ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
२१२२ २१२२ २१२२ औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा, फैलता जो जा रहा हैरोशनी का अर्थ भी समझा रहा है चढ़ चुका है इक शिकारी घोसले तकक्या परिंदों को समझ कुछ…See More