सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।
सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।
रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।
धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।
मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।
आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।
रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।
रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।
स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल ।।
सच्चे मन से जो करे, रिश्तों से निर्वाह ।
उसकी भी रिश्ते करें, जीवन में परवाह ।।
हर रिश्ते को दीजिये, अपना थोड़ा वक्त ।
निश्चित होगा आप पर, हर रिश्ता आसक्त ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना जी.
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Nov 14
Sushil Sarna
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय
on Sunday