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'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -७' ( Closed with 654 Replies )

नमस्कार आदरणीय मित्रों !

आप सभी का हार्दिक स्वागत है !  हमारे त्यौहार हम सभी में आपसी मेलजोल व भाई-चारा तो बढ़ाते ही हैं साथ ही साथ किसी न किसी सार्थक उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त हमें प्रेरित भी करते हैं ! केवल यही नहीं वरन् हम सभी अपने-अपने धर्म व मज़हब के दायरे में रहते हुए भी, एक-दूसरे के तीज-त्यौहारों में शरीक होकर आपसी सद्भाव में अभिवृद्धि करते हैं परिणामतः अपने सभी त्यौहारों का आनंद तत्काल ही चौगुना हो जाता है| यही उत्तम भाव तो अपनी गंगाजमुनी संस्कृति की विशेषता है, जिसे मद्देनज़र रखते हुए इस बार सर्वसहमति से  'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -७' हेतु  आदरणीय गणेश जी बागी द्वारा ऐसे चित्र का चयन किया है जिसमें स्पष्ट रूप से यही परिलक्षित हो रहा है कि..............

 

मेल-जोल, सहयोग ही, जब हो सहज स्वभाव. 

जले ज्योति से ज्योति तब, क्यों ना हो सद्भाव.. 

 

आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण !  और हाँ आप किसी भी विधा में इस चित्र का चित्रण करने के लिए स्वतंत्र हैं ......

 

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से १८ तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |


 (2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 


(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक- के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता  अंक-७, दिनांक  १६ अक्टूबर से १८ अक्तूबर की मध्य तात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी,, साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव



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Replies to This Discussion

इमरान भाई आपका रचना-प्रयास निरंतर निखरता जा रहा है. यह हम सभी के लिये गर्व की बात है.

इस मधुर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई.

धन्यवाद सौरभ भैया! आपका आशीर्वाद यूँही बना रहे इश्वर से बस येही कामना है मेरी ..

सहयोग और सहकार बना रहे इमरानभाई.

हार्दिक शुभेच्छा.. .

हम दीप जला कर बैठे हैं, तुम साथी ईद मना लेना,
हम खील बताशे खाते हैं, तुम शीर हमारी खा लेना।...lajwab 

जगमग रोशन जब उसका, सारा आंगन हो जाये,
मेरा घर भी पास खड़ा धीमे धीमे मुस्काये,...bahut khoob wah 

हिन्दू मुस्लिम मुद्दों के यहाँ नहीं होते परचम,
मेरी गलियों में आओ देखोगे अनमोल रसम,,,umda wah

मेरे सूने घर का, आंगन रोशन वो करता है,
मेरे घर लक्ष्मी आये, सदा जतन वो करता है।..khoobsurat ..wah

उसका मेरे घर आकर भेली का टुकड़ा लेना,
मेरा उसके घर जाकर मीठी वो गुजिया लेना,.lajawab

हम दीप जला कर बैठे हैं, तुम साथी ईद मना लेना,
हम खील बताशे खाते हैं, तुम शीर हमारी खा लेना।...bemisaal 

हम दीप जला कर बैठे हैं, तुम साथी ईद मना लेना,
हम खील बताशे खाते हैं, तुम शीर हमारी खा लेना।

 

जगमग रोशन जब उसका, सारा आंगन हो जाये,
मेरा घर भी पास खड़ा धीमे धीमे मुस्काये,..Imran bhai..kya soch piroi hai aapne apani kavita me...LAJWAB.

वाह इमरान भाई वाह, इस चित्र को आप उस कोने से देखा है जहाँ अमूमन वो दिखता है जो सभी को नहीं दिखता, बहुत बहुत बधाई |

इमरान, 

आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल ने मन को छू लिया...बिलकुल सही भाव हैं...ऐसा ही तो होता है. पढ़कर मन भर आया और आँखें डबडबा गयीं. आपस में मिलजुल कर रहना और खुशियों में शरीक होने का नाम ही तो जिंदगी है. बधाई स्वीकारें. 

हम दीप जला कर बैठे हैं, तुम साथी ईद मना लेना,
हम खील बताशे खाते हैं, तुम शीर हमारी खा लेना।

बहुत बड़ी बात कह दी इमरान साहेब ................... दाद कबूल करें हुज़ूर .............. मैं इस मौके पर अपनी दो पंक्तियाँ कह रहा हूँ ...............

हिन्दू - मुसलमां में रंजिश कहाँ हैं ?

ये तो सियासत की है एक शरारत.

"घनाक्षरी"

(1)

झनन-झनन झन  झनन-झनन झन, 

झनन-झनन झनकाती चली आओ माँ|

 

खनन-खनन खन खनन-खनन खन,

खनन-खनन खनकाती चली आओ माँ|

 

नगर-नगर दीप जगर-मगर दीप ,

डगर-डगर में जलाती चली आओ माँ|

 

लहर-लहर उठे फहर-फहर उठे,

वैभव के ध्वज फहराती चली आओ माँ|| 

 

(2)

शांति के दिए जलाओ क्रांति के दिए जलाओ,
भ्रान्ति कालिमा मिटाओ यही तो दीवाली है|


पांति पांति दीप जले भांति-भांति दीप जले,
रात-रात दीप जले यही तो दीवाली है|


हाथ में दिये जलाओ साथ में दिये जलाओ,
रात में दिये जलाओ यही तो दीवाली है|


तुमको लुगाई मिले हमको भौजाई मिले,
सबको मिठाई मिले यही तो दीवाली है||

 

शांति के दिए जलाओ क्रांति के दिए जलाओ,
भ्रान्ति कालिमा मिटाओ यही तो दीवाली है|


पांति पांति दीप जले भांति-भांति दीप जले,
रात-रात दीप जले यही तो दीवाली है|


हाथ में दिये जलाओ साथ में दिये जलाओ,
रात में दिये जलाओ यही तो दीवाली है|


तुमको लुगाई मिले हमको भौजाई मिले,
सबको मिठाई मिले यही तो दीवाली है||

 

aha bahut hi pyari rachna ati sundar .

//पांति पांति दीप जले भांति-भांति दीप जले,
रात-रात दीप जले यही तो दीवाली है|


हाथ में दिये जलाओ साथ में दिये जलाओ,
रात में दिये जलाओ यही तो दीवाली है|//

वाह वाह वाह आदरणीय आलोक जी ! अति सुन्दर!  क्या प्रवाहमयी घनाक्षारियां प्रस्तुत की हैं आपने! वह भी पूरी तरह से प्रस्तुत चित्र की परिधि में ही रहकर  .......मन प्रसन्न हो गया | साधुवाद !

वाह वाह आद अलोक सर... मज़ा आ गया....

शानदार धनाक्षरी छंद के लिये सादर बधाई स्वीकारें...

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