"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 78 - Open Books Online2024-03-28T21:59:17Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/78?commentId=5170231%3AComment%3A890883&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noसभी सुधीजनों को दीपावली त्यौह…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8911622017-10-21T18:29:16.804ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>सभी सुधीजनों को दीपावली त्यौहार के दौरान आयोजन को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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<p>सभी सुधीजनों को दीपावली त्यौहार के दौरान आयोजन को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> प्रदत्त छंद पर अति सुन्दर गीत…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8913212017-10-21T18:28:27.380Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>प्रदत्त छंद पर अति सुन्दर गीत .... बधाई आदरणीय</p>
<p>प्रदत्त छंद पर अति सुन्दर गीत .... बधाई आदरणीय</p> एक अकेले होकर भी अब, रहते जग…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8913192017-10-21T18:27:59.192ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><span>एक अकेले होकर भी अब, रहते जग के साथ ।</span><br/><span>शब्दों से अब शब्द मिले हैं, मिले न चाहे हाथ ................ वाह वाह .. बहुत खूब ! </span></p>
<p></p>
<p><span>आदरणीय रमेश भाई, आपकी प्रस्तुति से आयोजन समृद्ध हुआ. यह अवश्य है कि शिल्पगत सचेतपन अवश्य बना रहे. आदरणीय अशोक भाईजी के सुझाव पर ध्यान दीजिएगा. </span></p>
<p></p>
<p><span>हार्दिक शुभकामनाएँ </span></p>
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<p><span>एक अकेले होकर भी अब, रहते जग के साथ ।</span><br/><span>शब्दों से अब शब्द मिले हैं, मिले न चाहे हाथ ................ वाह वाह .. बहुत खूब ! </span></p>
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<p><span>आदरणीय रमेश भाई, आपकी प्रस्तुति से आयोजन समृद्ध हुआ. यह अवश्य है कि शिल्पगत सचेतपन अवश्य बना रहे. आदरणीय अशोक भाईजी के सुझाव पर ध्यान दीजिएगा. </span></p>
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<p><span>हार्दिक शुभकामनाएँ </span></p>
<p></p> आदरणीय सत्यनारायण भाई जी, आपक…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8911612017-10-21T18:24:51.798ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय सत्यनारायण भाई जी, आपकी प्रस्तुति से आपका प्रयास स्पष्ट दीख रहा है. वैसे सरसी और सार छंद में घालमेल होते-होतेरह गया लगता है. ऐसा मुझे प्रतीत हुआ है. बाकी, रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ . शुभ-शुभ</p>
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<p>आदरणीय सत्यनारायण भाई जी, आपकी प्रस्तुति से आपका प्रयास स्पष्ट दीख रहा है. वैसे सरसी और सार छंद में घालमेल होते-होतेरह गया लगता है. ऐसा मुझे प्रतीत हुआ है. बाकी, रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ . शुभ-शुभ</p>
<p></p> सुन्दर रचना के लिये बधाई आदरण…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8910902017-10-21T18:24:23.719Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>सुन्दर रचना के लिये बधाई आदरणीय सतविंद्र जी </p>
<p>सुन्दर रचना के लिये बधाई आदरणीय सतविंद्र जी </p> कुछ भी नहीं अछूता उससे , करती…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8911602017-10-21T18:16:54.467Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>कुछ भी नहीं अछूता उससे , करती है हर काम <br/> वाह .. वाह ... चित्र पर उत्तम सृजन ... बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी</p>
<p>कुछ भी नहीं अछूता उससे , करती है हर काम <br/> वाह .. वाह ... चित्र पर उत्तम सृजन ... बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी</p> आदरणीय सतविंदर भाई, कथ्य से स…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8910892017-10-21T18:15:57.519ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय सतविंदर भाई, कथ्य से समृद्ध रचना शिल्प की कसौटी पर और समय और स्पष्टता की मांग करती हुई दिख रही है. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
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<p>आदरणीय सतविंदर भाई, कथ्य से समृद्ध रचना शिल्प की कसौटी पर और समय और स्पष्टता की मांग करती हुई दिख रही है. </p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा जी .…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8913182017-10-21T18:12:36.105Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा जी .... नमन ।</p>
<p>शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा जी .... नमन ।</p> आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से ब…tag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8912322017-10-21T18:11:24.260Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से बल मिला है आदरणीय अशोक जी .... सादर नमन</p>
<p>आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से बल मिला है आदरणीय अशोक जी .... सादर नमन</p> नमन आदरणीयtag:openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8912312017-10-21T18:09:20.721Zsatish mapatpurihttp://openbooksonline.com/profile/satishmapatpuri
<p>नमन आदरणीय</p>
<p>नमन आदरणीय</p>