नमस्कार आदरणीय मित्रों !
आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! हमारे त्यौहार हम सभी में आपसी मेलजोल व भाई-चारा तो बढ़ाते ही हैं साथ ही साथ किसी न किसी सार्थक उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त हमें प्रेरित भी करते हैं ! केवल यही नहीं वरन् हम सभी अपने-अपने धर्म व मज़हब के दायरे में रहते हुए भी, एक-दूसरे के तीज-त्यौहारों में शरीक होकर आपसी सद्भाव में अभिवृद्धि करते हैं परिणामतः अपने सभी त्यौहारों का आनंद तत्काल ही चौगुना हो जाता है| यही उत्तम भाव तो अपनी गंगाजमुनी संस्कृति की विशेषता है, जिसे मद्देनज़र रखते हुए इस बार सर्वसहमति से 'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -७' हेतु आदरणीय गणेश जी बागी द्वारा ऐसे चित्र का चयन किया है जिसमें स्पष्ट रूप से यही परिलक्षित हो रहा है कि..............
मेल-जोल, सहयोग ही, जब हो सहज स्वभाव.
जले ज्योति से ज्योति तब, क्यों ना हो सद्भाव..
आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! और हाँ आप किसी भी विधा में इस चित्र का चित्रण करने के लिए स्वतंत्र हैं ......
नोट :-
(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से १८ तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे |
(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-६ के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी | प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-७, दिनांक १६ अक्टूबर से १८ अक्तूबर की मध्य तात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी,, साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव
Tags:
Replies are closed for this discussion.
वाह, हर एक सवैया बेहतरीन| क्या ग़ज़ब का भाव लिए है सभी|
रचना रुची, धन्यवाद.
आदरणीय सौरभ जी...बहुत ही भावपूर रचना. ये शब्द ही हैं जो त्यौहार में रौशनी भरते हैं..आपकी रचना ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
सराहना हेतु सादर धन्यवाद, भाईजी.
कहाँ हैं, आजकल? तबियत-पानी?? आप सभी आदत हो गये हैं. ... आदरणीय योगी भाई को भी ढूँढने निकलना है .. हिमालय की कंदराओं में कहीं..!?? ,, क्योंकि फोन-फान सब बंद हैं उनके.
एक गीत याद आरहा है.. चंदा को ढूँढने सभी तारे निकल पड़े.. .
जीवन में नव ’पन्थ’ बनें, अब नूतन आय, पुरातन जाए
अंग से अंग मिले न मिले, उर-तार मिले, शुभता रस पाए
दीपन की सजी कतार देखि लक्षि दोनों हाथ प्रसाद लुटावे.
सखियाँ सजि-धजि लक्ष्मी पूजै मिलजुल संग सौरभ के गुण गावै.
अभिनव ............ मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकार करें मित्रवर.
भाई सतीशजी, आपको मेरा प्रयास रुचा इस के लिये मैं आभारी हूँ.
//जब जब भी दिवाली आती है, तब तब दो प्रश्न मेरे मन को कचोटतें हैं, एक यह कि अमीर और गरीब की दिवाली एक जैसी क्योँ नहीं होती? दूसरा यह कि कष्टों को सहकर भी सत्य का पालन करने वाले राम के घर आने की खुशी में मनाए जाने वाली दिवाली के साथ आखिर धन तेरस अथवा धनलक्ष्मी कैसे जुड़ गयी ? इन दोनों प्रश्नों का परस्पर गुंथा हुआ उत्तर खोजता हूँ कि अमीर और गरीब का भेद भाग्य के रुप में कमाया हुआ कर्मफल है या फ़िर समाज में व्यक्ति से व्यक्ति शोषण का परिणाम? यदि समाज द्वारा व्यक्ति शोषण का परिणाम है तो सत्य का न्याय फ़िर कहाँ है? परन्तु फ़िर सोचता हूँ सत्य तो अन्याय का कभी पर्याय नहीं हो सकता| कष्ट, सुख दुःख..व्यक्ति भाग्य में अपने अपने कर्मों का परिणाम ही तो है उत्तर खोजते खोजते मैं इस परिणाम पर पहुँचता हूँ कि व्यक्ति के जीवन में कष्ट ,सुख ,दुःख का बंटवारा सत्य के न्याय का ही परिणाम है और यह कि, लक्ष्मी ,शक्ति और सरस्वती के कर्मफलरूप प्रसाद का न्यूनाधिक व्यक्ति को कष्ट ,सुख ,दुःख के चक्र में घुमाता है और यह भी कि सरस्वती के प्रसाद से अनुगृहित व्यक्ति ही धन और शक्ति का सदुपयोग कल्याणार्थ करके ही सुखी रह सकता है, जबकि इसके विपरीत कर्मजन्य कर्मफल का असंतुलन व्यक्ति को हमेशा कष्ट ,सुख ,दुःख के कर्मचक्र से उबरने नहीं देता यह सब सोचकर मैं संतुष्ट तो होता हूँ लेकिन फ़िर भी क्षणिक ही सही गरीब बच्चों के फुलझड़ियों ,पटाखों और मिठाईयों से सूने हाथ देखकर बहुत व्यथित होता हूँ और सत्य से यही दुआ करता हूँ कि इन बच्चों को तुम अभाव में भी हर दिवाली के दिन बस सुखी रखना! ताकि दिवाली इनके लिए मन की टीस का कारण न बने! बस इसी विचार की इसी चोट से आहत सा हुआ मैं दिवाली को कभी भी दिल से नहीं मना पाता हूँ !//
आदरणीय अश्विनी रमेश जी ! बहुत खूबसूरत भाव भरे हैं आपके इस कविता रूपी लेख में .........इस निमित्त कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें ! सादर :
आपका स्वागत है !
इस सांगोपांग तथ्यपरक लेख के लिये आपकी जागरुकता को नमन.
’सूरदास के काली कमरिया चढ़े न दूजो रंग.. .’ ... काश मैं भी ’सूर’ होता..
भाई सौरभ जी ! अश्विनी जी का यह लेख अद्वितीय है.......है ना ?
प्रविष्टि हेतु आमंत्रित रचनाओं की विधाओं में यह विन्दु भी लगा दें. ..
लेख ? :-)
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |