"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 25 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है, इस चित्र में जैसा कि प्रथम दृष्ट्या प्रतीत हो रहा है पुलिस-भर्ती की प्रक्रिया चल रही है.
अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी.. और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओबीओ प्रबंधन द्वारा लिए गये निर्णय के अनुसार छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों पर ही आधारित काव्य-रचनाओं पर होगा. कृपया इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त प्रकार अवश्य उल्लेख करें. ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.
नोट :-
(1) 18 अप्रैल-13 तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 19 अप्रैल-13 से 21 अप्रैल-13 तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा.
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें.
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अति आवश्यक सूचना :- ओबीओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-25, तीन दिनों तक चलेगा जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेगी. नियम विरुद्ध या निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी.
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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वाह वाह वाह आदरणीय सौरभ भाई जी, कमाल की प्रस्तुति है. आल्हा छंद में हास्य-व्यंग्य का पुट देना हरेक के बस की बात नहीं - आनंद आ गया (हालाकि इस छंद में मैं अतिश्योक्ति नाम की वस्तु को ढूंढता रह गया), बहरहाल दिल से बधाई पेश करता हूँ, स्वीकार करें.
आदरणीय अनुज श्री सादर स्नेह
आपको यहाँ देख कर सुखद अनुभूति हुई है. आपकी बिमारी का होली के बाद ही एक पोस्ट से पता चला . आप स्वस्थ रहें. कामना है.
अतिश्योक्ति के लिए क्या मैं नहीं हूँ.
आपका मार्गदर्शन साहित्य विकास के लिए मील का पत्थर है,
सादर
आदरणीय योगराजभाईसाहब, आपका आशीष किसी रचना के लिए प्राणवायु है. आपके अनुमोदन से रचना कोई हो धन्य हो जाती है. आपको प्रयास रुचिकर लगा यह मेरे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात है.
आदरणीय अतिशयोक्ति के कई बिम्ब प्रस्तुत करने का प्रयास तो किया था, यथा, तड़ित की तरह का जवान, ’बावन वीर’ जैसा बलशाली, दधिचि सा व्योम-वज्र का कारण आदि-आदि, यह हो सकता है, आदरणीय प्रयास-प्रक्रिया संतुलित नहीं रह पायी हो.
आपकी उपस्थिति तथा दृष्टि पूर्ववत पखारने का कार्य करेगी, यह पूरा विश्वास है.
सादर
आदरणीय गुरुदेव श्री सादर सुप्रभात प्रणाम, उत्सव में आपके द्वारा प्रथम प्रस्तुति मन को अपनी ओर खींच रही है प्रभावित कर रही है रचना प्रस्तुति चित्र को बहुत ही सुन्दरता से वीर छंद के द्वारा परिभाषित किया है आपने. सर्व प्रथम आपको वीर छंद का विधान साझा करने हेतु ह्रदय से बधाई. रचना की जितनी प्रशंसा की जाए कम पड़ेगी. रचना भरपूर जोश और उर्जा से लबालब भरी हुई है. आदरणीय गुरुदेव श्री इस शानदार धारदार रचना हेतु आपको भूरि भूरि बधाई. जय हो
रचना पर अपनी हार्दिक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद भाई अरुण अनन्तजी,
आल्हा छंद पर तो ओबीओ के भारतीय छंद विधान समूह में पहले से ही आलेख मौज़ूद है, भाई. छंदोत्सव के आयोजन में विधाओं पर संक्षेप में कहना पाठकों की सुविधा के लिए अत्यंत आवश्यक है. इसी कारण यह नियम बनाया गया है कि जिस छंद का प्रयोग रचनाकार करें, उस छंद का विधान संक्षेप में प्रस्तुत कर दें.
शुभ-शुभ
चित्र से काव्य तक-अंक २५ के चित्र से न्याय करते ऐसी सुन्दर रचना करना, और ककड़ी ककड़ी पसली वाले के
माथेपर माटी के जज्बे बनाम धरती के कर्ज का ध्यान दिलाती रचनाकर्मी के विद्वजन की छाप लगाती है |
इतने सुन्दर आगाज के लिए आदरणीय श्री सौरभ जी को दिल से ढेरों बधाइयां |
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी. आपका अनुमोदन मेरे लिए सदा ही अर्थवान रहा है.आपको रचना का निहितार्थ पसंद आया इस हेतु आपका सादर आभार.
वाह आदरणीय वाह, मैं तीन चार बार इस रचना को टेबल पर थाप देकर गा चुका चुका हूँ, बहुत ही आनंद आ रहा है, इस रचना को यदि आल्हा गायन शैली मे पढ़ी जाय तो आनंद चौगुना हो रहा है, कथ्य एक दम से चित्र को परिभाषित करता है और शिल्प पर क्या कहने, एक दम प्रवाहमयी |
//लगे चटक कर तड़ित स्वयं ही, लप-लप करती आयी आज
पेट-पीठ के मध्य न सीमा, नापे नभ मन की परवाज //
आहा ! ग़ज़ब !! बहुत ही खूबसूरत, इस खूबसूरत प्रस्तुति से छन्दोत्सव का प्रारंभ होना एक शुभ संकेत है, इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करे आदरणीय सौरभ भईया ।
बहुत-बहुत-बहुत धन्यवाद भाई गणेश बाग़ीजी.. .
थाप दे-दे कर इस रचना को पढ़ना वाकई मनोहारी रहा होगा. आपको रचना रुचिकर लगी, समझिये, मेरी ट्रेन-यात्रा सफल हुई.. :-))))
रचना पर आपके अनुमोदन को हम अपने दिल में बसा रहे हैं.
आपने मेरी रचना से जिन पंक्तियों को उद्धृत किया है, गणेशभाईजी, वह वीर छंद की रचनाओं का प्रतिनिधि भाव व्यक्त करती पंक्तियाँ हैं.
पुनः हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय Saurabh Pandey ,,,,जी,,,,वाह वाह वाह क्या खूब निभाया है आपने,,,, और आल्हा-छन्द के शिल्प के साथ साथ जैसा की इस छन्द का मूल रस-भाव शौर्य,ऒज,तथा अतिशयोक्ति अलंकार की प्रधानता माना जाता है,,,,,वह सब आपने सजाया है अपने इस थाल में,,,,,बहुत बहुत बधाई इस धमाकेदार दीप प्रज्वलन के लिये,,,,,,सादर नमन,,,,,,
वाह ! गुरुवर क्या आल्हा छन्द रचा है !!
मंच पर आज सचमुच उत्सव मचा है !!
जगनिक, वरदाई और ख़ुमान कॆ बाद,
यह रस ओ. बी .ओ. पर ही तॊ बचा है !!
जय हो ,,,,जय हो,,,,जय हो,,,,,,,,,
अय हय, अय हय.. . भाई राज बुन्देली साहब, आपने तो वीर छंद की मूल भावना में ही अपनी प्रतिक्रिया देदी है. हा हा हा.. .
आपको रचना रुचिकर लगी है, यह मेरे लिए परम संतोष की बात है.
आपका हार्दिक धन्यवाद.
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