212 212 212 212
इस तमस में सँभलना है हर हाल में
दीप के भाव जलना है हर हाल में
हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं
एक विश्वास पलना है हर हाल में
एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे
इन चरागों को जलना है हर हाल में
निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये
मन से मन तक टहलना है हर हाल में
देह को देह की भी न अनुभूति हो
मोम जैसे पिघलना है हर हाल में
अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर
दीप को मौन बलना है हर हाल में
*****
(मौलिक और अप्रकाशित)
एकपक्षीय - एक तरफा
निर्निमेषी नयन - अपलक हुई आँखें
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय समर साहेब,
इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती हैं।
स्वास्थ्य की समस्या से निजात पा तो चुका हूँ, लेकिन परहेज से निजात नहीं मिली है। फिर भी, बहुत कुछ कर पा रहा हूँ।
आपने मेरे प्रयास की सराहना की है। अच्छा तो लगा ही है, मन भी आश्वस्त हुआ है। आपकी सदाशयता का हार्दिक धन्यवाद।
शुभ-शुभ
Nov 14
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था। निस्संदेह एक अरसे बाद मैंने कोई रचना इस पटल पर डाली है।
प्रस्तुति पर आपसे मिले उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद...
शुभातिशुभ
Nov 14
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी हूँ।
शुभ-शुभ
Nov 14