तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.
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किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.
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यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.
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यही हासिल हुआ है इक सफ़र से
हमारे पाँव में जो आबला है.
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कभी लगता है अपना बाप मुझ को
ये दिल इतना ज़ियादा टोकता है.
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नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.
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हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस तीरगी का सिलसिला है.
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बहुत सी लडकियाँ मरती हैं उस पर
वो लड़का, हाँ वही जो साँवला है.
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ग़ज़ल में “नूर”! वो सब तू सुना दे
तेरे जीवन में जो कुछ अनकहा है.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. आरज़ू जी
Nov 6, 2021
Ravi Shukla
वाह वाह नीलेश जी बहुत शान दार ग़ज़ल कही है आपने शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करिये । एक के बाद एक उम्दा शेर हुआ है ।
Dec 20, 2022
Nilesh Shevgaonkar
धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .
क्षमा सहित..आभार
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