयी है और तो और यह जब नृत्य करता है तो इसके नृत्य की अदभुत छटा देखते ही बनती है | काश! हम भी अपने-अपने स्थान को भी इसी तरह हरा-भरा बना पाते तो ऐसे विहंगम दृश्य हर जगह देखने को मिलते और हमारी यह धरती निश्चय ही स्वर्ग बन जाती .........तब हमारे सामने ना तो पानी की कमी की कोई भी समस्या होती और न ही इन पक्षियों के लिए उपयुक्त निवास स्थान की कोई कमी ....... हम साहित्यकारों के लिए मयूर या मोर का स्थान तो और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अधिकतर कवियों नें श्रृंगार रस की कविताओं में अक्सर इसका उल्लेख किया है |
आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम .........और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ........क्योंकि........अब तो....मन अधीर हो रहा विहंग की तरह ........:)
नोट :-
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(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी |
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तपिश भरी
उजली दोपहरी
जलाए तन ।
कूके कोयल
घनी रे अमराई
उठाए हूक ।
छाएँ बादल
भरे उल्लास मन
होवें मगन ।
काले श्याम सी
घिर आए रे घटा
झूमे गगन ।
बरसें बूँदें
भींजे डार से डार
पात से पात ।
गा उठें पंछी
जब बरसे मेघ
नाचे रे मोर ।
भीगे धरती
भरती हरियाली
हँसें चमन ।
****सुन्दर, बहुत सुन्दर नीलम जी ***********
//तपिश भरी
उजली दोपहरी
जलाए तन ।//
सच कहा आपने ! बरसात की तेज धूप असहनीय तो होती ही है .............
//कूके कोयल
घनी रे अमराई
उठाए हूक ।//
आज के मौसम के माहौल में यह बात भी सत्य है |
//छाएँ बादल
भरे उल्लास मन
होवें मगन ।//
बहुत खूब ........
//काले श्याम सी
घिर आए रे घटा
झूमे गगन ।//
बहुत खूबसूरत .....इसमें "श्याम" शब्द के प्रयोग से ...आनंद आ गया
//बरसें बूँदें
भींजे डार से डार
पात से पात ।//
आ हा हा! क्या खूबसूरत चित्र खीचा है आपने ........
//गा उठें पंछी
जब बरसे मेघ
नाचे रे मोर ।//
क्या बात है ....होता तो ऐसा ही है ....परन्तु चित्र का मोर नृत्य मुद्रा में तो नहीं लगता ...........
//भीगे धरती
भरती हरियाली
हँसें चमन ।//
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ......आपको हृदय से बधाई नीलम जी ! ..............वाकई चमन अब बिहँस उठा है ................:))
एक तुच्छ प्रयास है जो आप गुणीजनों के आगे कहीं नहीं ठहरता । फिर भी आप की सराहना से धन्य हो गई हूँ । बहुत-बहुत आभार ।
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