"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के वैन्यासिक उच्चारण पर पुनर्चिंतन किया. वस्तुतः, कई विद्वान रचनाकार विदेसज या तत्सम शब्दों के विन्यास…"
आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में…See More
१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून लिखते किताबों में हम।१। * हमें मौत रचने से फुरसत नहीं न शामिल हुए यूँ जनाजों में हम।२। * हमारे बिना यह सियासत कहाँ जवाबों में हम हैं…See More
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर वापस सकारात्मक फ़ैसला करने पर सकारात्मक संदेशवाहक बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय दयाराम मेठानी जी। अभी रचना लघु…"