"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 89 - Open Books Online2024-03-28T20:52:49Zhttp://openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/89?commentId=5170231%3AComment%3A949660&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noरचना पर ग़ौर फ़रमाकर इस्लाह हेत…tag:openbooksonline.com,2018-09-24:5170231:Comment:9498952018-09-24T00:32:08.129ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>रचना पर ग़ौर फ़रमाकर इस्लाह हेतु हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहिब।</p>
<p>रचना पर ग़ौर फ़रमाकर इस्लाह हेतु हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहिब।</p> जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आद…tag:openbooksonline.com,2018-09-24:5170231:Comment:9500282018-09-24T00:31:41.662ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,आपकी ये प्रस्तुति भी बहुत ख़ूब हुई,शक्तिछन्द भी चित्र को परिभाषित करने में अपना जवाब नहीं रखते,वाह वाह, इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नदी से गुजरती हुई दीन इक |</p>
<p>तड़पती हुई सी लगे मीन इक ।।</p>
<p>मुझे याद है कि एक आयोजन में मैंने अपने एक छन्द में 'इक' शब्द इस्तेमाल किया था,जिस पर आपने ऐतिराज़ किया था,आज आपको 'इक'शब्द का इस्तेमाल करते देख बहुत अच्छा लगा :-))))</p>
<p>जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,आपकी ये प्रस्तुति भी बहुत ख़ूब हुई,शक्तिछन्द भी चित्र को परिभाषित करने में अपना जवाब नहीं रखते,वाह वाह, इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p>नदी से गुजरती हुई दीन इक |</p>
<p>तड़पती हुई सी लगे मीन इक ।।</p>
<p>मुझे याद है कि एक आयोजन में मैंने अपने एक छन्द में 'इक' शब्द इस्तेमाल किया था,जिस पर आपने ऐतिराज़ किया था,आज आपको 'इक'शब्द का इस्तेमाल करते देख बहुत अच्छा लगा :-))))</p> जी, मुझे भी ऐसा अहसास होता है…tag:openbooksonline.com,2018-09-24:5170231:Comment:9501222018-09-24T00:13:37.888ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>जी, मुझे भी ऐसा अहसास होता है इस मंच पर विचरण-अध्ययन करते हुए। पिछले वर्ष विश्व पुस्तक मेले से एक छंद आधारित व एक ग़ज़ल विधा पर पुस्तक खरीद लाया था। लेकिन अभी अध्ययन शुरू नहीं हो सका। लेकिन नीयत तो हो चुकी है। हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब।</p>
<p>जी, मुझे भी ऐसा अहसास होता है इस मंच पर विचरण-अध्ययन करते हुए। पिछले वर्ष विश्व पुस्तक मेले से एक छंद आधारित व एक ग़ज़ल विधा पर पुस्तक खरीद लाया था। लेकिन अभी अध्ययन शुरू नहीं हो सका। लेकिन नीयत तो हो चुकी है। हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब।</p> अनुभव साझा करने और समय देने क…tag:openbooksonline.com,2018-09-24:5170231:Comment:9500272018-09-24T00:09:05.812ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>अनुभव साझा करने और समय देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहिब।। अपना और अधिक छंद अभ्यास अभी नहीं कर पा रहा हूँ। स्कूल जाना है। सादर।</p>
<p>अनुभव साझा करने और समय देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहिब।। अपना और अधिक छंद अभ्यास अभी नहीं कर पा रहा हूँ। स्कूल जाना है। सादर।</p> महिला सरोकार /विमर्श, सामाजिक…tag:openbooksonline.com,2018-09-24:5170231:Comment:9499762018-09-24T00:04:06.585ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>महिला<span style="text-decoration: underline;"> </span>सरोकार /विमर्श, सामाजिक सरोकार की चित्राधारित बेहतरीन गेय शक्ति छंद-रचना के लिए हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब।</p>
<p>महिला<span style="text-decoration: underline;"> </span>सरोकार /विमर्श, सामाजिक सरोकार की चित्राधारित बेहतरीन गेय शक्ति छंद-रचना के लिए हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब।</p> शक्ति छंद.
खिली धूप है और य…tag:openbooksonline.com,2018-09-23:5170231:Comment:9500262018-09-23T19:22:38.807ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>शक्ति छंद.</p>
<p> </p>
<p>खिली धूप है और ये हाल है |</p>
<p>चढ़ा मातु के शीश इक लाल है ||</p>
<p>दिखे एक मजबूर क्या-क्या सहे |</p>
<p>दिया चित्र सारी कहानी कहे ||</p>
<p> </p>
<p>नदी से गुजरती हुई दीन इक |</p>
<p>तड़पती हुई सी लगे मीन इक ||</p>
<p>रखे शीश पर सुत हुई बावली |</p>
<p>बिना शब्द पीड़ा सुनाती चली ||</p>
<p> </p>
<p>न बैठे रहो तुम न सिर ही धुनो |</p>
<p>यही बीसवीं है सदी तो सुनो ||</p>
<p>जगाओ मचा शोर सरकार को |</p>
<p>न छोडो किसी भी ख़तावार को…</p>
<p>शक्ति छंद.</p>
<p> </p>
<p>खिली धूप है और ये हाल है |</p>
<p>चढ़ा मातु के शीश इक लाल है ||</p>
<p>दिखे एक मजबूर क्या-क्या सहे |</p>
<p>दिया चित्र सारी कहानी कहे ||</p>
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<p>नदी से गुजरती हुई दीन इक |</p>
<p>तड़पती हुई सी लगे मीन इक ||</p>
<p>रखे शीश पर सुत हुई बावली |</p>
<p>बिना शब्द पीड़ा सुनाती चली ||</p>
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<p>न बैठे रहो तुम न सिर ही धुनो |</p>
<p>यही बीसवीं है सदी तो सुनो ||</p>
<p>जगाओ मचा शोर सरकार को |</p>
<p>न छोडो किसी भी ख़तावार को ||</p>
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<p>मौलिक/अप्रकाशित.</p>
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<p> </p> बहुत खूब, आदरणीय अशोक भाई जी.…tag:openbooksonline.com,2018-09-23:5170231:Comment:9499712018-09-23T19:02:53.815ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>बहुत खूब, आदरणीय अशोक भाई जी. वस्तुतः, वर्णिक छंदों और मात्रिक छंदों के बीच भाषा की वाचिक परम्परा भी अपनी महती भूमिका निभाती है. सवैया ही नहीं कोई छंद जो वर्णिक हो और गणॊं के विशेष समुच्चय की आवृति हो तो गणों के हिसाब से शब्दों का उच्चारण होता है. </p>
<p></p>
<p>निवेदन है, आदरणीय गंगाधर शर्माजी, आप निम्नलिखित लिंक पर सवैया में तथाकथित छूट का कारण समझ लेंगे. …</p>
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<p>बहुत खूब, आदरणीय अशोक भाई जी. वस्तुतः, वर्णिक छंदों और मात्रिक छंदों के बीच भाषा की वाचिक परम्परा भी अपनी महती भूमिका निभाती है. सवैया ही नहीं कोई छंद जो वर्णिक हो और गणॊं के विशेष समुच्चय की आवृति हो तो गणों के हिसाब से शब्दों का उच्चारण होता है. </p>
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<p>निवेदन है, आदरणीय गंगाधर शर्माजी, आप निम्नलिखित लिंक पर सवैया में तथाकथित छूट का कारण समझ लेंगे. </p>
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<p><a href="http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:Topic:295029" target="_blank" rel="noopener">http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...</a></p>
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<p>सादर</p> ध्यान आकृष्ट कराने और इस्लाह…tag:openbooksonline.com,2018-09-23:5170231:Comment:9498912018-09-23T18:59:32.400ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>ध्यान आकृष्ट कराने और इस्लाह हेतु हार्दिक आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब।</p>
<p>ध्यान आकृष्ट कराने और इस्लाह हेतु हार्दिक आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब।</p> इसे कहते हैं सम्पर्क का उत्सा…tag:openbooksonline.com,2018-09-23:5170231:Comment:9500252018-09-23T18:51:30.373ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>इसे कहते हैं सम्पर्क का उत्साह और मनन-मंथन. इस प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी. </p>
<p>आप अभ्यासरत रहें, आप अवश्य छंदों पर भी किसी सिद्धहस्त की तरह काम करने लगेंगे. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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<p>इसे कहते हैं सम्पर्क का उत्साह और मनन-मंथन. इस प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी. </p>
<p>आप अभ्यासरत रहें, आप अवश्य छंदों पर भी किसी सिद्धहस्त की तरह काम करने लगेंगे. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> आदरणीय शेख शजज़ाद उस्मानी भाई,…tag:openbooksonline.com,2018-09-23:5170231:Comment:9501202018-09-23T18:46:52.745ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय शेख शजज़ाद उस्मानी भाई, वस्तुतः मैं शुक्रवार की शाम अपने घर वापस आया ही था सुबह पौने तीन बजे के करीब. यानी बारह बजे का समय पार हो गया था. और आयोजन को समय पर खोल ही नहीं पाया था. इसी एवज़ में आयोजन को अभी समय दे रहा हूँ . आप टिप्पणी देने या रचनाकर्म के लिए इस समय का भरपूर उपयोग कर सकते हैं> </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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<p>आदरणीय शेख शजज़ाद उस्मानी भाई, वस्तुतः मैं शुक्रवार की शाम अपने घर वापस आया ही था सुबह पौने तीन बजे के करीब. यानी बारह बजे का समय पार हो गया था. और आयोजन को समय पर खोल ही नहीं पाया था. इसी एवज़ में आयोजन को अभी समय दे रहा हूँ . आप टिप्पणी देने या रचनाकर्म के लिए इस समय का भरपूर उपयोग कर सकते हैं> </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
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