कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहींचढ़ती हैं आदमी में जो कुर्सी की फितरतें।२।*कहने लगे हैं चाँद को, सूरज को पढ़ रहेसमझे…See More