by Sushil Sarna
Apr 24
दोहा पंचक . . . .
( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये )
टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।
मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।
प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।
महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर ।।
साकी तेरी बज्म का , यह कैसा दस्तूर ।गैरों को प्याले मिले, आशिक है मजबूर ।।
सुशील सरना / 24-4-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
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दोहा पंचक. . . . .
by Sushil Sarna
Apr 24
दोहा पंचक . . . .
( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये )
टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।
कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।
मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।
दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।
प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।
निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।
महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।
परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर ।।
साकी तेरी बज्म का , यह कैसा दस्तूर ।
गैरों को प्याले मिले, आशिक है मजबूर ।।
सुशील सरना / 24-4-24
मौलिक एवं अप्रकाशित