दोहा पंचक. . . शीत शृंगार
नैनों की मनुहार को, नैन करें स्वीकार ।
प्रणय निवेदन शीत में, कौन करे इंकार ।।
मीत करे जब प्रीति की, आँखों से वो बात ।
जिसमें बीते डूबकर, आलिंगन में रात ।।
अभिसारों में व्याप्त है, मदन भाव का ज्वार ।
इस्पर्शों के दौर में, बिखरा हरसिंगार ।।
बढ़े शीत में प्रीति की, अलबेली सी प्यास ।
साँसें करती मौन में, फिर साँसों से रास ।।
अंग-अंग में शीत से, सुलगे प्रेम अलाव ।
प्रेम क्षुधा के वेग में, बढ़ते गए कसाव ।।
सुशील सरना / 18-12-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई
Jan 1
Sushil Sarna
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाऐं सर
Jan 2