"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 73 - Open Books Online2024-03-29T11:31:36Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/73?groupUrl=pop&id=5170231%3ATopic%3A856716&feed=yes&xn_auth=noआयोजन में सहभागिता के लिए सुध…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8579582017-05-20T18:25:03.788ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आयोजन में सहभागिता के लिए सुधीजनों का हृदयतल से आभार</p>
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<p>आयोजन में सहभागिता के लिए सुधीजनों का हृदयतल से आभार</p>
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<p></p> जय-जय .. शुभरात्रि भाई साहब
tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8579032017-05-20T18:18:34.104ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>जय-जय .. शुभरात्रि भाई साहब </p>
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<p>जय-जय .. शुभरात्रि भाई साहब </p>
<p></p> जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8581132017-05-20T18:08:59.324ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,छन्द आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ,सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।<br />
शब ब ख़ैर ।
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,छन्द आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ,सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।<br />
शब ब ख़ैर । आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी प्…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8580322017-05-20T17:57:04.234ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी प्रस्तुति का आना और संवाद बनाते हुए प्रदत्त चित्र के सापेक्ष अपनी बातें करना यह साफ़ बताता हुआ है कि आप ग़ज़लकार हैं .. :-)))</p>
<p>बहुत उम्दा .. बहुत ही उम्दा छंद हुए हैं. </p>
<p></p>
<p><span>चाँद निकल आया है सर पर,फिर भी समझ न आई ।</span><br></br><span>लगता है पहले भी तूने,मार बहुत है खाई ।। .................... हा हा हा हा............. जिनके सिर चाँद है, या होने को है, उनको अग़ाह करता बंद !.. :-))))</span></p>
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<p><span>हार्दिक शुभकामनाएँ और अशेष बधाइयाँ…</span></p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी प्रस्तुति का आना और संवाद बनाते हुए प्रदत्त चित्र के सापेक्ष अपनी बातें करना यह साफ़ बताता हुआ है कि आप ग़ज़लकार हैं .. :-)))</p>
<p>बहुत उम्दा .. बहुत ही उम्दा छंद हुए हैं. </p>
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<p><span>चाँद निकल आया है सर पर,फिर भी समझ न आई ।</span><br/><span>लगता है पहले भी तूने,मार बहुत है खाई ।। .................... हा हा हा हा............. जिनके सिर चाँद है, या होने को है, उनको अग़ाह करता बंद !.. :-))))</span></p>
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<p><span>हार्दिक शुभकामनाएँ और अशेष बधाइयाँ आदरणीय. </span></p>
<p><span>शुभ-शुभ</span></p>
<p></p> आदरणीय अशोक भाई, आपकी छांदसिक…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8580312017-05-20T17:50:18.171ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अशोक भाई, आपकी छांदसिक समझ का भी ज़वाब नहीं है. प्रदत्त चित्र को आपने जिस कौशल से अर्थ दिया है वह विमुग्ध करता है. पहली कुण्डलिया शिल्प के तौर पर् भी कमाल करती हुई है. इसके लिए आप बार-बार बधाई के हक़दार हैं. दूसरी कुण्डलिया में आपने दायित्वबोध से पाठकों को परिचित कराया है. यह आपकी उन्नत और गहरी सोच का परिचायक है. </p>
<p></p>
<p>सार छंद भी कमाल का हुआ है. आपने इसके माद्यम से कथा बुनी है वह आयोजन के नव-प्रतिभागियों के लिए उदाहरण है. कि, आउट ऑफ़ बॉक्स कैसे सोचा जाता है. बधाई-बधाई-बधाई…</p>
<p>आदरणीय अशोक भाई, आपकी छांदसिक समझ का भी ज़वाब नहीं है. प्रदत्त चित्र को आपने जिस कौशल से अर्थ दिया है वह विमुग्ध करता है. पहली कुण्डलिया शिल्प के तौर पर् भी कमाल करती हुई है. इसके लिए आप बार-बार बधाई के हक़दार हैं. दूसरी कुण्डलिया में आपने दायित्वबोध से पाठकों को परिचित कराया है. यह आपकी उन्नत और गहरी सोच का परिचायक है. </p>
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<p>सार छंद भी कमाल का हुआ है. आपने इसके माद्यम से कथा बुनी है वह आयोजन के नव-प्रतिभागियों के लिए उदाहरण है. कि, आउट ऑफ़ बॉक्स कैसे सोचा जाता है. बधाई-बधाई-बधाई ........</p>
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<p><span>बात-बात पर पूरे रस्ते , देते आया गाली... इसमें देता आया गाली .. करना श्रेयस्कर होगा, आदरणीय </span></p>
<p><span>पुनः इस उन्नत और सुगढ़ प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बार-बार शुभकामनाएँ निकल रही हैं </span></p>
<p><span>सादर</span></p>
<p></p> आदरणीय सतविन्दर जी, आपकी दूसर…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8580302017-05-20T17:42:27.316ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय सतविन्दर जी, आपकी दूसरी प्रस्तुति भी चित्र को सहज ढंग से परिभाषित कर रही है. इस् हेतु हार्दिक बधाई. </p>
<p></p>
<p>वैसे मैं पहली पंक्ति के पहले चरण से संतुष्ट नहीं हो पारहा हूँ .. </p>
<p><span>यदि सड़क छाप रही सोच तो ... इसे सड़क छाप जो सोच रही तो .. किया जाय तो गेयता और विधान दोनों संतुष्ट ह्ते दिख रहे हैं. </span></p>
<p><span>इसी तरह रुकने वाली नहीं नार ब को लेकर भी आदरणीय अशोक भाई ने उचित सलाह दी है. </span></p>
<p><span>शुभ-शुभ</span></p>
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<p>आदरणीय सतविन्दर जी, आपकी दूसरी प्रस्तुति भी चित्र को सहज ढंग से परिभाषित कर रही है. इस् हेतु हार्दिक बधाई. </p>
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<p>वैसे मैं पहली पंक्ति के पहले चरण से संतुष्ट नहीं हो पारहा हूँ .. </p>
<p><span>यदि सड़क छाप रही सोच तो ... इसे सड़क छाप जो सोच रही तो .. किया जाय तो गेयता और विधान दोनों संतुष्ट ह्ते दिख रहे हैं. </span></p>
<p><span>इसी तरह रुकने वाली नहीं नार ब को लेकर भी आदरणीय अशोक भाई ने उचित सलाह दी है. </span></p>
<p><span>शुभ-शुभ</span></p>
<p></p> जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,स…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8580292017-05-20T17:31:17.160ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,सारछन्द की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,सारछन्द की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद । जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब,सार…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8581112017-05-20T17:29:39.563ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब,सारछन्द आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ,सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब,सारछन्द आपको पसंद आये लिखना सार्थक हुआ,सराहना और उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आदरनीय समर भाई , प्रदत्त चित्…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8580282017-05-20T17:20:27.070Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरनीय समर भाई , प्रदत्त चित्र के अनुरूप सार छंद रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>आदरनीय समर भाई , प्रदत्त चित्र के अनुरूप सार छंद रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p> आदरणीय अशोक भाई , क्या बात है…tag:openbooksonline.com,2017-05-20:5170231:Comment:8579572017-05-20T17:19:12.333Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय अशोक भाई , क्या बात है ...कुन्डलिया और सार छंद चित्र के अनुरूप और बहुत मजेदार रचे हैं आपने , पढ के मज़ा आ गया ... हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>
<p>आदरणीय अशोक भाई , क्या बात है ...कुन्डलिया और सार छंद चित्र के अनुरूप और बहुत मजेदार रचे हैं आपने , पढ के मज़ा आ गया ... हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।</p>